कांग्रेस ने बिलासपुर संसदीय सीट से अनेक दावेदारों के बीच तीन दशक से पार्टी में सक्रिय अटल श्रीवास्तव प्रत्याशी घोषित कर दिया है। हर बार देर से नाम तय करने को लेकर चर्चित कांग्रेस इस बार  आगे हो गई। अब भाजपा और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से उम्मीदवारी घोषित होना बाकी है। कांग्रेस के लिए यह चुनौतीपूर्ण लोकसभा सीट है जहां की विधानसभा सीटों पर कुछ माह पहले हुए चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन प्रदेश के दूसरे लोकसभा सीटों के मुकाबले कमजोर रहा। यह जरूर है कि छजकां को इस बीच कांग्रेस से बड़े झटके लगे हैं, इसके बावजूद लगता है कि यहां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। यदि बसपा से भी अलग उम्मीदवार उतरा तो स्थिति जरूर बदल  सकती है।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री अटल श्रीवास्तव का नाम कांग्रेस की पहली सूची में ही घोषित कर दिया गया है। इससे यह साफ है कि बड़े नेताओं के बीच इनके नाम को लेकर एक राय बन गई। हालांकि इस दौड़ में वाणी राव, विजय केशरवानी, विजय पांडेय जैसे नाम थे। श्रीवास्तव के पक्ष में कई बातें हैं। उनके साथ प्रदेश और जिला संगठन के पदाधिकारी तो हैं ही, युवाओं के बीच वे खुद भी लोकप्रिय हैं। भाजपा शासनकाल में सरकार के खिलाफ हुए आंदोलनों में लगातार आगे रहने और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ सालों से जुड़े रहने के कारण संसदीय क्षेत्र में उनका नाम जाना-पहचाना हुआ है। पिछले साल चुनाव से ठीक पहले उनके पक्ष में सहानुभूति उमड़ी जब वे अन्य कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस की लाठियों के शिकार हुए। इस घटना के बाद उनके समर्थक उनकी टिकट पक्की मानकर चल रहे थे, लेकिन समीकरण बदला और शैलेष पांडेय टिकट लाकर भाजपा के कद्दावर नेता अमर अग्रवाल को हराने में कामयाब हो गये। विधानसभा के लिए जब टिकट कटी तो अनुमान था कि बघेल के करीबी समर्थक निगम, मंडलों में लिये जायेंगे। बिलासपुर के पहले प्रवास पर बिलासपुर विकास प्राधिकरण को फिर से अस्तित्व में लाने की संभावना पर जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बयान दिया तो भी यही लगा कि इसकी जिम्मेदारी श्रीवास्तव को ही मिल सकती है। पर ऐसा नहीं हुआ। निगम मंडलों में नई नियुक्तियों का असंतोष  और खेमेबाजी लोकसभा चुनाव में उभर सकती थी और वैसे भी सरकार की प्राथमिकता लोकसभा चुनाव के पहले अपने व्यापक प्रभाव वाले चुनावी वायदों को पूरा करना था।

विधानसभा टिकट के बंटवारे के दौरान बघेल सिर्फ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, लेकिन अब मुख्यमंत्री हैं। इस नाते दिल्ली में अटल श्रीवास्तव के नाम पर सहमति बनाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। यह आने वाले दिनों में मालूम होगा कि आम कार्यकर्ता भी पार्टी के निर्णय के अनुसार कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए कितनी मेहनत करेंगे।

संसदीय सीट में भाजपा की स्थिति मजबूत रही

सन् 2014 के मोदी लहर में एक लाख 76 हजार 436 मतों से भाजपा ने जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा को बिलासपुर लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों पर अप्रत्याशित सफलता मिली । बिलासपुर छोड़कर अन्य सभी सीटों पर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी, जिसके चलते भाजपा को मुंगेली, बिल्हा, मस्तूरी और बेलतरा में जीत हासिल हुई। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के खाते में भी कोटा और लोरमी सीटें आई और इन्हीं की बराबरी में कांग्रेस को भी बिलासपुर और तखतपुर सीट मिल पाई। संभवतः यह प्रदेश की अकेली संसदीय सीट है जहां विधानसभावार मिले वोटों की गिनती में भाजपा से कांग्रेस बहुत पीछे रही। भाजपा को उपरोक्त आठ विधानसभा सीटों में कुल चार लाख 52 हजार 711 वोट मिले । कांग्रेस को इसके मुकाबले तीन लाख 74 हजार 835 वोट मिले। इस तरह भाजपा 77 हजार 876 मतों से आगे रही। यह अंतर बहुत बड़ा है पर कांग्रेस के लिए सुकून की बात भी कही जा सकती है। सन् 2014 के चुनाव में 1.74 लाख मतों के फर्क को वह छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस गठबंधन की मौजूदगी के बाद भी एक लाख कम करने में सफल रही।

छजकां की भूमिका हो सकती है बाजी पलटने वाली

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने बसपा से तालमेल के साथ प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बिलासपुर के विधानसभा सीटों पर ही किया है। उसने कुल मतों के 30 प्रतिशत कुल तीन लाख 23 हजार वोट हासिल किये । इस वोटों के महत्व को समझते हुए भी संभवतः संगठन ने पार्टी के कई समर्पित कार्यकर्ताओं के विरोध को अनसुना कर जोगी का साथ छोड़ने वाले कई नेताओं की घर वापसी कराई। इनमें बिलासपुर प्रत्याशी ब्रजेश साहू, सियाराम कौशिक, चंद्रभान बारमते और संतोष कौशिक शामिल हैं, जिन्होंने क्रमशः बिलासपुर, बिल्हा, मुंगेली और तखतपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा था। इन्हें मिले कुल मत एक लाख से अधिक हैं। पर, यह छजकां का पूरा बिखराव नहीं है। कोटा से विधायक डॉ. रेणु जोगी और लोरमी से विधायक डॉ. धर्मजीत सिंह ठाकुर उनके साथ हैं, जिनकी झोली में क्रमशः 48 हजार 800 तथा 67 हजार 742 वोट गिरे। इसके अलावा बेलतरा सीट से प्रत्याशी जोगी के बेहद करीबी अनिल टाह को 38 हजार 308 वोट मिले थे। इनके वोट मिलकर डेढ़ लाख से अधिक होते हैं। मस्तूरी सीट समझौते के तहत बहुजन समाज पार्टी को मिली, जिसके उम्मीदवार जयेन्द्र सिंह पाटले ने 53 हजार 843 वोट हासिल किये। यह तस्वीर अभी साफ नहीं है कि बसपा बिलासपुर से लड़ेगी या नहीं।

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी से कई नेताओं के टूटकर जाने से फायदा कांग्रेस को होगा भले ही विधानसभा चुनाव में मिले अपने सारे वोटों को वे भले कांग्रेस को न दिला पायें। यह नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें मिले मत सिर्फ कांग्रेस से टूटे मतदाता नहीं थे बल्कि बसपा के भी समर्पित वोट थे। खासकर, तखतपुर, मुंगेली को लेकर इस तथ्य को ध्यान में रखा जा सकता है। बसपा के वोट तो वे हैं जो वर्षों पहले कांग्रेस के हुआ करते थे, पर इस चुनाव में वे फिर कांग्रेस में लौटें, इसकी संभावना कम है।  छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपना खाता खोलने के लिए कोरबा और बिलासपुर को सबसे सुविधाजनक सीट मानकर चल रही थी लेकिन बिलासपुर में उनके नेताओं के पार्टी छोड़ने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है और संभावनाएं घटी हैं। इसके बावजूद दो विधायकों का बना होना, मुंगेली, तखतपुर, लोरमी, कोटा इलाके में जोगी का व्यक्तिगत प्रभाव होना उनकी दमदार उपस्थिति को पूरी तरह खारिज नहीं करती। संभव है कि जिस तरह से विधानसभा चुनाव में उन्होंने कई सीटों पर नतीजों में उलटफेर किये बिलासपुर सीट में भी इसकी संभावना बन जाये। यह स्थिति तब और साफ होगी जब बसपा के साथ उनका टूट रहा गठबंधन बना रहेगा या नहीं। मस्तूरी में इस गठबंधन की मजबूत स्थिति थी। यदि जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार को बसपा का समर्थन मिलता है तो त्रिकोणीय संघर्ष टाला नहीं जा सकता। कांग्रेस के पास यह चुनौती है कि जोगी के प्रभाव को विधानसभा चुनाव के मुकाबले इतना घटा दिया जाये कि वे बाजी न पलट सकें।

भाजपा-छजकां के चेहरे क्या असर डालेंगे?

भाजपा तो मोदी सरकार दुबारा लाने के लिए जी-जान एक कर रही है। अकेला छत्तीसगढ़ ऐसा है जहां विधानसभा में बेहद बुरे नतीजे आये। इसलिए यह कड़ा फैसला ले लिया गया है कि प्रदेश की सभी 11 सीटों से नये चेहरों को मौका मिलेगा। भारी मतों के अंतर से जीत हासिल करने वाले लखन लाल साहू भी इसी मापदंड के चलते अपनी टिकट गंवाने वाले हैं। भाजपा में कई नाम चले। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल, संघ से जुड़े डॉ. विनोद तिवारी, ब्रजेन्द्र शुक्ला, मनीष शुक्ला, अरुण साव आदि..। इस समय सिर्फ अटकलें लग रही हैं। अंदरूनी सूत्र बता रहे हैं कि चेहरा युवा होगा और संघ की राय मायने रखेगी। इसका मतलब है कि पार्टी विचारधारा से जुड़े लोग और संघ के लोग चुनाव जिताने के लिए सामने आएं। प्रत्याशी का महत्व कम होगा,  संघ की मेहनत और मोदी का चेहरा ही सामने होगा।

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नेता कई बार अनौपचारिक रूप से कह चुके हैं कि लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर बिलासपुर से और खुद अजीत जोगी कोरबा से चुनाव लड़ सकते हैं। धर्मजीत सिंह कई विधानसभा क्षेत्रों में जाकर दौरे भी कर चुके हैं। यदि ऐसा होता है तब जोगी का चेहरा, बिलासपुर, मुंगेली और लोरमी में धर्मजीत सिंह को अपनी छवि और सम्पर्क का खासा लाभ मिल सकता है।

इन सबके बीच कांग्रेस की संभावना कई कारणों से सबसे ऊपर बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में विशाल बहुमत वाली सरकार, कर्ज माफी, धान समर्थन मूल्य का अभी तक असर होना, पिछले चुनाव की तरह मोदी लहर का दिखाई नहीं देना इसकी बड़ी वजह है। पार्टी के शीर्ष नेता यदि पिछले विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेसियों में एकजुटता रख सकें और उन्हें चुनाव प्रचार में झोंक सकें तो परिणाम उनके अनुकूल आ सकता है।  अटल श्रीवास्तव को टिकट मिलने के बाद कई वरिष्ठ नेताओं का उनके स्वागत कार्यक्रम में अनुपस्थित रहना फिलहाल चर्चा का विषय बना है। दूसरी तरफ विधायक शैलेष पांडेय ने गर्मजोशी के साथ अटल श्रीवास्तव को टिकट दिये जाने का स्वागत किया और उन्हें बधाई दी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here