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स्मार्ट सिटी के अधिकारों को चुनौती देने वाली पीआईएल पर बहस पूरी, हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित

हाईकोर्ट बिलासपुर, छत्तीसगढ़।

बिलासपुर। रायपुर व बिलासपुर की स्मार्ट सिटी कंपनियों पर निर्वाचित नगर निगमों के अधिकारों को हड़पने को लेकर लगाई गई जनहित याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई है और हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

बिलासपुर के अधिवक्ता विनय दुबे की ओर से दाखिल जनहित याचिका में कहा गया था कि स्मार्ट सिटी कंपनियों के द्वारा निर्वाचित नगर निगमों के अधिकारों को हड़प लिया गया है। याचिका में इसका विरोध करते हुए उन्हें नगर निगम के अधीन काम करने का निर्देश देने की मांग की गई है। इसकी अंतिम सुनवाई हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस दीपक तिवारी की खंडपीठ में तीन दिन चली। इसके पश्चात हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि स्मार्ट सिटी कंपनियों की आड़ में निर्वाचित नगर निगम के सारे अधिकारों को हस्तगत कर लेना संविधान और नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। कंपनियों के गठन में निर्वाचित महापौर या किसी भी चुने हुए व्यक्ति को कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर में नहीं रखा गया है। कंपनियों का स्वामित्व 50-50 फीसदी राज्य सरकार और नगर निगम का होने के बावजूद सारे डायरेक्टर राज्य सरकार के अधिकारियों को बनाया गया है। यह स्थानीय निकाय को कमजोर करने का प्रयास है। ऐसा करके संविधान के उस 74वें संशोधन को निष्प्रभावी किया गया है, जिसमें स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा देते हुए थ्री टियर शासन व्यवस्था बनाई गई है।

आखिरी बहस 3 मई को प्रारम्भ हुई थी। पहले दिन याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और बिलासपुर और रायपुर स्मार्ट सिटी कम्पनियों की तरफ से अधिवक्ता सोमेश बजाज ने बहस की। 4 मई को बिलासपुर और रायपुर नगर निगमों की सामान्य सभा और मेयर इन कौंसिल तथा राज्य और केंद्र सरकार की और से अधिवक्ता अशोक वर्मा, हर्षवर्धन, सुदीप अग्रवाल, उप महाधिवक्ता हरप्रीत अहलुवालिया और उप सॉलिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा ने बहस की। शुक्रवार 5 मई को याचिकाकर्ता की और से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने अपना प्रतिउत्तर दिया। सुनवाई के बाद खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

 

 

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