गांधी और सुभाष विषय पर संगोष्ठी

बिलासपुर। गांधीवादी विचारक आनंद मिश्रा का कहना है कि यह सही है कि महात्मा गांधी और नेताजी के बीच मतभेद थे लेकिन उन दोनों के बीच आपस में बहुत स्नेह पूर्ण प्रगाढ़ संबंध था और इसे आज कुछ लोग अतिरंजित करके और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर बताते हैं।

लखीराम अग्रवाल ऑडिटोरियम में आज शाम गांधी ग्लोबल फैमिली छत्तीसगढ़ की ओर से आयोजित गांधी और सुभाष स्वतंत्रता आंदोलन का विमर्श विषय पर रखी गई संगोष्ठी में बात करते हुए आनंद मिश्रा ने कहा कि दोनों के बीच विचारधाराओं में सहमति बनाने के लिए कई बैठकें हुईं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को यह समझाने की कोशिश की कि वे हथियारों के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई  क्यों उचित मानते हैं। दूसरी ओर गांधी जी सुभाष चंद्र बोस को लगातार यह समझाने की कोशिश करते रहे की अहिंसा का रास्ता क्यों सही है।

गांधी जी और सुभाष में मतभिन्नता दो मुद्दे पर थी। एक आजादी पाने का तरीका हिंसक हो या हिंसक दूसरा, आजादी के लिए दूसरे देशों की मदद ली जाये या नहीं। गांधी जी चाहते थे कि देश अपनी लड़ाई खुद लड़े जिससे वह आजादी पा लेने के बाद किसी साथ देने वाले देश के दबाव या प्रभाव में नहीं रहे।

उन्होंने कहा कि गांधी और सुभाष के बीच विवादों को बड़ा करके बताया जाता है। इसके लिए इतिहास को तोड़ा मरोड़ा भी जाता है। जबकि गांधी जी ने ही सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित किया था।

गांधी जी को कमतर आंकने के लिए कई बार यह भी कहा जाता है कि भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया जबकि यह बात सही नहीं है उन्होंने इरविन को 6 बार चिट्ठियां लिखी। अंग्रेज सरकार ने इसका आदेश भी जारी कर दिया लेकिन तत्कालीन पंजाब के गवर्नर ने उस चिट्ठी के पहुंचने से पहले ही आनन-फानन में भगत सिंह और उनके साथ खुदीराम बोस व बिस्मिल को फांसी पर लटका दिया। गवर्नर की मंशा थी कि इसके चलते गांधी के प्रति लोगों में रोष उमड़ जाये।

इस अवसर पर उपस्थित इतिहास के जानकार हरीश यादव ने कहा कि दोनों का अपना अपना महत्त्व था। गांधी जिस दौर के थे वे अहिंसा को पसंद करते थे जबकि नेताजी युवा थे और वह आक्रामक तरीके से अंग्रेजों से लड़ाई लड़ करके जीत हासिल करना चाहते थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विचारक विवेक जोगलेकर ने कहा कि लोग गांधी के विचारों को अगर समझ लें तो फिर आज के जमाने में भी वह प्रासंगिक है चाहे वह श्रम आधारित अर्थव्यवस्था का विषय हो, चाहे वह हिंसा का या फिर जाति वर्ण व्यवस्था के संबंध में उनका विचार। कोई भी विषय को गांधी का रास्ता ही भविष्य का भी रास्ता है, जिसमें हमें समय के अनुसार संशोधन करते हुए चलना चाहिए।

कार्यक्रम के आयोजक वरिष्ठ पत्रकार रूद्र अवस्थी ने कहा कि यह आयोजन इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि यह गांधी जी की 150वीं और सुभाष चंद्र बोस के 122वीं जयंती है। हमारे बीच इस तरह के विषयों पर समय-समय पर चर्चा होने के लिए मंचों की कमी दिखाई देती थी और हम इस तरह के आयोजन निरंतर करने का प्रयास करते रहेंगे। गांधी ग्लोबल फैमिली की ओर से आयोजक डॉ अजय श्रीवास्तव ने अतिथियों व श्रोताओं का आभार प्रदर्शन किया। उन्होंने भी कहा कि इस तरह के आयोजन भविष्य में और किये जाएंगे।

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here