बसपा का साथ, बिलासपुर-मुंगेली की कई सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष, कांग्रेस-भाजपा दोनों का भरोसा डगमगा रहा

मरवाही के अलावा बेलतरा, तखतपुर, लोरमी, कोटा से भी आ सकते हैं चौंकाने वाले नतीजे

-राजेश अग्रवाल

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की बुनियाद जिले के कोटमी में पड़ी थी। यहीं प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रह चुके अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने का फैसला लिया था। जोगी कांग्रेस का दामन थामने वाले प्रदेश के चार में से तीन विधायक बिलासपुर से हैं और उनमें से दो चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। मरवाही सीट पर खुद जोगी हैं। उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी कोटा और सियाराम कौशिक बिल्हा से। इसके अलावा भी मुंगेली-बिलासपुर की कुछ और सीटों पर कांग्रेस-भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए उनकी पार्टी के उम्मीदवारों ने अपनी ताकत झोंक दी है।

पूर्व मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के संस्थापक अजीत जोगी ने पहले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से चुनाव लड़ने का ऐलान किया। बाद में एक वजह खड़ी हो गई, या कर दी गई। मरवाही के लोगों ने आकर उनसे दुबारा यहां से चुनाव लड़ने की अपील की। नाटकीय ढंग से विधायक अमित जोगी ने भी कहा कि वे जोगी और मरवाही की जनता के बीच नहीं आएंगे। इस तरह अब अजीत जोगी सबसे सुविधाजनक सीट मरवाही से उम्मीदवार हैं। इसके पहले के चुनावों में भी वे डॉ. सिंह को चुनौती देने की घोषणा कर पीछे हट चुके हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा के रामदयाल उइके ने मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद जोगी के लिए सीट छोड़ी। जोगी ने फरवरी 2001 के उप-चुनाव में भाजपा के अमर सिंह खुसरो को 50 हजार से अधिक मतों के रिकॉर्ड अंतर से हरा दिया। सन् 2003 के चुनाव में जोगी की सत्ता चली गई पर मरवाही के लोगों का लगाव उनसे कम नहीं हुआ। इस चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता नंदकुमार साय को उन्होंने करीब 54 हजार मतों से हराया। जोगी को करीब 70 फीसदी और साय को 20 फीसदी वोट मिले। सन् 2008 में जोगी ने फिर यहां से चुनाव लड़ा। इस बार उनका वोट प्रतिशत घटकर 56 प्रतिशत पर आ गया पर भाजपा का वोट प्रतिशत एक प्रतिशत ही बढ़कर 21 तक पहुंच पाया। भाजपा के ध्यान सिंह पोर्ते को उन्होंने 42 हजार मतों से परास्त किया। सन् 2013 में उनके पुत्र अमित जोगी ने रिकॉर्ड मतों से जीत के सिलसिले को बनाए रखा। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी समीरा पैकरा को 46 हजार 250 मतों से पराजित किया। सन् 2013 की विधानसभा में जीत का यह अंतर सर्वाधिक रहा।

2018 के चुनाव में फर्क यही है कि मरवाही में हर बार जोगी पिता-पुत्र कांग्रेस के पंजा निशान पर चुनाव जीतते आए हैं। इस बार उन्होंने पार्टी दूसरी बना ली है। भाजपा ने इस इलाके में एक समय जबरदस्त पैठ रखने वाले स्व. भंवर सिंह पोर्ते की पुत्री अर्चना पोर्ते को टिकट दी है। उनकी बेटी ने शंकर कंवर से विवाह किया है, जो खुद भी भाजपा के क्षेत्रीय नेता हैं। पति-पत्नी अलग-अलग उप-जाति के आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि ध्यान में रखना होगा कि स्व. पोर्ते की पत्नी हेमवंत पोर्ते ने एक बार एनसीपी से चुनाव लड़ा तो गिनती के मतों में सिमट गई थीं और जमानत भी नहीं बचा पाईं।

चर्चा है, समीरा पैकरा ने पिछले पांच साल तक जीत का अंतर पाटने के लिए क्षेत्र में काफी मेहनत की और टिकट को लेकर आश्वस्त थीं। उन्होंने अमित जोगी के खिलाफ जाति और जन्म प्रमाण पत्रों में फर्जीवाड़ा का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिकाएं भी दाखिल कर रखी हैं। पैकरा को पार्टी ने इस बार मौका नहीं दिया।

कांग्रेस प्रत्याशी गुलाब सिंह राज को भी एक अच्छा चुनाव बताया जा रहा है। वे इस आदिवासी बाहुल्य इलाके में पंजा निशान लेकर मैदान में हैं। इस बार जोगी एक नए चुनाव चिन्ह, हल जोतता किसान के साथ चुनाव मैदान में हैं। इन परिस्थितियों के बावजूद जोगी को वहां से हराया जा सकता है, यह कहना आसान नहीं है। कहा जा रहा है, छत्तीसगढ़ में यदि छजकां की कोई सबसे पहली पक्की सीट है तो मरवाही ही है। भले ही जीत-हार का फासला कुछ कम हो जाए।

जोगी के खासे असर वाले बिलासपुर और मुंगेली जिले में हर जगह जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी यह साबित कर रहे हैं कि उनका चुनाव लड़ना औपचारिक नहीं है, बल्कि वे जीतने के मकसद से मैदान में हैं। यदि चुनाव निकाल भी नहीं पाए, तो वे बाजी पलटने का माद्दा तो रखते ही हैं।

डॉ. रेणु जोगी कोटा में परम्परा बदलने के इरादे से दे रहीं चुनौती

बिलासपुर जिले की सात सीटों में से एक मरवाही पर जोगी की जीत का क्रम तोड़ने में कांग्रेस भाजपा दोनों को बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है। इसी से लगे कोटा विधानसभा क्षेत्र से हमेशा होने वाली कांग्रेस की जीत का इतिहास बदलने के उद्देश्य से उनकी पत्नी तीन बार की विधायक डॉ. रेणु जोगी मैदान में हैं। कांग्रेस टिकट नहीं मिलने के बाद आखिरी क्षणों में उन्होंने जोगी की पार्टी से लड़ने का निर्णय लिया। डॉ. जोगी के पास कोटा क्षेत्र में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की अच्छी टीम रही है। उनके जोगी कांग्रेस में जाने के बाद विधायक प्रतिनिधि अरुण सिंह चौहान सहित बहुत से करीबी उनसे अलग हो चुके हैं। इसके बावजूद जोगी की सीट के बगल का इलाका, उनकी अपनी कर्मभूमि गौरेला-पेन्ड्रा का इसी विधानसभा क्षेत्र में होना और तीन बार से विधायक चुना जाना, उनके पक्ष में है। ऐसी स्थिति में यह सवाल सबके जेहन में घूम रहा है कि क्या कोटा सीट कांग्रेस के पास बनी रहेगी? डॉ.जोगी खुद चुनाव निकालेंगी या फिर उनकी मौजूदगी का फायदा भाजपा को मिलेगा? भाजपा ने पिछली बार के उम्मीदवार काशीराम साहू को फिर टिकट दी है, जबकि एक पुलिस अधिकारी विभोर सिंह नौकरी छोड़कर कांग्रेस की टिकट पर पहली बार मैदान में हैं। लोगों में यह चर्चा है कि हो सकता है कि कोटा में सदा कांग्रेस के जीतने की परम्परा इस बार टूट जाए।

संतोष कौशिक ने लगाया दम, पूर्व विधायकों की बेटियों की किस्मत दांव पर

तखतपुर सीट पर पिछली बार भी मुकाबला त्रिकोणीय था। भाजपा के राजू सिंह क्षत्री बहुत कम मतों-करीब 600 से कांग्रेस प्रत्याशी आशीष सिंह ठाकुर को हरा पाए। दोनों ने करीब 44-44 हजार वोट हासिल किए। चौंकाया बसपा के संतोष कौशिक की दमदार मौजूदगी ने। उन्होंने 29 हजार से अधिक वोट हासिल कर लिए। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनने के बाद कौशिक जोगी के साथ आ गए। जिन उम्मीदवारों की घोषणा जोगी ने कई माह पहले कर दी थी, उनमें वे भी थे। कौशिक पिछले कई माह से जी-तोड़ जनसम्पर्क कर रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी हर्षिता पांडेय और कांग्रेस प्रत्याशी रश्मि सिंह ठाकुर का नाम दोनों पार्टियों ने बहुत देर से तय किया। कौशिक जहां दो-दो बार क्षेत्र के ज्यादातर गांवों में पहुंच चुके हैं, वहीं प्रमुख दोनों दलों के उम्मीदवारों को अपना एक फेरा पूरा कर पाने में मुश्किल हो रही है। हालांकि कांग्रेस-भाजपा से, प्रत्याशी मजबूत हैं। भाजपा की हर्षिता, पूर्व मंत्री व तखतपुर से पांच बार प्रतिनिधित्व करने वाले स्व. मनहरण लाल पांडेय की बेटी हैं। रश्मि सिंह के ससुर बलराम सिंह ठाकुर और पिता स्व. रोहणी कुमार बाजपेयी दोनों ही तखतपुर से विधायक रह चुके हैं। कौशिक की सक्रियता ने दोनों को सांसत में डाल रखा है।

सियाराम जीतने की स्थिति में भले न हों, पर हराएंगे जरूर

जिले की हाई प्रोफाइल सीटों में बिल्हा शामिल है। यहां से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक फिर मैदान में हैं। इस सीट से एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार भाजपा या किसी तीसरे दल के जीतने की परम्परा रही है। कांग्रेस विधायक सियाराम कौशिक ने जोगी का दामन उनकी पार्टी का गठन होने के बाद से ही संभाल रखा था, पर तकनीकी रूप से डॉ. रेणु जोगी की तरह कांग्रेस में ही थे। पिछले चुनाव में तब के विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को सियाराम ने करीब 11 हजार मतों से हराया। जोगी कांग्रेस से सियाराम कौशिक का नाम नामांकन के अंतिम दिनों में तय किया गया। चर्चा थी कि वे कांग्रेस में वापसी का रास्ता ढूंढ रहे थे। अब वे जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। कोटा की तरह यहां भी विधायक प्रतिनिधि ब्रजेश शर्मा सहित कांग्रेस के उनके कई करीबी कार्यकर्ता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी राजेन्द्र शुक्ला से जुड़ गए हैं। आने वाले दो-चार दिनों में देखना होगा कि सियाराम कौशिक त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना पाएंगे या नहीं। हां, यह अवश्य है कि सियाराम कौशिक की मौजूदगी की वजह से हार जीत का अंतर पिछली बार की तरह 11 हजार नहीं बल्कि उससे कम होगा। परम्परा दोहराई गई तो जीत की बारी धरमलाल कौशिक की है पर कांग्रेस उम्मीदवार ने पिछले दो तीन सालों से लगातार मेहनत की है। उन्होंने चुनावी तैयारियों के लिए जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद का भी त्याग किया। यह उन गिनी-चुनी सीटों में से एक है, जहां कांग्रेस ने उसी को प्रत्याशी बनाया जिसने संगठन से हरी झंडी मिलने पर चुनाव लड़ने की तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी। बिल्हा विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग वोट सियाराम और धरमलाल के बीच बंटते रहे हैं। इस बार धरमलाल की तरफ जातिगत वोट झुक सकते हैं। पर कांग्रेस प्रत्याशी शुक्ला के पक्ष में कुछ और भी अनुकूल परिस्थितियां हैं। बिल्हा विधानसभा क्षेत्र में मुंगेली जिले का सतनामी बाहुल्य पथरिया इलाका भी शामिल है, जहां गुरु बालदास का बड़ा प्रभाव है। गुरु बालदास ने पिछली बार कांग्रेस के विरोध में कई प्रत्याशी उतारे जिसका लाभ भाजपा को मिला था, इस बार वे कांग्रेस के साथ हैं।

ब्रजेश की मौजूदगी ने अमर-शैलेष को उलझाया

बिलासपुर सीट पर अमर अग्रवाल और शैलेष पांडेय के बीच सीधा मुकाबला है। इस सीट पर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के उम्मीदवार ब्रजेश साहू भी त्रिकोणीय संघर्ष पैदा करने के लिए पसीना बहा रहे हैं। उनकी समाज के लोगों में पकड़ है तथा जोगी का भी असर है। उनका वे क्रेडाई के भी अध्यक्ष हैं। पिछला चुनाव अमर अग्रवाल ने 15 हजार से अधिक मतों से जीता था। साहू की उम्मीदवारी कांग्रेस या भाजपा किसे नुकसान पहुंचाएगी, स्थिति अभी साफ नहीं है। साहू और आम आदमी के प्रत्याशी डॉ. शैलेष आहूजा यदि 10 हजार तक वोट बटोरने में कामयाब हुए तो नतीजों में उलटफेर हो सकता है।

नए प्रत्याशियों के बीच पुराने खिलाड़ी टाह बेलतरा में

बेलतरा सीट पर भी छजकां का एक मजबूत उम्मीदवार है, जिन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों को संशय में डाल रखा है। यह सीट भाजपा के पास है। मौजूदा विधायक वयोवृद्ध बद्रीधर दीवान की टिकट काटकर जिला भाजपा अध्यक्ष रजनीश सिंह को तथा कांग्रेस ने कई दिग्गज दावेदारों को किनारे कर राजेन्द्र साहू को टिकट थमाई है। दोनों ही स्थानीय है और पंचायत स्तर से, जमीन की राजनीति करते हुए उभरे हैं। दोनों युवा हैं और पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन इन दोनों के लिए बिलासपुर शहर से पहुंचे छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के उम्मीदवार अनिल टाह ने परेशानी खड़ी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। टाह ने एक बार निर्दलीय और दो बार कांग्रेस की टिकट पर बिलासपुर के विधायक अमर अग्रवाल को चुनौती दी है। तीनों बार जीत के बहुत करीब पहुंचने के बाद वे अमर को हरा नहीं पाए। टाह, अजीत जोगी के सबसे करीबी नेताओं में से एक हैं। टाह को चुनाव लड़ने और लड़ाने का पुराना अनुभव है। वे पिछले साल भर से बेलतरा सीट पर सक्रिय हैं। तखतपुर की तरह यहां भी जोगी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार की पहले से घोषणा कर दी थी। बेलतरा सीट में बिलासपुर शहर का भी कुछ हिस्सा है। यहां मतदाताओं के बीच उनकी पैठ बन चुकी है। बेलतरा में बसपा का बड़ा प्रभाव है, पुरानी सीपत सीट पर एक बार बसपा यहां से चुनाव भी जीत चुकी है। समझौते के मुताबिक बसपा समर्थकों को टाह के पक्ष में रहना है। अब यहां अनिल टाह त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बना चुके हैं। नुकसान किसका करेंगे या खुद चुनाव निकाल लेंगे यह जानने के लिए 11 दिसंबर तक प्रतीक्षा करनी होगी, जब नतीजे आएंगे।

जोगी से छिटके लहरिया की स्थिति मस्तूरी में डांवाडोल

यह जोगी के व्यक्तित्व का ही असर था कि बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोकगायक-नर्तक दिलीप सिंह डहरिया को उन्होंने 2013 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट दिलाई और तब के मौजूदा विधायक डॉ. कृष्ण मूर्ति बांधी को हराकर उन्हें 23 हजार 900 मतों के विशाल अंतर से जीत दिला दी। नई पार्टी बनाने के बाद जोगी का जिन लोगों ने साथ न देकर कांग्रेस में ही बने रहने का फैसला लिया उनमें डहरिया भी शामिल थे। इस चुनाव में डॉ. बांधी फिर मैदान में हैं और समझौते के तहत यहां से बसपा के जयेन्द्र पाटले मैदान में हैं। जोगी के बलबूते पिछला चुनाव जीते डहरिया की स्थिति डांवाडोल दिखाई दे रही है, बावजूद इसके कि उनके जीत का फासला पिछली बार काफी अधिक था। इस अनुसूचित जाति सीट पर जोगी का खासा असर है। उन्होंने हाल ही में बसपा उम्मीदवार पाटले के समर्थन में कई सभाएं की। यहां पर जोगी कांग्रेस ने राजेश्वर भार्गव को प्रत्याशी घोषित किया था, जिसे समझौते के बाद बदला गया। जोगी को मिल रहे बसपा के साथ ने उइके को परेशानी में डाल रखा है वहीं डॉ. बांधी को लगता है कि इस स्थिति का उन्हें फायदा मिलने वाला है।

मुंगेली में मोहले और पात्रे में शिफ्ट होंगे कांग्रेस के वोट

पुराने बिलासपुर जिले में मुंगेली जिला शामिल था। जोगी का वहां बिलासपुर के बराबर ही प्रभाव है और वे इन जगहों के नतीजों को बदलने का माद्दा रखते हैं। मुंगेली से प्रदेश के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले मैदान में हैं। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने जोगी की पसंद पर चंद्रभान बारमते को टिकट दी थी। विधानसभा, लोकसभा मिलाकर लगातार 9 चुनाव जीत चुके मोहले को इस चुनाव में काफी मुश्किल हुई थी। वे इस सीट को सिर्फ 2700 वोट से निकाल पाए। तब छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच को 9300 और बहुजन समाज पार्टी को करीब 4300 वोट मिले थे। इन दोनों की मौजूदगी इस बार नहीं है। अलबत्ता बारमते इस बार जोगी कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं। मौजूदा तस्वीर यह है कि जीत-हार का पिछला अंतर काफी कम होने के बावजूद वे इस बार त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति नहीं बना सके हैं। बारमते को मिले वोट की कारण तब मोहले के प्रति इलाके में लोगों का घटा मोह तो था ही, जोगी का समर्थन भी था। इस बार बारमते नई पार्टी और नए चुनाव चिन्ह से हैं, उनके साथ सिर्फ जोगी का नाम है।गुरु बालदास कांग्रेस के साथ हैं, जिनका यहां सतनामी समाज में बड़ा प्रभाव है। कांग्रेस प्रत्याशी राकेश पात्रे पिछले कई माह से चुनाव की तैयारी में लगे रहे। यह देखना दिलचस्प होगा कि बारमते को मिले वोट इस बार किधर शिफ्ट होते हैं। यदि कांग्रेस के परम्परागत वोट नहीं बिखरे तो मोहले की लगातार जीत का सिलसिला थम सकता है।

जोगी के धरमजीत, लोरमी में कांग्रेस-भाजपा पर भारी पड़ रहे

विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और जोगी के करीबी धर्मजीत सिंह ठाकुर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं। 2013 के चुनाव में यहां बड़ा उलटफेर हुआ था। कांग्रेस प्रत्याशी तब के विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर के खिलाफ भाजपा ने नए प्रत्याशी तोखन साहू को मैदान में उतारा। ठाकुर 6241 वोटों से चुनाव हार गए। इसके पीछे एक बड़ा कारण सतनाम सेना के उम्मीदवार गुरु बालदास का चुनाव मैदान में अचानक उतरना था। सतनामी समाज के 16 हजार से अधिक वोट उन्होंने तोड़ लिए और भाजपा की जीत आसान हो गई। इस बार धर्मजीत जोगी कांग्रेस से मैदान में हैं। कांग्रेस ने एक नए उम्मीदवार शत्रुघ्न सिंह चंद्राकर को टिकट दी है, जबकि भाजपा ने तोखन साहू को फिर मैदान में उतारा है। इसी बीच गुरु बालदास कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। धर्मजीत सिंह ठाकुर को इस बार भी उनका समर्थन नहीं मिल रहा है। इस बार जोगी के प्रभाव वाले सतनामी वोट तो ठाकुर के पास आएंगे ही, बाकी वोट कांग्रेस को जा सकते हैं। धर्मजीत सिंह अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं और वन आच्छादित आदिवासी बाहुल्य गांवों में उनकी पैठ बरकरार है। दूसरी ओर भाजपा से जवाहर साहू का अलग होकर कांग्रेस में शामिल होना तोखन साहू को नुकसान पहुंचा सकता है। एकबारगी परिस्थिति कांग्रेस के अनुकूल दिखाई देती है पर प्रत्याशी को लेकर कांग्रेस में विरोध के स्वर भी उठे हैं। धर्मजीत सिंह ने अपने असर से यहां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना ली है। यह सीट जिले की उन गिनी चुनी सीटों में है जहां से जोगी कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।

बिलासपुर-मुंगेली जिले की 9 सीटों में एक मरवाही तो जोगी कांग्रेस की अजेय मानी जा रही है पर यदि बेलतरा, तखतपुर, लोरमी और कोटा में इस दल का प्रदर्शन आक्रामक रहा तो प्रदेश की राजनीति की तस्वीर ही बदली नजर आएगी। बहुजन समाज पार्टी के साथ उनका गठबंधन भी कई सीटों पर उन्हें फायदा पहुंचाएगी। कई सीट ऐसी हैं जिनमें कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों की जीत तो होगी पर नतीजे उम्मीद के उलट होंगे।

यह रिपोर्ट यहां भी देख सकते हैः-www.dailychhattisgarh.com

 

 

 

 

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