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मुकुल रोहतगी ने दी दलील- स्मार्ट सिटी के नये प्रोजेक्ट को मंजूरी तुरंत दें, नहीं तो राशि डूब जायेगी, याचिकाकर्ता- एमआईसी से अनुमति लें, आपत्ति नहीं

बिलासपुर स्मार्ट सिटी का एक चित्र।

हाई कोर्ट में निर्वाचित संस्थाओं के अधिकार हड़पने वाली जनहित याचिका पर हुई सुनवाई, कल भी बहस  

बिलासपुर। हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस अरूप गोस्वामी और जस्टिस गौतम चौरड़िया की खण्डपीठ ने आज बिलासपुर और रायपुर नगर निगमों के अधिकारों को हड़प कर स्मार्ट सिटी कम्पनियों के कार्य करने के विरुद्ध दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई में स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने नये प्रोजेक्ट को अनुमति देने की मांग की और याचिका खारिज करने कहा।

मुकल रोहतगी ने कोर्ट से कहा कि अधिवक्ता विनय दुबे की यह याचिका चलने योग्य नहीं है, क्योंकि इसमें निर्वाचित व्यक्तियों को स्मार्ट सिटी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में शामिल करने की मांग है। जबकि ऐसी मांग के लिये याचिका नगर निगम के प्रतिनिधि स्वयं लगा सकते थे। रोहतगी ने कहा कि सभी स्मार्ट सिटी के कार्य जनहित के हैं। उन्होंने इन्हें तुरंत नये कार्यों को अनुमति देने की मांग की क्योंकि 31 मार्च के बाद केन्द्र सरकार यह पैसे वापस ले लेगी।

इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने खण्डपीठ से कहा कि प्रकरण इतना सामान्य नहीं है, जिस तरह से स्मार्ट सिटी कंपनी के अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया है। मेयर इन काउंसिल शहर सरकार की कैबिनेट है। अगर आज इसके अधिकार अधिकारियों की बनी हुई कम्पनी दे दिये जा रहे हैं तो कल राज्य और केन्द्र सरकार की कैबिनेट की शक्तियां भी किसी सरकारी कम्पनी के हवाले की जा सकती है। यह व्यवस्था भारतीय संविधान के मूल आधार- प्रजातांत्रिक सरकार का खुला उल्लंघन है। उन्होंने आगे कहा कि केन्द्र सरकार के शपथ पत्र में स्वयं यह बात स्वीकार की गई है कि स्मार्ट सिटी कम्पनी वे ही प्रोजेक्ट ले सकती हैं, जो नगर निगम उसे करने के लिये कहे। इसी तरह नगर निगम इस प्रोजेक्ट में 50 प्रतिशत का शेयरधारक है। इस वजह से भी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में उसे 50 प्रतिशत सदस्य रखने का अधिकार है। एक अधिवक्ता इसलिये जनहित याचिका दायर कर सकता है क्योंकि निर्वाचित संस्थाओं के अधिकार की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है।

समय समाप्त हो जाने के कारण आज अन्य पक्षों की ओर से बहस नहीं हो सकी। वहीं राज्य और केन्द्र सरकार ने याचिका का विरोध करने की बात कही। कल रायपुर और बिलासपुर नगर निगम के मेयर इन काउंसिल और सामान्य सभा के अधिवक्ता अपना पक्ष रखेंगे।

गौरतलब है कि बिलासपुर के अधिवक्ता विनय दुबे की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और गुंजन तिवारी ने एक जनहित याचिका में बिलासपुर और रायपुर नगर में कार्यरत स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनियों को इस आधार पर चुनौती दी है कि इन्होंने निर्वाचित नगर निगमों के सभी अधिकारों और क्रियाकलापों का असंवैधानिक रूप से अधिग्रहण कर लिया है। ये सभी कम्पनियां विकास के वे ही कार्य कर रही हैं जो संविधान के तहत संचालित प्रजातांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित नगर निगमों के अधीन है। विगत 5 वर्षो में कराये गये कार्यों की प्रशासनिक या वित्तीय अनुमति नगर निगम, मेयर, मेयर इन काउंसिल या सामान्य सभा से नहीं ली गई है।

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