बिलासपुर। कांग्रेस और भाजपा का धुआंधार प्रचार अभियान इस संसदीय सीट में सीधी टक्कर की स्थिति तो बना रहा है पर मुकाबला कांटे का हो गया है। कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव 27 साल बाद इतिहास पलटने के लिए तो भाजपा प्रत्याशी अरुण साव जीत का सिलसिला बनाये रखने के लिए मैदान में हैं। अपने सबसे मजबूत गढ़ में भी अजीत जोगी की पार्टी ने प्रत्याशी खड़ा नहीं किया। अब जिसके पाले में उनके वोट जायेंगे, जीत का सेहरा उनके माथे पर ही बंधेगा।

कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव भाजपा सरकार के 60 महीने और छत्तीसगढ़ सरकार के 60 दिनों की तुलना अपने प्रचार अभियान में कर रहे हैं। वे यह बता रहे हैं कि पांच साल में नोटबंदी, जीएसटी, के चलते किसानों-व्यापारियों की कमर टूट गई। राफेल सहित भ्रष्टाचार के अनेक मामले सामने आए। छत्तीसगढ़ की पिछली सरकार ने भ्रष्टाचार और अहंकार के रिकॉर्ड तोड़ दिये। श्रीवास्तव प्रदेश सरकार के फैसलों के नाम पर भी वोट मांग रहे हैं, जिनमें कर्ज माफी, धान का समर्थन मूल्य, बिजली बिल आधा करना तथा हजारों पदों पर नई भर्तियां करना शामिल है। प्रत्येक गरीब परिवार के लिए सालाना 72 हजार रुपये की घोषणा तथा 22 लाख पदों पर भर्ती की बात को भी वे चुनावी सभाओं में रख रहे हैं।

दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी अरुण साव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कड़े फैसले लेने वाली सरकार बता रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और सर्जिकल स्ट्राइक को जनता के सामने रखा है। स्वच्छता मिशन, उज्ज्वला और उजाला योजना उनके भाषणों में है। किसानों और व्यापारियों के लिए संकल्प पत्र में पेंशन की घोषणा की जानकारी भी वे मतदाताओं को दे रहे हैं।

दोनों ही प्रत्याशी अपने शीर्ष नेताओं के बलबूते मैदान पर उतरे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी के लिए छत्तीसगढ़ सरकार और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम तो भाजपा प्रत्याशी प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी की छवि सहारा है।

दोनों ही प्रत्याशी पहली बार मैदान में हैं। नगर निगम पार्षद और जनपद पंचायत सदस्य के चुनाव में दोनों हारे हुए हैं, चुनावी अनुभव बस इतना ही है। इसके बावजूद दोनों चेहरे पहचाने हुए हैं। बिलासपुर में कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव को हर कोई जानता है। बीते साल विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस भवन में लाठी चार्ज किया गया था। इसमें श्रीवास्तव घायल हुए थे। तब से वे न केवल बिलासपुर जिले में बल्कि प्रदेश में भी चर्चा में आ गये थे। वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी लोगों में से एक हैं। बिलासपुर में बघेल का स्वागत वे बीते कई वर्षों से करते आ रहे हैं और बघेल भी उन्हें अपने बगल में ही रखते हैं। विधानसभा चुनाव की टिकट उन्हें मिलेगी, ऐसी चर्चा जोरों पर थी। नहीं मिली, शैलेष पांडेय को मिली और वे 20 साल से प्रतिनिधित्व कर रहे कद्दावर तत्कालीन मंत्री अमर अग्रवाल को हराने में सफल रहे। विधानसभा में टिकट से वंचित होने की भरपाई उन्हें लोकसभा टिकट देकर की गई है।

भाजपा शासनकाल में प्रदर्शन, धरना, गिरफ्तारी, जेल के बाद अटल श्रीवास्तव एक और लड़ाई में उतर चुके हैं। उन्हें जीत मिलती है तो विधानसभा चुनाव की तरह ही ये ऐतिहासिक होगी, क्योंकि खेलनराम जांगड़े के बाद लगातार यहां से भाजपा चुनाव जीतती रही है।

भाजपा से पुन्नूलाल मोहले, दिलीप सिंह जूदेव जीतते रहे। सन् 2014 में तो लखन लाल साहू ने पौने दो लाख मतों से कांग्रेस प्रत्याशी करूणा शुक्ला को हराया। रणनीति के तहत लखन साहू भी अन्य भाजपा सांसदों की तरह इस बार टिकट से वंचित हो गये पर उसी समाज के अरूण साव मैदान में उतारे गये हैं। बिलासपुर शहर मे उन्हें सिर्फ हाईकोर्ट अधिवक्ता के रूप में जाना जाता रहा है, पर ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी जान-पहचान बखूबी बनी हुई है। विधानसभा क्षेत्र मुंगेली, लोरमी, तखतपुर, कोटा व बिल्हा में उन्हें हर एक भाजपा कार्यकर्ता जानता है।  जनसंघ के दौर में जिन गिनती के लोगों ने पार्टी को खड़ा करने के लिए काम किया, उनमें साव के पिता अभयराम साव भी शामिल थे। वे मदनलाल शुक्ला, लखीराम अग्रवाल, निरंजन केशरवानी जैसे बड़े नेताओं के सहयोगी रहे। अरूण साव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में सालों तक सक्रिय थे। वे अमर अग्रवाल की अध्यक्षता वाली जिला भाजपा युवा मोर्चा में भी महामंत्री रहे। आरएसएस से उनका गहरा जुड़ाव है। पिछले कुछ सालों से सक्रिय राजनीति से अलग रहते हुए उप-महाधिवक्ता के रूप में काम करते रहे।

खास बात है कि दोनों ही प्रत्याशी युवा हैं और वे दोनों प्रचार अभियान बड़ी मेहनत से चला रहे हैं। अरुण साव को भाजपा और आरएसएस का समर्पित, संगठित रूप से साथ मिल रहा है। सांसद लखन लाल साहू, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल, विधायक रजनीश सिंह, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी और पुन्नूलाल मोहले अपने-अपने इलाकों में पार्टी का काम मानकर उनका प्रचार कर रहे हैं। भाजपा के लोगों में यह जीत नाक का सवाल है। जिस तरह से पौने दो लाख वोटों से जीते हुए लखन लाल साहू की टिकट भी काट दी गई, हाईकमान के सामने कद्दावर नेताओं की घिग्घी बंधी हुई है। भाजपा नेताओं का मानना है कि प्रदेश में बुरी तरह हार जाने के बाद कम से कम दिल्ली में तो साख बची रहे।

अटल के पास भी अपनी ही टीम है। कई वरिष्ठ कांग्रेसी प्रचार अभियान से दूर हैं, पर कांग्रेस में ऐसा होता रहा है। विधानसभा चुनाव में शैलेष पांडेय भी अपनी ही टीम के भरोसे प्रचार करते रहे और भाजपा को पटखनी देने में सफल हो गये। अटल के समर्थक उन्हें अभी से जीता हुआ मानकर चल रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि लड़ाई कठिन है।

कांग्रेस के लिए यह लड़ाई कुछ हद तक छत्तीगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) द्वारा उम्मीदवार खड़ा नहीं करने के कारण आसान हो गई है। विधानसभा चुनाव में लोकसभा की आठ सीटों पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ने तीन लाख 27 हजार वोट हासिल किये थे, जो प्रदेश की किसी भी संसदीय सीट में सर्वाधिक थी। इनमें बड़ी संख्या कांग्रेस से टूटे हुए वोटों की थी, बसपा के भी थे। बिलासपुर के अलावा कोरबा में इस पार्टी के लिए संभावनाएं थीं, पर जोगी ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया। संभवतः इसके पीछे कार्यकर्ताओं में बिखराव और बहुजन समाज पार्टी द्वारा उम्मीदवार घोषित करने के मामले में लिया गया एकतरफा फैसला, कारण था।

बिलासपुर सीट को लेकर सब में कौतूहल है कि आखिर विधानसभा में कांग्रेस से टूटे वोट और बसपा के वोट किधर जायेंगे। तखतपुर, मुंगेली और मस्तूरी में हमेशा ही विधानसभा चुनावों के दौरान बसपा का प्रदर्शन अच्छा रहा है, पर बीते लोकसभा चुनावों में नहीं। बेलतरा (पुरानी सीट सीपत) ने तो बहुजन समाज पार्टी का विधायक भी दिया। छजकां ने बसपा को समर्थन देने की बात कही है। बसपा उम्मीदवारों के पर्चा भरने के जुलूस में छजकां के नेता मौजूद भी रहे। पर यह जोगी कांग्रेस का एकतरफा लगाव दिखाई दे रहा है। जोगी की पार्टी से लोग सिर्फ जोगी के कारण जुड़े हैं। बसपा को जिले के जोगी के कार्यकर्ता साथ देंगे, इसकी संभावना क्षीण है। जोगी की पार्टी को चुनाव के पहले खूब झटके भी लगे। जीते हुए दो विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर व डॉ. रेणु जोगी को छोड़कर उनकी पार्टी के बाकी विधानसभा प्रत्याशी सियाराम कौशिक, संतोष कौशिक, चंद्रभान बारमते और ब्रजेश साहू साथ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इन्होंने बड़ी संख्या में कांग्रेस के वोट काटे थे, जिसका नतीजा भी निकला कि कांग्रेस को सिर्फ दो विधानसभा सीटों बिलासपुर और तखतपुर में जीत मिल पाई। इसी वजह से उनकी घर वापसी का कांग्रेस के हारे प्रत्याशियों और कई बड़े नेताओं ने बहुत विरोध भी किया था। अब जब वे कांग्रेस में ले लिये गए हैं, इन्हें अपने खाते में पड़े वोट कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में दिलाने होंगे।

स्थिति ऐसी नहीं है कि जोगी कांग्रेस के वोट सब कांग्रेस की ओर मुड़ जायें। इन वोटों में बड़ी संख्या बसपा की भी थी, जिसके प्रत्याशी उत्तम गुरु मैदान में उतर चुके हैं। लोरमी, मुंगेली, पथरिया, जरहागांव और आंशिक रूप से तखतपुर में बसपा का अच्छा असर देखा गया है। इन्हीं सब इलाकों में अरुण साव जाना-पहचाना चेहरा भी है। इस तरह से वोटों का बिखराव तय है। ये बिखराव जिसके पक्ष में होगा, जीत उसी की होगी।

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