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दोनों पक्ष सहमत हों तो तलाक के लिये एक साल रोकना जरूरी नहीं,हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलटा

बिलासपुर हाईकोर्ट

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को पलट दिया है जिसमें एक दम्पती के तलाक के आवेदन पर अलगाव का आदेश दिया गया था और अर्जी एक साल बाद मंजूर करने की बात कही गई थी। कोर्ट ने कहा है कि सहमति के आधार पर तलाक के लिये एक साल की प्रतीक्षा अनिवार्य नहीं है।

परिवार न्यायालय में संध्या सेन व संजय सेन ने आपसी सहमति के आधार पर तलाक के लिये आवेदन दिया। सन् 2017 में दोनों का विवाह हुआ था। पत्नी केवल दो दिन अपने पति के घर पर रहने के बाद मायके वापस लौट गई थी। आवेदन पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि दोनों के बीच दहेज सम्बन्धी कोई मामला नहीं है न ही आपस में मनमुटाव या विवाद की स्थिति पैदा हुई है। दोनों को तत्काल तलाक क्यों चाहिये, स्पष्ट नहीं है। इस स्थिति में दोनों को एक साल तक अलगाव में रहना होगा, उसके बाद तलाक का आवेदन दे सकते हैं।

इस आदेश को युवती की ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हिन्दू विवाह अधिनियमय 1955 के अंतर्गत पति-पत्नी में सहमति होने के बावजूद वे विवाह के कम से कम एक साल बाद तलाक का आवेदन दे सकते हैं। विशेष मामलों में यदि याचिकाकर्ता अत्यधिक पीड़ित हो तो इस समय सीमा में छूट दी जा सकती है। जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा व जस्टिस एन के चंद्रवंशी की बेंच ने तलाक की अनुमति देते हुए कहा कि पति पत्नी के बीच क्या विवाद है यह कोर्ट नहीं देखेगी। उसे केवल यह सुनिश्चित करना है कि तलाक का आवेदन डर, दबाव या प्रलोभन से नहीं दिया गया है।

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