आत्महत्या रोकथाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण कार्यक्रम  

गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में राज्य मानसिक चिकित्सालय, सेंदरी एवं केन्द्रीय विश्वविद्यालय मनोवैज्ञानिक परामर्श केन्द्र द्वारा संयुक्त तत्वावधान में 28 अगस्त को ग्रामीण प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक विकास विभाग में छा़त्र-छात्राओं के लिए आत्महत्या रोकथाम, गेट कीपर ट्रेनिंग विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ0 बी.आर. नंदा, अधीक्षक, राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. बी.आर. होतचंदानी, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय शामिल रहे तथा अध्यक्षता प्रोफेसर प्रतिभा जे. मिश्रा, समन्वयक, मनोवैज्ञानिक परामर्श केंद्र ने की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ0 बी.आर. नंदा, अधीक्षक, राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेंदरी ने कहा कि प्रतिस्पर्धा की इस युग में हर व्यक्ति तनाव में है। जीवन में तनाव होना स्वाभाविक है। तनाव का प्रबंधन करने से विकास होता है। कभी-कभी यह तनाव अवसाद का रूप ले लेता है जिससे आपका विकास अवरूद्ध हो जाता है। शारीरिक नि:शक्तता को श्रेष्ठ लोग चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं। जाने माने संगीतकार रविन्द्र जैन देख नहीं सकते थे लेकिन उन्होंने संगीत के क्षेत्र में मिसाल कायम की। नृत्यागंना सुधा चंद्रन व पर्वतारोही अरूणिमा सिंह ने पैर न होने की चुनौती को स्वीकार की और सफलता के नये आयाम गढ़े। यदि कोई मन से विकलांग हो जाये तो उसकी स्थिति अच्छी नहीं रहती। मानव जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है। जीवन को अच्छे से जीना, जो भी स्थिति हो उससे लड़ना और जीवन को सार्थक बनाना उद्देश्य होना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि डॉ. बी.आर. होतचंदानी, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेंदरी ने कहा कि मानव जीवन बहुत अमूल्य है। चौरासी लाख योनियों के बाद मानव शरीर मिलता है। दुनिया में दो ही चीजें होती है एक अच्छा और दूसरा बहुत अच्छा। अगर आपका दिन बुरा है तो धर्य रखिये, चुप बैठिये पलक झपकते ही अच्छा समय आएगा। जीवन को सुरक्षित रखिए। जीवन से बड़ी कोई चीज नहीं। उन्होंने कहा कि दुःख बांटने से कम होता है सुख बांटने से बढ़ता है। जीवन में अपनी समझदारी ही मायने रखती है, वरना अर्जुन और दुर्योधन के गुरु एक ही थे। जीवन में जब कभी विपरीत स्थिति आए तो हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर प्रतिभा जे. मिश्रा, समन्वयक, मनोवैज्ञानिक परामर्श केंद्र ने कहा कि धैर्य, सहयोग, संतुलन एवं संयम रहे तो कोई आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता। आज के युग में युवा बहुत महत्वाकांक्षी है। हमारा देश 65 प्रतिशत युवाओं का देश है। युवाओं को दो वरदान होने के कारण वे मेहनती और ईमानदार है लेकिन उनके साथ अभिशाप भी जुड़े हैं जिससे वे दिशा भ्रमित है और भेड़ चाल चलते हैं। भारत विश्व का चौथा देश है जहां बहुत ज्यादा आत्महत्या होती है। इसका एक मुख्य कारण तकनीक पर पूर्ण निर्भरता भी है। यदि तनाव को तुरंत दूर न किया जाए तो सेकेंड के छोटे से हिस्से में अप्रिय घटना घट सकती है। उन्होंने बताया कि यह जागरूकता कार्यक्रम है जिसमें विश्वविद्यालय के प्रत्येक विभाग से एक छात्र और एक छात्रा शामिल हो रहे हैं।

राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय के मनोसामाजिक कार्यकर्ता, प्रशांत रंजन पाण्डेय  ने कहा कि कुछ भी कदम उठाने से पहले एक बार जरूर सोचें। जीवन का महत्वपूर्ण और बड़ा निर्णय लेने से पूर्व सोचना जरूरी है। उन्होंने विभिन्न खेलों के माध्यम से प्रतिभागियों को समझाया कि किस तरह तनाव और अवसाद से बचा जा सकता है। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय मनोवैज्ञानिक परामर्श केन्द्र की सदस्य डॉ. पायल बैनर्जी व डॉ. प्रसेनजीत पांडा, राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेंदरी की  डॉ. एंजलिना वैभव लाल मनोचिकित्सा सामुदायिक नर्स प्रकरण प्रबंधक एवं श्री अखिलेश डेविड आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर प्रतिभागियों को विभिन्न खेलों के माध्यम से तनाव मुक्त रहने की प्रायोगिक जानकारी दी गई। कार्यक्रम में करीब 50 छात्र-छात्राएं शामिल हुए।

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