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शहीद की विधवा तथा 15 वर्षों से जमीन में पड़ी बालिकाओं के बारे में पढ़कर पसीजे जस्टिस

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिकारी जवान की विधवा के घर मिलने गये।

दोनों मामलों में याचिकायें दायर करने विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश

बिलासपुर। पुलिस बल में कार्यरत प्रधान आरक्षक फुलजेन्स मिंज की बस्तर में नक्सलियों ने अपहरण कर 19 अक्टूबर 2008 को हत्या कर दी थी। प्रधान आरक्षक की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी तर्शिला मिंज को आरक्षक के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति की गई तथा उसकी पदस्थापना सूरजपुर में की गई। उनको पुलिस अधीक्षक कार्यालय बिलासपुर में संलग्न किया गया है। प्रधान आरक्षक की मृत्यु के 14 वर्षों के पश्चात् उसके परिवार को मिलने वाली पेंशन के प्रकरण का निराकरण अब तक नहीं हो पाया है और उनकी एरियर्स की राशि का भी भुगतान नहीं हुआ है।

नक्सली हमले में शहीद पुलिस जवानों के परिवार को उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात् वेतन की पूरी राशि उनके रिटायर्मेंट तिथि तक की पेंशन के रूप में दी जाती है। रिटायर्मेंट तिथि के पश्चात् पेंशन की भांति उसका निराकरण किया जाता है। ऐसे पुलिस बलों के जो बच्चे रहते हैं उन्हें 25 वर्ष की उम्र तक के निराश्रित बच्चे मानकर उनके अंतिम वेतन का 10 प्रतिशत का भुगतान किया जाता है। मृतक फुलजेन्स मिंज की पुत्री अभी 20 वर्ष की है परंतु विगत लगभग दो वर्षों से बैंक द्वारा अनाथ बच्चों के रूप में मिलने वाली पेंशन का भुगतान करना बंद कर दिया है। इसी बीच मृतक जवान की पत्नी ट्रक दुर्घटना में घायल होकर विगत 2 वर्षों से घर में पड़ी है।

प्रमुखता से प्रकाशित इस समाचार को पढ़कर छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गौतम भादुड़ी ने इस प्रकरण में प्रधान आरक्षक की पत्नी व उनके बच्चों को राहत दिलाने के लिये आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये गये हैं। इस पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने इनकी ओर से उच्च न्यायालय में रिट याचिका प्रस्तुत की है।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अवर सचिव द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर एवं विधिक सहायता अधिकारी, शशांक शेखर दुबे ने मृतक जवान की पत्नी एवं बच्चों से उनके घर जाकर मुलाकात की तथा प्रकरण के संबंध में समस्त जानकारी व दस्तावेज एकत्र किये। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव सिद्धार्थ अग्रवाल ने आवेदिका की ओर से रिट याचिका लगाने की कार्रवाई की है।

इसी प्रकार समाचार प्रकाशित हुआ था कि कोरबा जिलें के सरईबहार ग्राम में रहने वाले पहाड़ी कोरबा जनजाति की 2 बालिकाएं लगभग 15 वर्षों से जमीन पर पड़ी हुई हैं तथा वे अपनी आवाज भी खो चुकी हैं। ग्राम में पेयजल की व्यवस्था नहीं है। मात्र एक हैण्डपम्प लगाया गया है, जो लगभग 5 वर्षों से खराब पड़ा है। वहां के निवासी लगभग डेढ़ किलोमीटर से पानी लाने के लिये मजबूर हैं। यह भी प्रकाशित है कि ग्राम के बच्चों में खुजली, आयरन की कमीं और फाईलेरिया जैसी बीमारियां हो रही हैं। जस्टिस भादुड़ी ने इस समाचार को भी पढ़कर संज्ञान में लिया। उनके निर्देश पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जनहित याचिका दायर कर रहा है।

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