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आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिये अनेक कानून, उत्पीड़न पर भी दंड के कड़े प्रावधान

विधिक सहायता शिविर, विश्व आदिवासी दिवस पर बिलासपुर में।

विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी अधिकारों और विधिक सहायता पर जागरूकता शिविर

बिलासपुर। शासकीय प्रीमैट्रिक थ्री यनिट आदिवासी बालक एवं बालिका छात्रावास में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के उत्पीड़न रोकने संबंधित कानूनों एवं उन्हें मिलने वाले निःशुल्क विधिक सहायता की जानकारी देने के लिये विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर की अध्यक्ष, जिला न्यायाधीश सुषमा सावंत के मार्गदर्शन में सचिव डॉ. सुमित कुमार सोनी द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को यह शिविर रखा गया। शिविर में डॉ. सोनी ने बताया कि छुआछूत की घटनाओं को रोकने के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न एवं छुआ-छूत निवारण) अधिनियम 1989 है। यदि कोई व्यक्ति जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है तो वह उत्पीड़न के अपराध के लिए दंड का अधिकार है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्य को किसी अखाद्य अथवा हानिकारक पदार्थ पीने या खाने के लिए बाध्य करना, क्षति पहुंचाने, अपमान करने, परेशान करने के आशय से उसके परिसर अथवा पड़ोस में मैला, कूड़ा, पशुओं की लाशें अथवा अन्य कोई हानिकारक पदार्थ एकत्रित करना, बलपूर्वक कपडे उतारता है, घुमाता है, शरीर पर रंग लगाता है, जो प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है और आबंटित भूमि को दोषपूर्ण ढंग से कब्जा करता है, या बेदखल करता है या उनके भूमि पर हस्तक्षेप करता है या भूमि अथवा पानी पर कब्जा करता है या बालश्रम या बंधुआ मजदूरी के लिये बाध्य करता है तो वह अपराध है। इन सदस्यों के विरूद्ध झूठी शिकायते तथा फौजदारी मामले प्रस्तुत करता है इन जाति के सदस्यों को मत देने व नही देने से रोकता है, लोक सेवकों को झूठी सूचना देता है, इन जाति के सदस्यों को अपमानित करता है डराता है, इन जाति की महिला पर लज्जा भंग व उसका निरादर करता है व बलप्रयोग करता है या किसी महिला का शोषण करता है तथा इस जाति के सदस्य को अपना घर छोडने के लिए बाध्य करता है तो अनुसूचित जाति एवं जनजाति में उत्पीड़न अपराध करने के लिए व्यक्ति को 6 माह से 05 वर्ष तक की कारावास की सजा व जुर्माना दोनों हो सकता है।

यदि कोई इस अधिनियम के तहत जानबूझकर कोई झूठा साक्ष्य देता है तो एक वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों के उत्पीड़न को रोकने के लिए विशेष सत्र न्यायालय की स्थापना की गई है तथा पीडि़त परिवारों को शासन द्वारा मुआवजा देने का भी प्रावधान है।

सचिव, डॉ. सोनी ने नालसा (आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण और परिवर्तन के लिए विधिक सेवाएं) योजना 2015 की जानकारी दिया गया। साथ ही उन्हें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा मुद्रित पुस्तकें, पम्फलेट इत्यादि का वितरण किया गया।

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