बिलासपुर। शहर के नजदीक कोपरा जलाशय में शुक्रवार को बार हेडेड गूज़ पक्षियों ने आज सुबह हजारों की संख्या में डेरा डाल लिया है। यदि उन्हें इस बीच कोई व्यवधान नहीं पहुंचा तो वे अप्रैल तक रुकेंगे और अपने देश मंगोलिया की ओर लौटेंगे।

कोपरा जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए काफी सूकून की जगह है। यहां साइबेरिया सहित कई इलाकों से 150 प्रकार के देशी-विदेशी पक्षियों का डेरा लगा रहता है। जब हजारों की संख्या में वे आसमान पर कतारबद्ध उड़ते हैं और जलाशय में भोजन खोजते, क्रीड़ा करते हुए दिखाई देते हैं तो दृश्य बड़ा मनमोहक होता है। शहर के लोग भी बड़ी संख्या में उनका विहार देखने पहुंचते रहते हैं।

वाइल्डलाइफ प्रेमी वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्डा की सामने ही शुक्रवार की सुबह पक्षियों का यह झुंड आकाश की परिक्रमा करते, लय के साथ चहकते हुए सकरी-पेंड्रीडीह बाइपास पर स्थित कोपरा जलाशय के तट पर उतरा। चड्ढा को पता चला था कि तीन दिन पहले चाम्पा के पास इनका झुंड देखा गया है। वे तीन दिन से इनकी अगुवानी के लिए सुबह कोपरा जलाशय पहुंच रहे थे। आज उनके साथ वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर संजय शर्मा भी थे।

स्थानीय लोग इसे हंस या राजहंस कहते हैं। ये मंगोलियन देशों से आते हैं। चड्ढा का कहना है कि कोपरा जलाशय में यदि व्यवधान पैदा नहीं हुआ तो ये मार्च तक रुककर आगे वापसी की यात्रा शुरू करेंगे। हिमालय के ऊपर से 37 हजार फिट की ऊंचाई तक उड़ान भर कर 74 सेमी आकार वाले ये पक्षी अक्टूबर-नवंबर माह में भारत के विभिन्न हिस्सों में बसेरा करते रहते हैं। लगभग इतनी ही ऊंचाई पर जेट विमान भी उड़ता है। इसे दुनिया का सबसे अधिक ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी माना जाता है।

दूसरी ओर वन विभाग ने इनकी सुरक्षा के लिए कोई प्रयास अब तक नहीं किया है, जबकि मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडेय ने इसी माह इस जगह का दौरा कर यहां ठहरने वाले देश-विदेश के करीब 150 पक्षियों को सुरक्षा देने का आश्वासन दिया था। एक संस्था नेचर क्लब ने इसे किंगफिशर पक्षी विहार नाम दे दिया है और यहां बर्ड वाचिंग का कार्यक्रम भी वे बीच-बीच में बनाते रहे हैं। पर पक्षियों की सुरक्षा के लिए अधिकारिक रूप से कोई योजना जमीन पर नहीं उतरी है। जलाशय का इस्तेमाल आसपास के लोग अपने वाहनों और कपड़ों को धोने के लिए करते हैं। तेज आवाज में वाहनों के साइलेंसर और कपड़े पटके जाने की आवाज से पक्षियों को घबराकर उड़ते कई बार देखा गया है।

 

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