बिलासपुर। डॉक्टरों के मुताबिक थैलेसीमिया पीड़ितों की अल्प आयु होती है। पीड़ित व्यक्ति का जीवन 16 से 20 साल तक का होता है। इस अवधारणा को पीड़ित किरण व उसके पिता ने बदल दिया है। वह 24 की उम्र में भी पूरी तरह स्वस्थ हैं।

पिता ने ब्लड, दवा और खान-पान का ध्यान रखकर असंभव को संभव बनाने में मदद की है। आरती के पिता दिलीप यादव बताते हैं कि आरती एक साल की हुई तो अचानक तेज बुखार आने लगा। डॉक्टर के पास गए तो उसने बोनमेरा टेस्ट कराया।

रिपोर्ट आने के बाद पता चला की वह थैलेसीमिया से ग्रसित है। उस समय इस बीमारी के बारे में लोग कम ही जानते थे। डॉक्टरों ने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का अल्प जीवन होता है। समय पर उपचार मिलता रहा तो भी 10 साल के उम्र के बाद उलटी गिनती शुरू हो जाती है।

अधिकतम 20 साल तक ही पीड़ित जीवन जी पाते हैं। यह सुनकर पिता स्तब्ध रह गए। डॉक्टर ने यह भी जानकारी दी कि अब आरती को हर महीने खून लगेगा। साथ ही दवाइयां चलेगी। उसकी देखभाल पर खास ध्यान देना होगा। इसके बाद पिता ने अपनी बेटी की सेवा में जुट गए।

हर महीने खून उपलब्ध कराना संघर्ष के कम नहीं था। साथ ही दवाओं का ख्याल रखना था। उनकी देखभाल का ही नतीजा है कि किरण पर बीमारी हावी नहीं हो पाई। आज किरण 24 साल की हो गई है और बिलकुल सामान्य जीवन व्यतीत कर रही है।

यह ही नहीं किरण ने बीकाम, पीजीडीसीए की पढ़ाई भी पूरी कर ली है। पिता व बेटी का कहना है कि कोई भी बीमारी बड़ी नहीं होती है। लड़ने के जज्बे और उचित देखभाल से बीमारी को हराया जा सकता है। किरण व उसके पिता दिलीप अन्य पीड़ितों व उनके अभिभावकों के लिए प्रेरणा हैं।

जज्बा दे रहा सहारा

किरण का जिम्मा अब जज्बा फाउंडेशन उठा रहा है। इसके लिए हर माह नि:शुल्क ब्लड की व्यवस्था की गई है। साथ ही संस्था दवाओं का खर्चा भी उठा रही हैं। जज्बा के संयोजक संजय मतलानी ने बताया कि किरण और उसके पिता के संघर्ष को हम समझते हैं। उसके अलावा अन्य 20 थैलेसीमिया पीड़ितों को गोद लेकर उनकी आवश्यकता को पूरा किया जा रहा है।

संभाग की सबसे बड़ी थैलेसीमिया पीड़ित

जिले में सैकड़ों थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे हैं। ज्यादातर जीवन का पहला दसक भी देख नहीं पाते हैं। समय पर ब्लड मिलने व उचित देखभाल मिलने पर कुछ साल जीवन बढ़ जाता है। 24 साल की किरण संभाग की सबसे अधिक उम्र की थैलेसीमिया पीड़ित मरीज है।

अब तक लग चुका है 550 यूनिट ब्लड

दिलीप यादव छत्तीसगढ़ स्कूल में क्लर्क हैं। शुस्र्आती दिनों में उनका वेतन बेहद कम था। 24 साल पहले रक्तदान के प्रति लोगों में जागरूकता भी नहीं थी। उस समय खून खरीदना पड़ता था।

आर्थिक तंगी के बाद भी पिताने हर नहीं मानी और हर माह ब्लड की व्यवस्था करते रहे। इसके लिए प्रदेश के अन्य शहर के साथ ही दूसरे प्रदेश तक जाना पड़ता। आरती को अब तक 550 यूनिट ब्लड लग चुका है।

घर भी बेचना पड़ा

ब्लड के साथ दवाओं में लाखों खर्चा करना पड़ा। इसके बाद भी पिता ने हार नहीं मानी। यहां तक की उन्होंने अपना घर तक बेच दिया। आरती के लिए चिकित्सकीय संसाधन जुटाते आए। इसी का नतीजा है कि आरती पूरी तरह स्वस्थ है।

शादी से पहले कराएं जांच दिलीप ने बताया कि इस बीमारी को रोकने का एक ही उपाय है कि जब कभी भी किसी की शादी हो तो उन्हें थैलेसीमिया का टेस्ट जरूर कराना चाहिए। यदि किसी एक में इसका वाहक मिला तो शादी नहीं करनी चाहिए। दोनों के बच्चे के थैलेसीमिया से ग्रसित होने की आशंका 90 प्रतिशत तक रहती है।

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