राजकीय सम्मान नहीं देकर भी की गई थी उपेक्षा

बिलासपुर। नौकरशाहों को इस बात की ख़बर नहीं है कि साहित्य और शिक्षा में पद्मश्री हासिल करने वाले छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार पं. श्यामलाल चतुर्वेदी दिवंगत हो चुके हैं। जब तक वे जीवित थे उन्हें सम्मान निधि देने का विचार ही नहीं आया। अब उनकी मृत्यु के बाद पत्राचार कर उनके जीवित होने न होने की जानकारी मांगी जा रही है। इसके पहले प्रशासन उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान से करने से मना कर चुका है।

मालूम हो कि पं. चतुर्वेदी का बीते 7 दिसम्बर को देहावसान हो चुका है। उन्हें दो अप्रैल 2018 को राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री से विभूषित किया गया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनका अभिनन्दन किया था। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष रहते हुए उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। उनका निधन होने पर बिलासपुर प्रेस क्लब तथा साहित्यकारों ने जिला प्रशासन को इसकी सूचना दी थी। यह भी कहा गया था कि उनको मिले सम्मान व व्यक्तित्व को देखते हुए उन्हें राजकीय सम्मान मिलना चाहिए, लेकिन जिला प्रशासन की तब आलोचना हुई जब उन्होंने इस दिशा में कोई पहल नहीं की। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग की गाइड लाइन में कहा गया है कि किसी भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित और केबिनेट मंत्री दर्जा रखने वालों को अंतिम यात्रा में राजकीय सम्मान मिलना चाहिए।

अब एक नया मामला सामने आया है। पं. चतुर्वेदी को मासिक सम्मान निधि उनके जीवित रहते नहीं मिली। बिलासपुर के संभाग आयुक्त को सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव मेरी खेस्स ने 11 दिसम्बर को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि पद्मश्री दामोदर गणेश बापटे और पं. श्याम लाल चतुर्वेदी के जीवित होने सम्बन्धी प्रमाण पत्र भेजें ताकि बजट आबंटन कर सम्मान निधि दी जा सके। संभागायुक्त के पास पत्र आने के बाद जनवरी में एक पत्र कलेक्टोरेट से जारी हुआ है। इसमें डिप्टी कलेक्टर ने 31 दिसम्बर यानि करीब 20 दिन बाद, तहसीलदार को पत्र लिखकर प्रमाणित जानकारी कलेक्टोरेट में उपलब्ध कराने कहा है।

पं. चतुर्वेदी के पुत्र पत्रकार सूर्यकांत चतुर्वेदी से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस प्रकार के पत्राचार से पता चलता है कि प्रमुख विभूतियों के सम्मान को लेकर प्रशासन में बैठे लोगों को कितनी समझ और संवेदना है। सम्मान निधि कितनी मिलनी है, यह उन्हें नहीं पता पर प्रशासन के पास उनके मृत्यु की सूचना समय पर दर्ज हो जानी थी और जीवित रहते ही निधि के लिए पत्राचार शुरू कर देना था। अप्रैल में सम्मानित होने के आठ माह बाद और मृत्यु के बाद इस तरह का पत्राचार दुर्भाग्यपूर्ण और अपमानजनक है।

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