गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अलग-अलग विभागों में हो रहा शोध

बिलासपुर। गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में किये गए एक शोध से सामने आया है कि पत्थरचटा जैसे औषधीय पौधे पथरी के इलाज के लिए बाजार में मिलने सिस्टोन जैसी दवा की तरह ही फायदेमंद है। विश्वविद्यालय में एक अन्य शोध चल रहा है जिसमें गुलबकावली, सीताफल, गुगुल आदि आठ औषधीय पौधों के कई रोगों के उपचार में फायदेमंद पाया गया है।

सीयू के फार्मेसी विभाग में किरण एस बोड़के ने पथरी के इलाज में औषधीय पौधों के उपयोग पर शोध किया है। इनके शोध निर्देशक सहायक प्राध्यापक डॉ. के. पी. नामदेव हैं। दो औषधीय पौधों पत्थरचटा और गटारन के फोटो केमिकल अवयवों को अलग कर चूहे में पथरी डालकर परिणाम देखा गया।  पत्थरचटा का वैज्ञानिक नाम केलंचुपेनाटा है। प्रयोग से पहले इनके पौधों को सुखाकर पत्रियों को एल्कोहल व एथाइल एसीटेट से एक्सट्रेक्ट किया गया और उनका रासायनिक विश्लेषण किया गया। चूहे की किडनी में पथरी डालकर किया गया इलाज काफी असरदार रहा। यह बाजार में मिलने वाली दवा सिस्टोन के समान उपयोगी पाया गया है। पत्थरचटा की पत्ती का एक्सट्रेक्ट एल्कोहल, स्थाइल एसीटेट के अलावा मेथेनॉल से भी निकाला जाता है।

सीयू में वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा भी छत्तीसगढ़ में पाये जाने वाले उन औषधीय पौधों के गुणों पर शोध किया जा रहा है, जिन पर पहले कार्य नहीं हुआ। सह-प्राध्यापक डॉ. अश्विनी कुमार दीक्षित के निर्देशन में सतीश कुमार दुबे व कुंदन कुमार ओझा द्वारा छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पौधों के एंटीऑक्सीडेंट गुणों के पर शोध कार्य किया जा रहा है। शुरूआती दौर में पच्चीस पौधे चयनित किये गये थे जिनमें से आठ पौधों गुलाबकावली, हनुमानसड, करंज, मुडाही, गुगुल, सीताफल, विलायती तुलसी एवं डिकामाली पर उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुए है। शोध कार्य में इनकी पत्तियों का प्रयोग किया गया था, जिनमें प्रकृतिक एंटीऑक्सीडेंट जैसे- अल्फा-टरपेनिन, फेनोलिक, फ्लावोनोइड एवं फ्लावोनोल्स की सांद्रता बहुतायत मात्रा में पाई गई। इन पत्तियों में इन यौगिकों की उपस्थिति प्राकृतिक दवा अनुसन्धान के क्षेत्र में बहुत उपयोगी साबित हो सकती है।

अनेक औषधीय पौधों में काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंटस पाए जाते हैं जो की मानव शरीर के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी होते है। ये एंटीऑक्सीडेंटस शरीर में बनने वाले फ्री रेडिकल्स (स्ट्रेस) को कम करने में बहुत ही उपयोगी होते है। ये एंटीऑक्सीडेंट, कैंसर और अल्जाइमर जैसी अन्य कई गंभीर बीमारियों से बचाव के साथ-साथ इन बीमारियों के रिस्क को भी कम करता है। आज केमिकल से बने हुए सिंथेटिक एंटीऑक्सीडेंटस बाजार में पाए जाते है, जिसके अत्यधिक सेवन से किडनी, लीवर, एवं हार्ट पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंटस के प्रयोग पर जोर दिया जाता है।

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