अपोलो हास्पिटल में विशेषज्ञों ने कहा-मदिरा का चलन बढ़ना चिंताजनक

अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. शशिधरन का कहना है कि लीवर फेल होने पर आंशिक रूप से नया लीवर प्रत्यारोपित करना ही एकमात्र तरीका है, क्योंकि कोई भी मशीन इसकी जगह नहीं ले सकती।

बिलासपुर अपोलो अस्पताल में लीवर पर आयोजित एक पत्रकार वार्ता में हैदराबाद अपोलो हॉस्पिटल के वरिष्ठ लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. एल. शशिधरन ने कहा कि लीवर की कार्यप्रणाली बिगड़ गई हो तो प्रत्यारोपण ही एकमात्र तरीका है। यह जीवित व्यक्ति, अमूमन रिश्तेदार अथवा कुछ घंटे पहले मृत होने वाले व्यक्ति का लीवर हो सकता है।

अपोलो के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. सजल सेन ने कहा कि हेपेटाइटिस बी और सी, मदिरापान, वसायुक्त भोजन और रक्तवर्ण की आनुवांशिक बीमारी से सिरोसिस होता है, जिसके चलते लीवर क्षत्तिग्रस्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि मदिरा सेवन का चलन बढ़ रहा है जो चिंताजनक है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे इससे दूर रहें।

डॉ रेड्डी ने बताया कि ब्लड ग्रुप मैच कर रहा हो तो परिवार के किसी सदस्य का लीवर ट्रांसप्लांट के लिए लिया जा सकता है। उससे लीवर का 40-50 प्रतिशत हिस्सा ही लिया जाता है, जो बाद में पहले की तरह विकसित हो जाता है। लेने व देने वाले दोनों में सामान्य लीवर पहले की तरह पुनर्जीवित हो जाते हैं।

उदर रोग विशेषज्ञ डॉ. देवेन्दर सिंह ने लीवर फेल होने के कुछ लक्षण बताए। इनमें काला मल होना, उल्टी में खून निकलना, पेट में पानी का जमा होना, मानसिक भ्रम होना, मामूली घावों में अधिक खून निकलना, पीलिया, गुर्दे में शिथिलता, अत्यधिक थकान, हेमोग्लोबिन का कम होना और रक्त कणों की संख्या में कमी आना शामिल हैं। इसके इलाज के लिए सही अस्पताल और अनुभवी चिकित्सकों की जरूरत पड़ती है।

उन्होंने बताया कि लीवर प्रत्यारोपण के बाद जीवन भर दवाएं लेनी पड़ती हैं, ताकि प्रत्यारोपित लीवर पर बीमारियां हमला न कर सकें। प्रत्यारोपण के 6 माह या उससे कुछ अधिक समय सामान्य जीवन जीने और पूरी तरह बेहतर महसूस करने में लग सकता है।

 

 

 

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