पिछले साल इससे भी भयावह स्थिति थी, तब चली थी नल-जल योजना की फाइल, ई-कोलाई संक्रमण से जूझ रहे ग्रामीण

सीपत एनटीपीसी के ठीक नीचे बसे ग्राम दर्राभाठा में पिछले साल से प्रस्तावित एक करोड़ रुपए की नल-जल योजना यदि ठंडे बस्ते में नहीं गई होती तो इस साल फैले डायरिया के प्रकोप से बचा जा सकता था।

एक मौत और करीब 150 मरीजों की तबियत बिगड़ने के बाद हरकत में आया स्वास्थ्य विभाग अब स्थिति नियंत्रण में होने का दावा जरूर कर रहा है पर समस्या वहीं खड़ी है और ग्रामीण अब भी दहशत और चिंता से नहीं उबर पाए हैं।

Bilaspurlive.com की टीम  दूषित पानी से लोगों के लगातार दूसरे साल बीमार होने की खबर पर वहां की स्थिति का जायजा लेने शुक्रवार को पहुंची थी।

गांव वाले सशंकित और घबराये हुए हैं, यह उनके चेहरे से और बातचीत से साफ झलक रहा था। ग्रामीण फागूराम बंजारे की पत्नी हेमबाई सरपंच हैं, वह भी डायरिया की चपेट में आ गई थीं। तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें भी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। फागूराम का कहना है कि पिछले साल इससे भी भयावह स्थिति थी। साढ़े तीन हजार की आबादी वाले इस गांव के दो हजार लोग बीमार पड़ गए थे। इस साल की तरह पिछले साल भी तब तक अधिकारियों की नींद नहीं टूटी जब तक मीडिया में ख़बरें नहीं चलने लगीं। जिले के प्रशासनिक अधिकारियों और एनटीपीसी प्रबंधन के प्रतिनिधियों के साथ ग्रामीणों की चर्चा हुई थी, जिसमें गांव के बाहर से सुरक्षित जल स्त्रोत से गांव को पानी का  प्रबंध किया जाएगा।

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पूरे गांव में पाइप लाइन बिछाकर नल-जल योजना संचालित की जाएगी। यह योजना धरातल पर अब तक नहीं उतर पाई है। यदि समय पर योजना फाइलों से बाहर आ गई होती तो इस साल लोग बीमारी से बच जाते हैं।

पांच दिन बाद एनटीपीसी ने लगाया एक टैंकर

ग्रामीण बताते हैं कि यह समस्या पिछले साल भी बारिश के शुरूआती दिनों में शुरू हुई थी और इस साल भी। वजह क्या है, इसकी जानकारी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) के अधिकारी ही बता पाएंगे। गांव के लगभग सभी हेंडपम्पों को पीएचई ने सील कर दिया है।

बीमारी शुरू होने के पांच दिन बाद शुक्रवार से गांव में एनटीपीसी ने टैंकर के जरिये पेयजल की सप्लाई शुरू की है। यह कदम ग्रामीणों व प्रशासन की ओर से दबाव डाले जाने के बाद उठाया गया। टैंकर सिर्फ एक है, जिसमें बारी-बारी पानी भरकर लाया जाता है। बच्चों और महिलाओं को घंटों कतार में रहने के बाद पानी मिल रहा है।

अंडरग्राउंड वाटर में भी ई-कोलाई पहली बार मिला

पेयजल की स्थिति में बहुत जल्दी सुधार होने की संभावना नहीं है।

जिला महामारी नियंत्रण अधिकारी डॉ. एस के लाल ने मरीजों के उपचार के लिए पंचायत भवन में कैम्प लगा रखा है। उन्होंने बताया कि पिछले साल ग्राउंड लेवल तक ही पानी में ई-कोलाई प्रदूषण का असर देखा गया था, इस बार अंडरग्राउंड लेवल पर भी पानी प्रदूषित पाया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग का काम यह देखना है कि बीमारी का प्रकोप न बढ़े और जो पीड़ित हैं, उनका अच्छी तरह उपचार हो।

इसकी वजह क्या है, जानने के लिए पीएचई के अधिकारियों से सम्पर्क करने की कोशिश की गई, पर वे फोन व दफ्तर में उपलब्ध नहीं थे। फागूराम का भी कहना है कि हेंडपम्प का पानी तो डेढ़ दो सौ से तीन सौ फीट तक नीचे से आता है। वहां तक पानी कैसे प्रदूषित हुआ, समझ से परे है। ग्रामीणों का तो दावा यही है कि हेन्डपम्प के आसपास एनटीपीसी का गंदा पानी जमा होता है, जो बारिश के पानी के साथ काफी नीचे चला जाता है।

बहरहाल, ज्यादातर हेन्डपम्पों को सील करने के बाद जो चालू हैं, उनमें क्लोरीन, ब्लीचिंग पाउडर का ट्रीटमेंट पीएचई ने किया है। पर ग्रामीण इन चालू पम्पों का इस्तेमाल करने से बच रहे हैं।

लीलागर नदी में गिर रहा प्रदूषित पानी

एनटीपीसी के जनसम्पर्क अधिकारी बिश्नु साहू ने दावा किया कि संयंत्र का कोई भी गंदा पानी बाहर नहीं निकाला जाता।

भीतर ही इसका ट्रीटमेंट कर इस्तेमाल कर लिया जाता है। पर,  पगडंडी खेतों को पार कर जब एनटीपीसी से निकले एक नाले तक पहुंचकर देखा तो  bilaspurlive.com ने पाया कि एनटीपीसी का पानी लीलागर नदी में गिर रहा है। साहू का कहना है कि यह दूषित पानी नहीं, बरसात का हो सकता है।

टैंकर से पानी भेजकर, हैंडपम्पों को सील कर और पीड़ितों के उपचार के लिए कैम्प लगाकर समस्या का त्वरित समाधान तो निकाल लिया गया है, पर आगे फिर यह गांव डायरिया जैसी बीमारी की चपेट में न आए इसके लिए किसी ठोस योजना पर काम नहीं हो रहा है। प्रशासन की फुर्ती बस मौजूदा हालात से किसी तरह निपट लेने की दिखाई दे रही है।

 

 

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