प्राण चड्ढा/ छतीसगढ़ में बघेल सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट में कृषि को उद्योगों से अधिक तरजीह देने का लाभ इस छोटे राज्य को मिलना निश्चित है।
किसानों की कर्ज माफी और धान मूल्य में इजाफे से पढ़े लिखे जो युवक शहर की अदनी सी नौकरी की आस लगाए रहते थे, वो अब फिर खेती की तरफ रुख करेंगे और धान की खेती को लाभकारी उद्योग मानेंगे।
पंचवर्षीय योजनाओं के शुरू में छतीसगढ़ को भिलाई स्टील प्लांट मिला और पंजाब ने भांगड़ा नंगल बांध, नतीजा सामने है। नहरों के जाल से पंजाब और हरियाणा में हरित क्रांति बाद आई। सम्पदा की कोख से औद्योगिक क्रन्ति का जन्म हुआ, और ये राज्य आज विकसित राज्य हैं।
कोई भी उद्योग वास्तविक उत्पादन नहीं करता, वह केवल रूपांतरित करता है, जबकि खेती में एक दाना बीज सौ दाना अनाज देता है।
छतीसगढ़ का आम किसान,आज भी लकड़ी के नागर से अपने भाग्य की लकीरें, खेतों में लिखता-मिटाता है। उसको बिजली, खाद,और सिंचाई के लिए पानी चाहिए। मेहनत में वह कम नहीं। वही दिल्ली,पंजाब से जम्मू तक के विकास कर रोजी रोटी कमाने जाता है। अब लाभ वाली खेती गांव में करेगा, धान 25 सौ रुपये की दर गांव गांव की अर्थव्यवस्था बदल देगी। गावों में पैसा आया तो शहर के बाज़ार में आई मंदी स्वमेव दूर होगी।
गांव में कुटीर और माध्यम उद्योग विकसित हो उसके लिए जनशक्ति तैयार करनी होगी। इसके लिए राजस्व के मामले निपटाने और गांव में पटवारी राज खत्म करना होगा। जहां का पानी वहीं उपयोग की नीति से राज्य के जलस्रोत उन्नत रहेंगे और कृषि- उद्योगों को लाभ मिलेगा। ग्रामीण बेरोजगारी को खेती ही दूर कर सकती है। अब तक कृषि से सौतेला व्यवहार होता रहा है,पर इस बजट ने खेती की तरफ आस जगाई है।

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