पुलिस महानिरीक्षक प्रदीप गुप्ता ने बिलासपुर प्रेस क्लब में अपने अनुभव साझा किये

बिलासपुर। बिलासपुर पुलिस रेंज के महानिरीक्षक प्रदीप गुप्ता ने आज प्रेस क्लब में खुलासा किया कि भिलाई में हुए अभिषेक मिश्रा अंधे कत्ल की गुत्थी सुलझाना उनके सेवाकाल का सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसके लिए उन्होंने अजय देवगन की ‘दृश्यम’ फिल्म को कई बार देखा।

बिलासपुर प्रेस क्लब में आज ‘हमर-पहुना’ कार्यक्रम के तहत आई जी गुप्ता को आमंत्रित किया गया था। उन्होंने अपने सेवाकाल के कई अनुभवों को साझा किया।

मालूम हो कि 200 करोड़ के शंकरा ग्रुप ऑफ कॉलेज के डायरेक्टर अभिषेक मिश्रा 9 नवंबर 2015 को लापता हो गया थे। उनकी हत्या हो गई है या अपहरण इसका भी पता नहीं चल रहा था। पुलिस पर इस मामले को सुलझाने का जबरदस्त दबाव था। यहां तक कि केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसका पर्दाफाश करने का निर्देश दिया। जब यह हाई प्रोफाइल मामला सामने आया तो गुप्ता दुर्ग रेंज के महानिरीक्षक और मयंक श्रीवास्तव पुलिस अधीक्षक थे। आई जी गुप्ता के अनुसार वे और श्रीवास्तव 12-12 घंटे तक एक कमरे में बैठकर मिली सूचनाओं की कड़ियां जोड़ने की कोशिश करते थे। उन्होंने कई बार अजय देवगन की मूवी ‘दृश्यम’  और ‘स्पेशल 26’ भी देखी, जिनसे केस सुलझाने में मदद मिली। इस मामले में डेढ़ हजार लोगों से पूछताछ और 1800 से अधिक कॉल डिटेल चेक करने के बाद अपराधियों का खुलासा हो पाया था। अभिषेक मिश्रा की पूर्व प्रेमिका किस्मी जैन ने अपने कारोबारी पति विकास जैन और कुछ रिश्तेदारों के साथ मिलकर अभिषेक की हत्या कर दी और उसकी लाश अपने घर के गार्डन में दफना दिया था।

गुप्ता ने कहा कि क्राइम पेट्रोल जैसे टीवी सीरियल बंद होना चाहिए। इनमें अपराध के कई तरीकों को सामने लाया जाता है, जिससे दूसरे अपराधों का रास्ता मिलता है। कई बार हमने पाया है कि पहली बार अपराध करने वाला व्यक्ति भी बहुत सफाई से अपने काम को अंजाम देता है। हम भी जब किसी अपराध का खुलासा मीडिया के सामने करते हैं तो कोशिश करते हैं कि अपराध करने के लिए अपनाये गये तरीके की बहुत गहराई से जानकारी न दें ताकि आपराधिक तत्व उसका फायदा न उठा सकें।

संयुक्त राष्ट्र मिशन के शांति कार्यक्रम के तहत कुछ समय गुप्ता ने रिपब्लिक ऑफ सर्बिया में भी बिताया है। उनसे पूछा गया कि दूसरे देशों और भारत की पुलिसिंग में वे क्या फ़र्क देखते हैं, गुप्ता ने कहा कि विकसित देशों में पुलिस की ड्यूटी भी 8 घंटे की होती है। कहीं पर आग लग जाये तब भी वह इससे अधिक ड्यूटी नहीं करेंगे। वे पूरी तरह कानून और अधिनियम-नियमों के तहत काम करते हैं। हम आपसी रिश्ते भी निभाते हैं। जनमानस की मंशा के अनुसार काम करते  हैं। उन्होंने माना कि हमारे देश में इस छूट का दुरुपयोग भी होता है। वहां यदि पुलिस को पूछताछ के बाद लगता है कि आरोपी को छोड़ देना चाहिये तो वह छोड़ देता है, जबकि हमारे देश में यह फैसला लेना पुलिस के हाथ में नहीं है।

कई डिग्रियां हासिल कीं, प्राइवेट सेक्टर में मन नहीं लगा

1995 बैच के आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता मूलतः रायपुर निवासी हैं। वे इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जाना चाहते थे। रायपुर में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद उन्होंने आईआईटी और एम फिल जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली से किया। वहां मानवता के इको सिस्टम पर काफी अच्छा अनुभव रहा। कहा कि वहां हर चीज का विश्लेषण होता है। पढ़ाई के बाद उन्होंने टाटा में 92 में नौकरी शुरू की, पर वहां काम चैलेंजिंग नहीं लगा। उन्हें लगा कि वे अपने दायित्व से किसी को लाभ नहीं पहुंचा सकते।इसके बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की और आईपीएस में उनका सलेक्शन हो गया। पहले उन्हें मध्यप्रदेश कैडर मिला। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ आ गये। इस बीच वे ग्वालियर, सागर में पदस्थ रहे। फिर छत्तीसगढ़ में जांजगीर, जशपुर आदि में काम किया। यूएन टास्क से लौटने के बाद वे पौने दो साल बस्तर में एस पी रहे।  इसके बाद उन्हें केन्द्र सरकार ने प्रतिनियुक्ति पर लिया और इस्पात मंत्रालय के एक उपक्रम में उन्हें चीफ विजिलेंस अफसर बनाया गया। उनकी नियुक्ति नागपुर के लिए थी, लेकिन मुम्बई में रहकर काम देखना पड़ता था।

कानून की पढ़ाई हर किसी को करनी चाहिये

गुप्ता ने बताया कि केन्द्र की प्रतिनियुक्ति ऐसी जगह हुई थी, जहां आये दिन उन्हें किसी न किसी कानूनी पेंच में अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते थे। बहुत से रिट दायर हुआ करते थे, जिनका वकीलों से जवाब तैयार कराना पड़ता था। उनका काम देखकर लगा कि क्यों न लॉ की डिग्री ले ली जाये। उन्होंने वहां चार साल रहने के दौरान डिग्री हासिल कर ली। गुप्ता का कहना है कि जिनको भी मौका है लॉ की पढ़ाई करनी चाहिये। पूरा देश नियम और कानूनों से चलता है। हमें इसकी जानकारी कदम-कदम पर काम आती है। आजादी के लड़ाई में जितने बड़े नेता हैं, सब वकील थे। आज भी विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रवक्ता और शीर्ष नेता वकील ही हैं।

ट्राइबल फोटोग्राफी का शौक

गुप्ता ने कहा कि आदिवासियों के रहन-सहन और उनकी संस्कृति पर फोटोग्राफी करना उनकी हॉबी है। हालांकि यह काफी बाद में पैदा हुआ शौक है। बस्तर की तो कई फोटोग्राफी उन्होंने की ही है, इंग्लैंड के वाइल्डलाइफ पर भी उनकी फोटोग्राफी है।

बिलासपुर में नये थाने बनने चाहिये

बिलासपुर में 11 साल पहले पुलिस अधीक्षक रह चुके गुप्ता ने तब और अब बिलासपुर में आये बदलाव पर कहा कि कई थानों के पास काम का अधिक बोझ है। सिविल लाइन, सरकंडा जैसे थानों को तीन हिस्सों में बांटा जाना चाहिये। इसके लिए उन्होंने गृह मंत्री को सुझाव भी दिया है। एक थाने में अधिक से अधिक 300 एफआईआर साल भर में दर्ज होने चाहिये, पर यहां कुछ में 500 से अधिक हैं।

 

 

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