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जैसे सारा शहर एक हो गया हो, रामशरण के सामने स्व. बीआर यादव की विरासत को आगे बढ़ाने का मौका

महापौर रामशरण यादव, पूर्व मंत्री स्व. बीआर यादव।

पुरानी टीम को नई ऊर्जा के साथ मैदान पर उतरना होगा…

बिलासपुर। 24 दिसम्बर को मतगणना स्थल पर दोपहर रामशरण यादव मिले। सहज भाव से बता रहे थे कि 46 मतों से पीछे चल रहा हूं। चेहरे पर हल्की शिकन थी पर कोई बेबसी नहीं। बीते चुनाव में महापौर का चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस इतने ज्यादा मतों से हारी, जितने विधानसभा में भी नहीं। रामशरण को ऐसा लगा अब तो राजनीति को जै राम। पार्षद के रूप में भी हारने का कोई पहला अनुभव तो था नहीं, पहले भी हारे थे। वे इसके लिए अपनी मनःस्थिति को तैयार करते हुए दिख रहे थे। मगर आगे की गिनती में मत बढ़े, चमत्कार हुआ और विजयी हुए।

कभी पेन्ड्रावाला में, संतोष भुवन,  टाउन हाल, कभी राघवेन्द्र हाल में, कभी सभा-समारोहों में हर समय लोगों के बीच मौजूद। यह 1984-85 की बात है। तब स्व. बी.आर. यादव की तूती बोलती थी। स्व.यादव जी के साथ दर्जनों, सैकड़ों मुलाकातें रहीं। कभी नहीं देखा कि उन्होंने कभी रामशरण या भुवनेश्वर यादव को लोगों से मिलने-जुलने का माध्यम बनाया हो। स्व. यादव जी के साथ इनका सचमुच कितना नजदीकी रिश्ता है, ज्यादातर लोगों को पता भी नहीं है। जब महापौर के नाम पर रामशरण यादव का नाम यादव जी के सामने रखा गया तो उन्होंने राजेश पांडेय को चुना।

सवाल उठ सकता है कि यादव जी जब अपने रिश्तेदारों रामशरण, भुनेश्वर को राजनीति में प्रश्रय नहीं देते थे तो फिर उन्होंने अपने बेटे कृष्ण कुमार यादव को बिलासपुर से विधानसभा की टिकट क्यों दिलाई थी, जो बुरी तरह हारे? तब इस बारे में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने बैठकर उनसे बात की थी। उन्होंने बताया था- टिकट काटने के लिए जबलपुर मढ़ोताल घोटाले में उनका नाम जान-बूझकर घसीटा गया (जो बाद में साबित भी हो गया, जब वे इसमें से बाइज्जत बरी होकर निकले)। उन्होंने बताया कि- मेरे पास दो-तीन नाम थे। उन सब से अलग-अलग बात की। पर कोई भी एक दूसरे के नाम से सहमत नहीं था। आखिरकार सहमति बेटे ‘राजू’ के नाम पर ही बनी। इसके बाद जो बिलासपुर की राजनीति बदली उसकी शुरूआत ‘अ’ से होती है ‘ब’ से नहीं। आगे बात करेंगे।

ताज्जुब हो सकता है कि दो ढाई दशक बीत जाने के बाद भी कांग्रेस के वे ही नाम हैं जो आज भी फ्रंट पर होते हैं या अपने जीते जी थे- शेख गफ्फार (दिवंगत), राकेश शर्मा, विजय पांडेय, नजीरूद्दीन, राजेश पांडेय, अटल श्रीवास्तव आदि। बरसों विपक्ष में रहते हुए इन्होंने स्व. यादव की स्मृतियों को जीवित रखा हुआ है। इस फेहरिस्त में कई और नाम भी हैं जो आज इस दुनिया में नहीं हैं या फिर सक्रिय नहीं हैं और उनका नाम इस समय याद नहीं आ रहा है। वे लोग भी हैं जो उनके करीब दिखे, फिर उन्हें बाद में चुनौती दी। इन्होंने कांग्रेस के जनाधार को निर्णायक रूप से कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई। पर उनका जिक्र इस मौके पर नहीं करना ही ठीक होगा।

अब उसी स्व. यादव की ताक़त को दोहराने के लिए शहर का नेतृत्व मिला है। उन आंदोलनों को याद करने की जरूरत है जिसने बिलासपुर की अस्मिता को स्थायी पहचान दी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के दौरान राजधानी नहीं बन पाने के एवज में हाईकोर्ट लेकर आने की जिद, रविशंकर विश्वविद्यालय को विभाजित कर बिलासपुर में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय लाने का आह्वान, अहिंसक होने के बावजूद कुछ उपद्रव तक चले जाने वाले रेलवे जोन के लिए किया गया आंदोलन, कोल इंडिया का फील्ड्स हेड क्वार्टर लाने के लिए किया गया संघर्ष और ऐसी बहुत सी घटनाएं। लगता है कि हमारे नये महापौर उसी जज़्बे को बनाकर रखने वाले हैं। वे महापौर निर्वाचन की प्रक्रिया में पहुंचने से पहले हवाई सेवा के लिए चल रहे राघवेन्द्र राव सभा भवन के सामने अखंड धरना आंदोलन में भी बैठे हुए थे। यह क्या है, समझा जा सकता है।

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बिलासपुर शहर गुणात्मक आकलन में बहुत पिछड़ गया। कहा जा सकता है कि इसके लिये कोई एक व्यक्ति या नेता जिम्मेदार नहीं है। सत्ता को आगाह करते रहने के लिये विपक्ष की भूमिका भी मायने रखती है। यादव जी के गुजर जाने के बाद विपक्षी कांग्रेस ने बीच में अपना भी महापौर चुना, पर तस्वीर नहीं बदली। इन बीते बरसों में प्रदेश के कई शहर महानगरों जैसी सुविधाओं से सम्पन्न हो गये, पर हम कस्बावासी ही रह गये। कस्बा रह जाने का नुकसान यह कि हम शिक्षा, रोजगार, विकास पर राज्य के दूसरे शहरों से पीछे। पर फायदा यह रहा कि हम एक दूसरे को पहचानते हैं। यह पहचान हमें हर मसले पर साथ-साथ संघर्ष करने के लिये प्रेरित करता है।

महापौर का निर्वाचन प्रमाण-पत्र हाथ में लेने के बाद रामशरण यादव ने अपनी प्राथमिकताएं बता दीं। वे इस शहर के घटते जल-स्तर को सुधारना चाहते हैं और पानी निकासी की समस्या को दूर करना चाहते हैं। यह ठीक है। दुनिया भर में जल संकट है, बिलासपुर भी अछूता नहीं है। लोगों के साथ बैठकर कुछ विचार-विमर्श करेंगे तो संभव है वे कुछ विस्तार से बात करेंगे।

ये बात भी है कि नगर-निगम बिलासपुर अब पहले जैसा बिलासपुर नहीं रह गया है। इसमें कुल पांच विधानसभाओं की 18 ग्राम पंचायतें और तीन नगर पंचायतें शामिल हो चुकी हैं। महापौर को उन पंचायत भवनों में भी जाकर बैठना होगा। वहां भी नाली, सड़क, बिजली की समस्या है। नये महापौर का क्षेत्र इतना विस्तृत है जो किसी विधायक का नहीं। इतने वित्तीय अधिकार आ गये हैं जो किसी और जन-प्रतिनिधि के पास नहीं। सारा कुछ समझने के लिए वक्त निकालना पड़ेगा, वरना ब्यूरोक्रेट्स और सालों से बैठे अफसर, कर्मचारी चकमा देंगे और तेवर दिखाएंगे। सबको साथ लेकर चलना होगा। राजनैतिक नेतृत्व प्रभावी हो तो प्रशासन नतमस्तक हो जाता है। नये महापौर का क्षेत्र पांच विधायकों के चुनाव क्षेत्र से जुड़ा है। कांग्रेस विधायक शैलेष पांडेय व रश्मि सिंह ही नहीं भाजपा के विधायकों का रुख उनको लेकर सकारात्मक है। नगर की पुरानी समस्याओं के अलावा नये जुड़े हिस्सों में जन सुविधाओं को पहुंचाना और विकास की मांग को पूरा करने के लिए सबके साथ अच्छा तालमेल रहेगा ऐसी आशा की जा सकती है।

नये महापौर का अब तक की राजनीति पर गौर करें तो ऐसा नहीं लगता कि वे अपना कद ऊंचा करने के लिए किसी स्थापित जन-प्रतिनिधि को किसी तरह की चुनौती देने की कोशिश करेंगे। वे पांच साल के कार्यकाल की सोचेंगे न कि चार साल बाद होने वाले किसी विधानसभा चुनाव के बारे में। उम्मीद की जा सकती है कि वे अपनी जिम्मेदारी पर ध्यान फोकस रखेंगे और अपने कार्यकाल को इतिहास में दर्ज कराएंगे।

राऊत नाच महोत्सव ने पूरे देश में बिलासपुर को पहचान दिलाई है। डॉ. कालीचरण यादव ने अपनी पूरी ऊर्जा बीते चार-पांच दशकों ंसे लगा रखी है। यह महोत्सव बी. आर.यादव की धरोहर है। अब इसे नया और विस्तृत आकार दिया जा सकेगा और बरसों-बरस आयोजन की निरन्तरता बनी रहेगी, ऐसा विश्वास किया जा सकता है।

भारतीय जनता पार्टी ने बिलासपुर नगर-निगम में मामूली सफलता हासिल नहीं की है। उनके 30 पार्षद निर्वाचित हुए हैं। बाद में दो और साथ आए। चाहते तो वे तोड़फोड़ की कोशिश करते और अपना उम्मीदवार खड़ा कर के कांग्रेस को संकट में डाल देते। पर भाजपा ने,  न केवल महापौर बल्कि सभापति पद के लिए भी वाक ओवर दे दिया। राजनीतिक नफा-नुकसान पर विचार किये बिना। भाजपा के कई नेता निर्वाचन के मौके पर मौजूद थे। ये ही शहर की तासीर है। शहर पहले, शहर के लोग पहले-राजनीति बाद में। शहर के विकास की बात हो तो खुले मन से विपक्ष में बैठे लोगों से भी बात करें, उनकी सुनें। नहीं सुनेंगे तो वे आपकी नाक में दम कर देंगे, आंदोलन से उपजे हुए लोग वहां भी हैं। कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक रहा तो उम्मीद है आप पूरे पांच साल इस पद पर बने रहेंगे इसके लिए आपको अग्रिम शुभकामनाएं।

 

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