बिलाईगढ़ थाने के खपरीडीह में सन् 2012 में हुई थी घटना, 10 साल की बच्ची के बयान के आधार पर हुई थी जांच

बिलासपुर । सुप्रीम कोर्ट ने बिलासपुर हाईकोर्ट के उस फैसले को बदलते हुए बरी किया गया है जिसमें पांच लोगों की हत्या के आरोप में दो लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

बिलाईगढ़ थाने के अंतर्गत खपरीडीह में 17 नवंबर 2012 को सुबह श्री बाई, सुभद्रा, कोंदी, अमरीका और माला को अपने घर में मृत अवस्था में पाया गया था। एक दिन पहले उनके घर पर खर्री, सारंगढ़ से दिगम्बर वैष्णव (27 वर्ष) और बरभाठा (सारंगढ़) से कोंदी के लिए रिश्ता तय करने के उद्देश्य से आये थे।

सबसे पहले मृतक सुभद्रा की 10 साल की बेटी चांदनी ने इन शवों को देखा। पांचों महिलाओं का शव देखने से ही मालूम हो रहा था कि उनकी घातक हथियारों से प्रहार कर हत्या की गई है। जांच अधिकारी बृजेश तिवारी ने घटना स्थल से गोवा शराब की खाली बोतल, टॉर्च और शर्ट के टूटे हुए बटन जब्त किये थे। पुलिस ने जांच में पाया कि दिगम्बर और गिरधारी ने इन पांचों महिलाओं की हत्या की है। आरोपी दिगम्बर की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में इस्तेमाल की गई बाइक और चोरी की गई रकम पांच हजार 600 रुपये व कुछ जेवर उसके घर से बरामद किये। सत्र न्यायालय ने मामले की सुनवाई करने के बाद तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश रजनी दुबे ने फैसला सुनाया। उन्होंने पांच महिलाओं की हत्या को दुर्लभतम मामला माना और दिगंबर तथा गिरधारी को फांसी की सजा सुनाई। हाईकोर्ट में आरोपियों ने अपील की जहां 30 अप्रैल 2015 को सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा गया।

दोनों आरोपी अपील लेकर सुप्रीम कोर्ट गये। जहां न्यायमूर्ति ए के सीकरी, एस नजीर और एम आर शाह की बेंच ने दोनों को बरी कर दिया। कोर्ट ने सजा के आधारों को लेकर कहा कि अभियोजन मुख्य रूप से 10 साल की बच्ची के बयान पर आधारित है। वह घटना की चश्मदीद गवाह नहीं थी, बल्कि उसने शवों को सबसे पहले देखा था। उसके साक्ष्य विसंगतिपूर्ण हैं।

बेंच ने कहा कि न्यायालय ने हमेशा माना है कि बच्चे की गवाही के साक्ष्य का सावधानी से मूल्यांकन किया जाना चाहिए। कई बार बच्चों को सिखा-पढ़ा कर बयान दिलाया जा सकता है। बच्चे की गवाही से जुड़े पर्याप्त साक्ष्य होना जरूरी है। यह कानून से अधिक व्याहारिक ज्ञान का नियम है।

इस मामले में पाया गया है कि अपराध की सूचना देने में देरी हुई है, जिसका कारण साफ नहीं है। यदि अभियुक्तों के अपराध पर हम फिंगर प्रिंट की रिपोर्ट पर निर्भर हैं तो विशेषज्ञ से जांच भी महत्वपूर्ण है। फिंगर प्रिंट के नमूने की अभियोजन पक्ष ने जांच ही नहीं की है। एफआईआर में चोरी की भी सूचना दर्ज नहीं की गई है। अभियुक्तों से बरामद रकम चोरी या लूट की है इसके समर्थन में कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह कहा जाना कि दोनों अभियुक्त एक साथ देखे गए थे, जो तभी साक्ष्य में लिया जा सकता है जब ऐसा साथ विकट परिस्थितियों के कारण हो। ऐसे में इन अभियुक्तों ने अपराध किया है, यह निश्चित नहीं किया जा सकता।

बेंच ने दोनों अभियुक्तों की रिहाई का आदेश दिया है।

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