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बाहर जाकर पुरुषों के साथ काम करने वाली मां बच्चों को नहीं पाल सकती, यह सोचना गलत

बिलासपुर हाईकोर्ट।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी के साथ फैमिली कोर्ट का आदेश पलटा

बच्चे की कस्टडी मां को सौंपने का आदेश

बिलासपुर। एक तलाकशुदा दंपती के प्रकरण की सुनवाई करते हुए उनके बच्चे को हाईकोर्ट ने मां के संरक्षण में सौंपने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के उस निष्कर्ष को गलत बताया है जिसमें बाहर रहकर पुरुषों के साथ नौकरी करने की वजह से मां अपने बच्चे की देखभाल ठीक तरह से नहीं कर सकती है।

महासमुंद के एक युवक की शादी 2007 में हुई। दिसंबर में दंपती का एक बेटा पैदा हुआ। 2 वर्ष बाद पति पत्नी में विवाद हो गया और आपसी राजीनामे से उन्होंने तलाक ले लिया। दोनों में सहमति बनी कि बेटा अपनी मां के पास रहेगा। इसके बाद मां महासमुंद में एक निजी कंपनी में फील्ड सुपरवाइजर की नौकरी करने लगी।‌ लगभग 5 साल बाद पति ने बाद फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर बच्चे की कस्टडी खुद को सौंपने की मांग की। उसने कहा बच्चे की मां नौकरी के सिलसिले में पुरुष सहयोगियों से मिलती है और भ्रमण भी करती है। साथ ही वह जींस और टीशर्ट भी पहनती है। पति ने कंपनी के एक अधिकारी के साथ पत्नी के गलत संबंध होने का भी आरोप लगाया। याचिका में कहा गया कि पत्नी अपनी पवित्रता खो रही है ऐसे में मां के साथ रहने से बेटे पर गलत असर पड़ेगा। अपने आरोपों के संबंध में पति ने फैमिली कोर्ट में कुछ गवाहों को भी पेश किया।  फैमिली कोर्ट ने पति के आवेदन पर विचार करने के बाद बच्चे की कस्टडी मां से लेकर पिता को सौंपने का आदेश दे दिया। इसके बाद पिता ने बच्चे को अपने पास रख लिया।

फैमिली कोर्ट के इस आदेश के विरुद्ध मां ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय अग्रवाल की डबल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और बच्चे की कस्टडी मां को सौंपने का निर्देश दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी महिला के जींस और टीशर्ट पहनने से, पुरुष सहयोगियों के साथ काम करने से और नौकरी के सिलसिले में बाहर जाने से उसका चरित्र निर्धारित नहीं किया जा सकता। गवाहों को लेकर कोर्ट ने टिप्पणी की शुतुरमुर्ग की तरह विचार रखने वाले समाज के कुछ लोगों के प्रमाण पत्र से भी महिला का चरित्र निर्धारित नहीं होता। फैमिली कोर्ट का गवाहों के बयान के आधार पर निष्कर्ष निकालना गलत है।

कोर्ट ने मां के पक्ष में निर्णय देते हुए बेटे को उसकी कस्टडी में सौंपने का आदेश दिया है, साथ ही पिता को समय-समय पर बेटे से मिलने की छूट भी दी है।

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