केन्द्रीय विश्वविद्यालय में हिन्दी दिवस पर व्याख्यान व कविता पाठ

गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी दिवस समारोह में मुख्य अतिथि व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि भाषा से संस्कार का बोध होता है। दुनिया में 100 करोड़ लोग हिंदी बोलते है और हिंदी का 100 साल पुराना इतिहास भी है। हिंदी इस देश की महारानी है। हिंदी का सरलीकरण होना आवश्यक है, परंतु अंग्रेजीकरण नहीं होना चाहिए। अज्ञान को ज्ञान में तब्दील करने वाली भाषा का नाम हिंदी है। जहां जरूरी हो वहीं अंग्रेजी का इस्तेमाल होना चाहिए। भारत एक मात्र ऐसा देश है, जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता बचानी है तो हमें हिंदी को अपनी दिनचर्या की भाषा बनानी होगी।

विश्वविद्यालय में 14 सितंबर को अपराह्न 3.30 बजे हिंदी दिवस समारोह रखा गया था।

कार्यक्रम के स्वागत उद्बोधन में मीडिया प्रकोष्ठ की प्रभारी प्रतिभा जे. मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है इसे अपनाना और इसकी अभिव्यक्ति करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के शुभकामना संदेश का वाचन किया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफेसर अंजिला गुप्ता ने कहा कि सबसे ज्यादा तर्कसंगत भाषा हिंदी है। जब भी हमारे घर में कोई भी बच्चा पैदा होता है तो उसका सबसे पहला परिचय हिंदी से होता है। हिंदी एक प्रतिष्ठित भाषा है, जिसे अपने उपयुक्त स्थान पर पहुंचाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। हिंदी भाषा नहीं भावों की अभिव्यक्ति है।

इस अवसर पर प्रबंध अध्ययन विभाग के प्रोफेसर हरीश कुमार, प्रोफेसर प्रतिभा जे. मिश्रा, डॉ. एम.एन. त्रिपाठी, डॉ. रमेश गोहे, मनीषा विजयवर्गीय और डॉ. राजेश मिश्र ने अपनी समसामयिक विषयों पर कविताओं का पाठ किया।

कुलपति ने मुख्य अतिथि का शाल और श्रीफल से सम्मान किया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोनिया स्थापक ने किया। इस मौके पर अध्ययनशालाओँ के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्षगण, शिक्षकगण, अधिकारीगण एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

 

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