सितम्बर 2018 में लागू एक्ट के अंतर्गत देश में पहली कार्रवाई

बिलासपुर। एचआईवी पीड़िता की पहचान उजागर करने, उसे एड्स रोगी कहकर अपमानित करने तथा नौकरी, भोजन और आश्रय से वंचित करने के मामले में बिलासपुर पुलिस ने एक सुधार गृह अधीक्षिका व एक रेस्टारेंट संचालिका के खिलाफ एचआईवी विक्टिम प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 34 के तहत अपराध दर्ज किया है। देश में यह संभवतः यह पहला मामला है, जिसमें इस एक्ट के तहत अपराध दर्ज हुआ। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो को इसका डेटा दर्ज करने के लिए पुलिस ने पत्र लिखा है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ता पीड़ित के पुनर्वास के लिए अभी काम कर रहे हैं।

घटना पंजाब से यहां आकर रह रही एक निःशक्त व जन्म के समय से ही एचआईवी पीड़ित 25 वर्षीय युवती की है। उसका यहां पर कोई नहीं था. वह किसी परिचित के कहने पर यहां जॉब ढूंढते हुए आ गई थी। इसे महिला बाल विकास विभाग ने पहले तो सखी सेंटर में रखा, फिर वहां ज्यादा दिन तक रखने का नियम नहीं होने के कारण कुम्हार पारा स्थित महिला बाल विकास विभाग के सुधार गृह में दाखिला दिलाया गया। दाखिल करने के बाद उसके पहचान पत्र, प्रमाण पत्र आदि की मांग की गई। इससे पता चल गया कि वह एचआईवी पाजिटिव्ह से ग्रस्त है। जैसे ही अधीक्षिका को पता चला तो पीड़िता के कपड़े, बिस्तर, बर्तन अलग कर उसे अलग रहने कह दिया गय़ा। उसे खाना भी नहीं दिया गया। एक पूरे दिन तो वह सिर्फ एक पैकेट बिस्कुट में रही। इधर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल से युवती को सिविल लाइन थाने के पास स्थित एक रेस्तरां में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई। तीन दिन तक रेस्तरां की मालकिन ने उसके काम की बेहद तारीफ की, लेकिन चौथे दिन उसे कहा गया कि वह यहां नौकरी नहीं कर सकती। वजह यह है कि वह एड्स पीड़िता है। युवती ने समझाने की कोशिश की कि वह एड्स पीड़िता नहीं है सिर्फ एचआईवी पीड़ित है। उसे कोई छुआछूत की बीमारी नहीं है। इसके बावजूद रेस्तरां की संचालिका ने उसे नौकरी से निकाल दिया।

सामाजिक कार्यकर्ता व एडवोकेट प्रियंका शुक्ला, रिंकू अरोरा, विजय अरोरा, अनुज श्रीवास्तव व महेन्द्र दुबे इस पीड़िता को लगातार न्याय दिलाने की कोशिश कर रहे थे। जब युवती को नौकरी से निकाला गया तो पीड़िता ने उनसे सम्पर्क किया। एडवोकेट प्रियंका शुक्ला ने बताया कि चूंकि सुधार गृह की अधीक्षिका के अलावा एचआईवी ग्रस्त होने की जानकारी किसी को थी नहीं, इसलिये रेस्तरां संचालिका को खबर उसी द्वारा दिये जाने की संभावना थी, क्योंकि सुधार गृह में उससे भेदवाव किया जा रहा था।

एडवोकेट शुक्ला ने बताया कि पूरे मामले को लेकर वह दो बार कलेक्टर डॉ. संजय अलंग से मिलने गई। उन्होंने तब जाकर 29 दिसंबर को बाल विकास विभाग के अधिकारियों को जांच का आदेश दिया। इसमें अधीक्षिका के खिलाफ शिकायत सही पाई गई। इसी तरह संचालिका ने नौकरी से निकाले जाने की बात मानी। प्रिंयका शुक्ला का कहना है कि कलेक्टर से उनसे जैसी मदद की अपेक्षा थी, वह नहीं मिली। उन्होंने जब सुधार गृह में भेदभाव की बात कही तो खुद ही पूछा कि उसे अब कहां रखा जाये। जबकि वे चाहते तो अधिकारियों को निर्देशित कर सकते थे। निःशक्त केन्द्र में रखने से उन्होंने इस आधार पर मना किया कि युवती के पास विकलांगता प्रमाण पत्र नहीं है, जबकि व विकलांग है, यह कलेक्टर मिलने के दौरान देख भी रहे थे। पैरों में समस्या होने के बावजूद युवती को कलेक्टर के सामने अपनी फरियाद खड़े-खड़े ही करनी पड़ी। युवती की पुनर्वास और उसके लिए दवाइयों की समस्या अभी भी बनी हुई है। अधिवक्ता ने कहा कि फिलहाल हम लोग कुछ साथियों के साथ उसकी जरूरतों का ध्यान रख रहे हैं।

अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला ने पुलिस अधिकारियों को एचआईवी तथा एड्स पीड़ितों के लिए बने एक्ट 34 की जानकारी दी और सिविल लाइन थाने में जाकर अधीक्षिका व रेस्तरां की संचालिका के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। 2017 का यह एक्ट बीते साल सितम्बर माह से प्रभावी हो चुका है। इसके तहत पीड़ितों से भेदभाव करने, अपमानित करने, पहचान उजागर करने पर तीन माह से दो साल तक की सजा हो सकती है। साथ ही एक लाख रुपये का जुर्माना भी हो सकता है।

 

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