परदादा से लेकर अब तक हम पुलिस में, मेरे दोस्तों में 80 फीसदी सिपाही ही हैं…

बिलासपुर। जिले के पुलिस अधीक्षक पद से स्थानांतरित होने के बाद नक्सल ऑपरेशन विंग में पदस्थ किये गए आईपीएस आरिफ शेख ने कांग्रेस भवन में हुए लाठी चार्ज पर कहा है कि भावनाओं पर काबू नहीं रख पाने के कारण हुई घटना थी। यह सोच समझकर, अक्लमंदी से किया गया काम नहीं था। उस वक्त तैनात एडिशनल एसपी को शायद यही सही लगा होगा। मैंने अपने मातहतों से कह रखा था कि तुम लोग जो करोगे उसकी जिम्मेदारी मेरी है, तुम सुरक्षित रहोगे। यहां राजनैतिक दिग्गज बहुत थे, पर मैंने पाया है कि निष्पक्ष बने रहने का रास्ता ही हमेशा ठीक रहता है।

बिलासपुर प्रेस क्लब की ओर से गुरुवार को ‘पहुना’ कार्यक्रम मे पहुंचे पुलिस अधीक्षक पद से स्थानांतरित होकर नक्सल ऑपरेशन अभियान के सहायक पुलिस महानिरीक्षक बनाए गए आरिफ एच शेख से कांग्रेस भवन में हुए लाठी चार्ज की घटना के बारे में पूछा गया, जिसने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। उन्होंने इस बारे में खुलकर अपनी राय रखी।

उन्होंने कहा कि यह संतोष की बात है कि घटना आखिरकार काबू में रही। कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं जब हम अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख पाते। उस समय कांग्रेस भवन में मौजूद एडिशनल एसपी को शायद लगा होगा कि वे जो कर रहे हैं, सही है। इसलिये यह घटना हो गई। शेख ने कहा कि बिलासपुर में जब उन्होंने काम संभाला तो राजनीतिक रूप से काफी दिग्गज लोग यहां थे लेकिन मैंने अपने अनुभवों से पाया है कि तटस्थ बनकर काम करना ही सही होता है। मैंने सबको कह रखा था कि कोई भी दबाव डाले आप कहें कि एस पी से बात कर लो…। उसके बाद तो ज्यादातर फोन मुझ तक आते ही नहीं थे। जो कुछ आते थे उस पर मैं फैसला, सही-ग़लत, उचित-अनुचित देखकर लेता था। इसमें कोई दबाव नहीं होता था।

कड़क भी, अपनापा भी

आईपीएस आरिफ शेख का कहना है कि अपने पूरे सेवाकाल में जितने लोगों पर कार्रवाई नहीं की, अकेले बिलासपुर में एक साल रहने के दौरान कर दी। साल भर में पांच मातहतों को बर्खास्त कर दिया और 70 को निलंबित। काम करने का तरीका था कि ख़राब काम करने वाले को सज़ा दो, अच्छा करने वालों को ईनाम। उन्होंने कहा- यातायात की ड्यूटी बड़ी कठिन होती है। धूल,धूप और वाहनों की आवाजाही के बीच लगातार चौक पर खड़े रहकर सुगम आवागमन बनाना। हमने हर माह बेहतर काम करने वाले पांच यातायात जवानों को पुरस्कृत करने का काम शुरू किया। उसके बाद चौक-चौराहों पर ड्यूटी के लिए होड़ लग गई। बहुत छोटी सी बात थी। मैंने कांस्टेबलों की जन्मदिन की सूची बनाई। बहुत कम खर्च पर हर दिन तकरीबन 10 जवानों को शुभकामनाएं और मिठाई का डिब्बा भेजा। इस दिन उन्हें अवकाश देने का भी निर्णय ले लिया। उनका दिन अच्छा बीता, वे काम में और मुस्तैद रहे।

परदादा भी पुलिस थे, तुरंत न्याय यहीं…।

शेख ने कहा कि उन्हें राजनीति में बहुत कम रुचि है। वे प्रशासन और पुलिस सेवा को ही अपने जीवन का ध्येय मानते हैं। उन्हें विदेश सेवा में जाने का भी अवसर था, पर पुलिसिंग को ही चुना। परदादा, दादा, पिता और अब मैं-सब पुलिस में। मुझे लगता है कि पुलिस की नौकरी सबसे अच्छी है। यहां हम तुरंत न्याय देते हैं।

सवाल-न्याय देना तो अदालतों का काम है। शेख ने कहा कि- हां न्याय तो वहीं होगा, पर प्रक्रिया में समय लगता है। पर किसी ने कहा कि उस पर हमला हो गया, मारपीट हो गई, तो अपराध करने वाले को सबसे पहले पुलिस ही तो अपने कब्जे में लेगी। उन्होंने साफ किया कि जांच के दौरान आरोपी को अपराधी नहीं समझा जाता है, पुलिस अपनी छानबीन और साक्ष्य के बाद ही प्रकरण दर्ज करती है।

उन्होंने साफगोई से कहा कि उनके 80 फीसदी दोस्त सिपाही हैं, क्योंकि वे खुद रिटायर्ड इंस्पेक्टर के बेटे हैं। पुलिस कॉलोनी में रहे हैं। बचपन वहीं गुजरा। वहां सबसे मिलकर रहे। पुलिस की हर समस्या जानते हैं।

ऑड-ईवेन का प्रयोग शुरू करता, अब होगा

एआईजी नक्सल बन चुके आरिफ शेख ने बिलासपुर की यातायात व्यवस्था को बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि वे महाराष्ट्र के बड़े शहरों की तरह यहां भी ऑड-इवन पार्किंग की व्यवस्था एक जनवरी से शुरू करने वाले थे। अब इसे नये एसपी लागू करेंगे। विषम दिनों में सड़क के एक ओर तथा सम दिनों में दूसरी ओर पार्किंग होगी। इससे यातायात सुचारू करने में बड़ी सुविधा होगी।

राखी विद खाकी-अवार्ड के लिए नहीं

आईपीएस शेख ने अपने कार्यकाल के दो महत्वपूर्ण फैसलों पर बात की। उन्होंने कहा कि संवेदना केन्द्र का विचार ऐसे ही कुछ लोगों के बीच बैठकर आ गया। यह इतना सफल रहा कि दूसरे जिले भी अपनाने लगे। इसकी खूब सराहना हुई। संवेदना केन्द्र हर थाने में पीड़ित, प्रताड़ित और फरियादी महिलाओं के लिए बनाई गई जगह है। जहां वे इत्मीनान से बैठकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। यहां पर पारिवारिक माहौल में पुलिस उनसे उनकी शिकायत सुनती है और उन्हें आराम की जगह मिलती है। राखी विद खाकी, जिसे वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह मिलने पर बिलासपुर को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली, के बारे में कहा कि यह अवार्ड पाने के लिए किया गया काम नहीं था। 50 हजार 33 महिलाओं ने जवानों के साथ सेल्फी ली यह महत्वपूर्ण नहीं था। यह खास था कि इतने सारे मोबाइल फोन पर रक्षा टीम के नंबर दर्ज हो गये। पहले इसे शहर के प्रमुख स्थानों पर केन्द्रित कार्यक्रम रखने का था लेकिन बाद में लोगों का समर्थन मिलने पर इसे स्कूल और कॉलेजों में विस्तारित किया गया। इस कार्यक्रम को शहर ने भी खूब सराहा और ट्विटर पर भी यह चौथे नंबर पर ट्रेंड करने लगा। थ्री टायर शहर के लिए यह बहुत बड़ी बात थी। दरअसल, शहर के लोगों ने इस अभियान को जबरदस्त समर्थन दिया।

अपना घर ठीक करें, फिर बाहर सुधारें

कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने और पुलिस के साथ जनता के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए जरूरी था कि हम अपना घर ठीक करें। यह कहा- आरिफ शेख ने। उन्होंने कहा कि जब वे यहां आये तो पाया कि पुलिस के अलग-अलग विंग में तालमेल का अभाव है। सबसे पहले मैंने उन्हें विश्वास में लिया और उनकी समस्याओं को जानकर पूछकर दूर करने की कोशिश की। इसके चलते एक बढ़िया तालमेल नीचे से ऊपर तक बना और वे एक बेहतर पुलिसिंग दे सके। मेरे कार्यकाल 2018 के आंकड़े भी बताते हैं कि सभी प्रकार के गंभीर अपराधों में इस दौरान कमी आई।

मीडिया का भरपूर रचनात्मक सहयोग मिला

आरिफ शेख ने कहा कि उन्हें प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक तथा वेब मीडिया का भरपूर सहयोग मिला, जबकि इसे लेकर मुझे यहां ज्वाइनिंग के लिये आते समय आगाह कर दिया गया था, बल्कि नकारात्मक जानकारी दी गई थी। यहां का मीडिया संवदेनशील तथा सकारात्मक है। मैंने शायद ही कभी किसी से कहा कि कोई ख़बर रोक दे। मुझे लगता है कि नकारात्मक ख़बरों से भी हमें अपने आपको सीखने का अवसर मिलता है। हमें हमेशा सीखने की प्रक्रिया को जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुलिस का व्यवहार अच्छा होना चाहिए उसे एक अच्छा इंसान होना चाहिए। उन्होंने त्रिपुरा के सेवानिवृत्त डीजीपी सलीम अली का उदाहरण दिया कि वे खूंखार नहीं थे, न ही उन्होंने खूब गोलियां चलाई। उन्हें लोग एक बेहतर इंसान होने के कारण गांव-गांव में याद करते हैं। मुझे भी दुबारा बिलासपुर आने पर आरिफ शेख के नाम से याद रखा जाये न कि पूर्व पुलिस अधीक्षक के रूप में।

 

 

 

 

 

 

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