डॉ. कुमार विश्वास का युवाओं से आह्वान, पहुंचे डीपी विप्र महाविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह में

विधायक शैलेष पांडेय ने विस्तृत परिसर के लिए भूमि आवंटन का प्रयास करने का आश्वासन दिया, डीम्स यूनिवर्सिटी के लिए मांग रखी

बिलासपुर। प्रख्यात कवि, लेखक और वक्ता डॉ. कुमार विश्वास ने युवाओं से आह्वान किया है कि वे अपने जीवन में लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने आत्म-बल को सदैव ऊपर रखें, जिज्ञासा और सीखने की आदत को अपनाएं और संघर्षों का सम्मान करें।

डीपी विप्र महाविद्यालय के स्वर्ण जयंती वर्ष पर आयोजित समारोह में पहुंचे डॉ. विश्वास ने कॉलेज के छात्र-छात्राओं और प्रोफेसरों के बीच करीब एक घंटे तक अपने विचार रखे। उन्होंने कोई दीवाना कहता है… जैसी लोकप्रिय कुछ कविताएं भी सुनाईं। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता शहर के विधायक शैलेष पांडेय ने की। प्रशासनिक समिति के अध्यक्ष अनुराग शुक्ला और अन्य पदाधिकारी तथा बड़ी संख्या में छात्र छात्रा इस मौके पर उपस्थित थे।

डॉ. विश्वास ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, महागठबंधन के नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल पर इशारों-इशारों में कटाक्ष किया।

अपने भाषण की शुरूआत में ही उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम और संस्था ब्राह्मण समाज का नहीं, द्विज लोगों का है। द्विज यानि जो दो बार जन्म लेता है। एक बार माता की कोख से, दूसरी बार गुरु से ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद। जो विद्वान हो वही द्विज अथवा ब्राह्मण कहलाता है। एक युवा हाथी को एक बार उन्होंने पतली सी जंजीर से खूंटे में बंधा देखकर उन्होंने महावत से पूछा कि यह जंजीर तो हाथी आसानी से तोड़ सकता है, पर आपने उसे इसके सहारे कैसे कैद कर रखा है। महावत ने बताया कि जब हाथी, शावक था तब उसमें इतनी शक्ति नहीं थी। उस जंजीर को उस समय उसने छुड़ाने की कोशिश बहुत की। तब उसे मान लिया कि अब इस जंजीर से वह छूट नहीं पायेगा। यही हाल जड़ता में पड़े लोगों का है। कोई जंजीर आपके दिमाग में बंधी है तो हम जड़ हो जाते हैं। या तो हम पागलपन की हद तक परिश्रम करें या फिर अध्ययन करें, तभी यह जड़ता टूट सकती है। सोना, जागना, भोजन करना और टहलना यह तो पशु भी कर लेते हैं। हम मनुष्य ही हैं जिसे जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये और जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। उन्होंने अकबर इलाहाबादी का शेर पढ़ा-

हम क्या कहें अहबाब, क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए

बी-ए हुए, नौकर हुए, पेंशन मिली फिर मर गए

*अहबाब-दोस्तों, *कार-ए-नुमायां-साहस का काम

डॉ. विश्वास ने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बावजूद अपनी हिन्दी साहित्य और कविता में  रूचि के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मुझे संघर्ष करना पड़ा। जब पिताजी को पता चला कि मैं इंजीनियर नहीं बनना चाहता, उन्होंने मुझसे कह दिया कि 21 वर्ष की उम्र तक तुम्हें भोजन और कपड़े घर से मिलेंगे, लेकिन उसके बाद आगे का रास्ता तुम्हें खुद तय करना पड़ेगा। चूंकि लक्ष्य ही बना रखा था कि हिन्दी कविताओं और साहित्य पर ही काम करना है, उन्होंने पिता की बात मंजूर कर ली। पहली बार उन्हें नंदन में दो छोटी-छोटी कहानियां लिखने का मौका मिला, जिससे मिले पैसों से वह कॉलेज में एडमिशन ले सके। कार्यक्रम में उपस्थित विधायक पांडेय का उल्लेख करते हुए कहा कि इन्होंने भी इंजीनियरिंग की लेकिन वे आज शहर के विधायक हैं। मैंने भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की पर आज हिन्दी को प्रतिष्ठित करने के काम में लगा हूं। क्योंकि यह हमारा जुनून था। लक्ष्य को हासिल करने के लिए आत्मबल ऊंचा था।

डॉ. विश्वास ने कहा कि विद्यार्थियों में जिज्ञासा का होना जरूरी है। सेब को पेड़ से नीचे गिरते तो सभी देखते थे लेकिन यह क्यों गिरता है, इसे न्यूटन ने प्रतिपादित किया। इसके चलते आज हम हवाई जहाज को आसमान में उड़ा पाते हैं और जिसके कारण मनुष्य चांद पर जाने की योजना बनाता है।

उन्होंने कहा कि पश्चिम के विपरीत भारत में जिज्ञासा का आदि काल से सम्मान रहा है। शिष्य भी अपने गुरु से प्रश्न कर सकता है कि आप कौन हैं, जो मेरे गुरु बन रहे हैं। गुरु यह बताता है कि गुरु, शिष्य और सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म है। उन्होंने कथा सुनाई कि हनुमान ने भूख लगने पर सूर्य का गोला निगल लिया था, यह जिज्ञासा ही थी। उन्हें सम्मान मिला-अतुलित बल धामा। इसके बाद भी हनुमान को उसकी शक्ति का स्मरण कराने के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती रही, जो उन्हें जामवन्त के रूप में मिला। हम में जिन लोगों ने भी किंचित भी सफलता प्राप्त की है, उसका कोई न कोई गुरु होता है। बीती गर्मी में वे लंदन गये, तो बेटी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लेकर गये। 1200 साल पुराने इस महल जैसी इमारत में अलग-अलग संकायों के अनेक शिलालेख थे। इन शिलालेखों में दर्जनों नाम नोबल पुरस्कार विजेताओं के हैं। मैं बेटी को वहां सिर्फ इसलिये लेकर गया,क्योंकि मैं चाहता था, उसके मन में जिज्ञासा पैदा हो। हो सकता है सौ दो सौ साल बाद इस डीपी विप्र महाविद्यालय को भी लोग इसी तरह याद करें। यह ज्ञान की महत्ता है। डॉ. विश्वास ने कहा कि इस महाविद्यालय में मेरा उपस्थित होना सार्थक हो जायेगा, यदि आप में से एक भी अपना आत्मबल मजबूत कर ले और लक्ष्य को हासिल कर ले।

डॉ. विश्वास ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सुदर्शन नहीं थे। लच्छेदार भाषण भी नहीं देते थे लेकिन जब उनका निधन हुआ तो पूरा देश रोया। कलाम के प्रति देश का इतना लगाव, प्रेम क्यों था? कारण यह है कि 70-80 के दशक में एक मिसाइल का इंजन और तकनीक लेने के लिए जब 100 करोड़ की आबादी वाला भारत देश रूस और अमेरिका के सामने गिड़गिड़ाता रहता था, उस समय इस साधारण सी कमीज पहनने वाले ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने खड़े होकर कहा कि हमें थोड़ा सा समय दे दीजिये, हम इतने मिसाइल छोड़ेंगे कि सब राष्ट्र हमारे सामने खड़े हो जायेंगे कि स्वर्ग के सम्राट को भी इसकी खबर हो जायेगी। आज दुनिया के 40-50 देशों के लिए भारत के श्री हरिकोटा से मिसाइल छोड़े जाते हैं। भारत रत्न क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने दुनिया भर के खिलाड़ियों को भयभीत करने वाले क्रिकेटरों के सामने क्रीज पर जमे रहकर अपना लोहा मनवाया।  यह उनके संकल्प और आत्मबल की कहानी है। इसलिये यदि इस कॉलेज की डिग्री से बढ़कर कोई चीज है तो वह आत्मबल है। दुनिया के सबसे बड़े विजेताओं के पास यही एक सबसे बड़ी शक्ति है। डॉ. विश्वास ने छात्रों से कहा कि उन्हें भी अगर कुछ माना जाता है तो इसलिये कि 15 साल पहले हिन्दी में लिखने वालों को जब 1100 रुपये का कुर्ता पैजामा वाला कवि समझा जाता था तब उन्होंने हिन्दी को दुनिया भर में प्रतिष्ठित करने की कोशिश की और यहां तक पहुंचे।

उन्होंने कहा कि सन् 2014 में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत का कारण यही था कि वह लोगों को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि वह एक सामान्य परिवार से है और चाय बेचते थे। चुटकी लेते हुए डॉ. विश्वास ने कहा कि यह बात अलग है कि उनके चाय की स्टाल को किसी ने नहीं देखा, पर लोगों ने मान लिया कि उन्होंने चाय बेची। आज यह पता चल रहा है कि उन्होंने कुछ और बेच दिया।

डॉ. विश्वास ने कहा कि रावण को सहस्त्रबाहु ने भी हराया, बाली ने भी हराया था लेकिन प्रतिष्ठा राम की है क्योंकि वह घर से निष्कासित एक युवा था, जिसकी पत्नी को भी रावण उठा कर ले गया था।

कवि डॉ. विश्वास ने कहा कि किसी को हतोत्साहित करना हो तो उसके आत्मबल पर प्रहार किया जाता है। हनुमान ने रावण से कहा कि मैं तुम्हें जानता हूं, वही हो जिसे सहस्त्रबाहु ने हराया था। रावण का आत्मबल तुरंत गिर गया। कोई पाकिस्तानी पूछे कि मुझे जानते नहीं?  यदि आप कहें कि हां हमने तुम्हारे 99 हजार सैनिकों को बांग्लादेश के युद्ध में बंधक बनाया था, उन लोगों ने हमारे जनरल के सामने समर्पण किया था। वह पाकिस्तानी तुरंत अपनी हैसियत समझ लेगा।

उन्होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि अपने आत्मबल को बड़ा करो, तुम अपने आपको शीशे में निहारोगे तो पाओगे तुम में ही विवेकानंद है। तुम्हारे अंदर ही वह शक्ति है जो देश का सर्वश्रेष्ठ नागरिक पैदा कर सकता है। कोई कारण नहीं है कि जीत आपके सामने नतमस्तक न हो। इस महाविद्यालय की स्थापना करने वाले लोग हों या कोई भी बड़ा काम करने वाले लोग, वे किसी नगर सेठ के घर में पैदा नहीं हुए, सामान्य घरों के लोग ही थे। आत्मबल के सामने आत्मसमर्पण मत करिये।

उन्होंने कहा कि दो चीजों पर हमेशा कायम रहना चाहिए जो कुछ हमें मिल रहा है प्रभु की इच्छा से मिला, जो कुछ हमसे छिन गया वह भी प्रभु की इच्छा थी। आप दिल्ली के विश्वविद्यालयों और कॉलेज की बड़ी बिल्डिंगों से आकर्षित नहीं होना, आप यहां पर हैं यहीं से आप विशेष है। राम अपने पिता से लड़कर अयोध्या में रह गये होते तो केवल युवराज होते, लेकिन पिता की आज्ञा मानकर वनवास पर गये तो मर्यादा पुरुषोत्तम बन गये।

डॉ. विश्वास ने कहा कि महत्वाकांक्षा का अर्थ अपने लक्ष्य को ऊंचा रखना है और लालच वह है जिसमें आप अपने आत्मसम्मान के साथ सौदा करके पैसा या पदवी पाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि मेरे पास कोई सरकारी अवार्ड नहीं है, यहां तक कि किसी नगर निगम का भी नहीं। जैसे हमारे कर्म है, उसमें संभावना नहीं। हमें आपका प्रेम मिला है, जो पद्मश्रियों को भी नहीं मिला। हम लालच से दूर रहे, महत्वाकांक्षा और लक्ष्य को सामने रखकर चले।

उन्होंने डीपी विप्र कॉलेज के प्राध्यापकों और संचालन में लगी टीम  को आगाह किया कि संस्थान बड़े मुश्किल से बनते हैं पर विनाश होने में एक क्षण भी नहीं लगता। हो सकता है आपको इस संस्थान के कुछ फैसलों से असहमति हों, पर जब इसे आप छोड़कर जाएं तो यहां के पेड़ पौधें भी याद रखें कि उसकी जड़ों को आपने सींचा है। देश के किसी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ा रहा छात्र बता सके कि मुझे फलां गुरुजी ने पढ़ाया। उन्होंने इस संदर्भ में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषण की सख्ती का उदाहरण दिया कि किस तरह उन्होंने चुनावी खर्च पर लगाम कसी। बीते चार सालों में देश में संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ता और विश्वसनीयता पर हुए प्रहार पर भी डॉ. विश्वास ने चिंता जताई और कहा कि सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, ईडी, चुनाव आयोग ये सब बड़ी मुश्किल से बने हैं। ये दो चार व्यक्तियों का समूह नहीं है, हजारों लोगों की तपस्या है। ये अगर नष्ट हो जाएं तो आपको इन्हें बनाने में फिर बहुत समय लग जायेगा।

डॉ. विश्वास ने युवाओं से आह्वान किया कि वे राजनीति में व्यक्तियों की पूजा बंद करें। कोई अपने आपको मोदी का फैन कहता है, कोई योगी का कोई राहुल का तो कोई और मेरे वाले का (केजरीवाल) तो कोई मेरा भी तो कोई और किसी का। इस प्राथमिकता को बदलिये। आज देश की राजनीति इसीलिये बुरी स्थिति में है। ऊपर से नीचे तक इस प्रक्रिया को बदलें। आज सबसे ऊपर नेता हो गये, फिर दल है फिर कार्यकर्ता और उसके बाद सबसे नीचे देश है। इसलिये हर नेता अमीर है। उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विधायक शैलेष पांडेय की ओर भी चुटकी लेते हुए कहा कि मैं नहीं जानता, आज आपकी क्या स्थिति है और पांच साल बाद क्या रहेगी।

उन्होंने कवि कैलाश गौतम की पंक्तियां पढ़ीं-

सुनता हूं जिस दिन मिला पांच लाख अनुदान

नई जीप में बैठकर घर लौटे परधान

कल कोलकाता में हुई रैली पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जिनके घरों में लोकतंत्र नहीं है, वे इसे बचाने चले हैं। उनके दादा, पार्टी के मालिक थे, बेटा, फिर उसके बाद पोता पार्टी का मालिक हो गया। ये लोकतंत्र और देश को खतरे में बता रहे हैं। दरअसल, उनकी पीढ़ियां ही खतरे में है। राजनीति में भ्रष्टाचार पर डॉ. विश्वास ने कहा कि एक बार विधायक, मंत्री बन जाने के बाद तीन-तीन पीढ़ियां बैठकर खाती हैं। किसी को भी मानकर नहीं चलना चाहिए कि सत्ता अमर है। रमन राज में अमन राज चलता था, यह भी सब को मालूम है।

डॉ. विश्वास ने विद्यार्थियों को एजुकेशन (शिक्षा) में लर्निंग (सीखने) का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि एजुकेशन आपको सदैव ही केवल जीवित रहने लायक काम देगी, लर्निंग आपको जिंदा रखेगी। इन दोनों में अंतर है। उन्होंने शायर राजेश रेड्डी की पंक्तियां पढ़ीं-

किसी दिन ज़िन्दगानी में करिश्मा क्यों नहीं होता।

मैं सुबह जाग तो जाता हूं, जिन्दा क्यों नहीं होता।

जागने वाले बहुत हैं, पर जिंदा लोग बहुत कम हैं। जिंदा लोग अपने चारों तरफ का परिवेश बदल सकते हैं। डॉ. विश्वास ने अपनी मां का जिक्र इस संदर्भ में किया और कहा कि उन्होंने कहीं से खाना बनाने का प्रशिक्षण नहीं लिया, पर अपनी मां से सीखा। मां ने अभ्यास को कसा और साधा। उन्होंने कॉलेज के युवाओं से आह्वान किया कि जिन्दगी में लर्निंग यानि सीखने की प्रक्रिया को बड़ी करिये।

कॉलेज की छात्राओं की ओर मुखातिब होते हुए डॉ. विश्वास ने कहा कि संस्कृत के दुहिता शब्द का अर्थ वे यह नहीं मानते कि लड़कियों को दूर रखने में हित है। वे मानते हैं कि लड़कियां दो कुलों का हित करती हैं। इस समय टीवी सीरियल्स के जरिये हमारी संस्कृति पर हमला हो रहा है। जो गहने, कपड़े, ब्रांड हमें दिखाये जा रहे हैं वे हमारी आपके बीच की हकीकत नहीं है। ये सीरियल महानगरों के बाजार के लिए है। इनमें रोटी और रोजगार की जद्दोजहद दिखाई नहीं देती है। आप अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें। पिता या पति का नाम साथ रखे बिना अपने अस्तित्व और लक्ष्य पर विचार करें।

डॉ. विश्वास ने कहा कि दूसरों को मारकर जो खाये वह विकृति है, वो अपना खाये- हम अपना खायें ये प्रकृति है और दूसरा खा सके यह चिंता करके मैं खाऊं यह संस्कृति है। कैंपस में समाजवाद रखिये, चाहे नगर सेठ का लड़का हो, नेता का हो या किसी आईएएस का लड़का हो। उसकी गुणवत्ता के अनुसार उसका सम्मान करें। ये देखें कि वो कैसा है। टीम में काम करने की आदत डालें। संघर्ष न करना पड़े अच्छी बात है, पर संघर्ष है तो उसका सम्मान करें।

कार्यक्रम के प्रारंभ में प्राचार्य सुनंदा तिजारे व कॉलेज के चेयरमेन अनुराग शुक्ला ने अतिथियों का स्वागत किया और महाविद्यालय के 50 साल के सफर के बारे में विचार रखे। उन्होंने बताया कि पचास साल पहले 160 छात्रों से रात्रिकालीन महाविद्यालय के रूप में इसे स्थापित किया गया था। आज इसके तीन कॉलेज हैं और यूजीसी से इसे ए ग्रेड कॉलेज का दर्जा मिला हुआ है।

विधायक शैलेष पांडेय ने अपने अध्यक्षयीय उद्बोधन में कहा कि इस महाविद्यालय की स्थापना उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए 50 साल पहले, ऐसे समय में हुई जब सरकार के पास संसाधनों की बहुत कमी होती थी। आज यह छत्तीसगढ़ के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक है। उन्होंने प्रशासनिक समिति से कहा कि वे एक प्रस्ताव बनाकर दें ताकि बजट सत्र में इस महाविद्यालय के लिए एक बड़ी जमीन उपलब्ध कराने की मांग कर सकें ताकि अधिकाधिक छात्र यहां अध्ययन कर सकें। उन्होंने डॉ. विश्वास से अपील की कि इसे वे केन्द्र सरकार के समक्ष डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दिलाने का प्रयास करें।

अपने उद्बोधन के आखिरी हिस्से में अपनी कुछ लोकप्रिय रचनाओं जैसे-कोई दीवाना कहता है…का पाठ भी कवि डॉ. विश्वास ने किया।

पूरे भाषण व कविता पाठ के दौरान कॉलेज प्रांगण में उपस्थित कई हजार छात्र-छात्राओं लगातार तालियां बजा रहे थे।

कालेज के छात्र-छात्राओं ने इस अवसर पर लोक नृत्य, कथक नृत्य, सरस्वती वंदना तथा देशभक्ति गीतों की प्रस्तुति दी। इस मौके पर स्वर्ण जंयती स्मारिका का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक मधुसूदन तम्बोली ने दिया।

 

 

 

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