-राजेश अग्रवाल

मतदान के कुछ घंटे पहले मतदाता उन नेताओं के भाग्य-विधाता बने हुए हैं जो आने वाले कुछ दिनों के बाद प्रदेश की सरकार चलाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। जिले की ज्यादातर सीटों पर परम्परागत कांग्रेस-भाजपा की टक्कर से अलग इस बार तीसरी शक्ति ने त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी है। हालांकि इनकी लकीर बड़ी नहीं होगी पर इतनी बड़ी जरूर हो सकती है कि सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। चुनाव प्रचार अभियान के अंतिम चरण में दोनों प्रमुख दलों ने जहां जमकर शक्ति प्रदर्शन किया वहीं अब वे मतदाताओं के घर खट-खटा रहे हैं।

राज्य गठन के बाद प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बिलासपुर से मिला। हालांकि उनके नेतृत्व में कांग्रेस आगे चुनाव नहीं जीत पाई और नेतृत्व बदलने के बाद भी यही स्थिति बनी रही। राजनैतिक पंडितों का अनुमान है कि सन् 2018 के चुनाव में एक बार फिर बिलासपुर की खास भूमिका रहेगी। वजह. जोगी कांग्रेस की कई सीटों पर दमदार मौजूदगी। यह दमदारी प्रदेश के दूसरे जिलों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह चुनाव प्रचार के अंतिम दिन 18 नवंबर को कोटा और बेलतरा सीटों पर पहुंचे, जहां पासा पलटने का अनुमान अधिक है। उन्होंने यह बात भी मीडिया से कही कि तीसरी शक्ति मतों का विभाजन कर रही है और चुनाव परिणाम पर इसका असर होने जा रहा है।

प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने वाले कई चेहरे इस जिले से मैदान पर हैं। प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी स्वयं मरवाही सीट से उतरे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक बिल्हा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। बिलासपुर सीट पर प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री अमर अग्रवाल पांचवी बार हैं। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी मस्तूरी, डॉ. रेणु जोगी कोटा, जिला भाजपा अध्यक्ष रजनीश सिंह बेलतरा में मतदाताओं के भरोसे अपना राजनैतिक भविष्य टटोल रहे हैं। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष हर्षिता पांडेय तखतपुर सीट पर अपने पिता पूर्व मंत्री स्व. मनहरण लाल पांडेय की जमीन दुबारा हासिल करने की कोशिश में हैं। बिलासपुर लोकसभा की दो और सीटों की बात करें तो मुंगेली से प्रदेश के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले और लोरमी से विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह ठाकुर की साख भी दांव पर है।

बिलासपुर-मुंगेली में सबसे दिलचस्प तस्वीर यह है कि यहां कई जगह तीन-तरफा मुकाबला है। बिलासपुर, मस्तूरी, बिल्हा और मुंगेली में जहां कांग्रेस, भाजपा के बीच सीधे टक्कर है वहीं मरवाही, कोटा, तखतपुर , बेलतरा और लोरमी में मतदाता तीसरी शक्ति यानि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) की दमदार मौजूदगी के बीच फैसला करने वाले हैं। यही वजह है कि यहां चुनाव प्रचार करने दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा के कई बड़े नेता पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यहां सभाएं लीं। भीड़ जुटाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस के लिए तो उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भाजपा के लिए वोट मांगे। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कई इलाकों में सभाएं लीं।

विश्लेषकों की निगाह बिलासपुर, मरवाही, बिल्हा और मुंगेली के नतीजों पर अधिक है। मंत्री अमर अग्रवाल इस बार यदि जीते तो इतिहास रच देंगे क्योंकि यह उनकी पांचवी जीत होगी। वे मध्यप्रदेश के जमाने, 1998 से लगातार विधायक हैं। पिछला चुनाव उन्होंने 15 हजार 900 मतों से जीत लिया था जब उनके शुभचिंतक उन्हें जनता की नाराजगी का हवाला देकर बिलासपुर सीट बदलने के लिए कह रहे थे। इस बार उनकी लड़ाई पिछली बार से भी अधिक कठिन दिखाई दे रही है। शहर के चप्पे-चप्पे की नब्ज पर पकड़ रखने वाले मंत्री अमर के जुझारू कार्यकर्ताओं ने, जो आरएसएस और पार्टी के प्रति कम- मंत्री के प्रति अधिक निष्ठा रखते हैं, उन्होंने इन्हें स्मार्ट सिटी पुरुष बनाए रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में शैलेष पांडेय शहर के कांग्रेस समर्थकों के भले ही चहेते हों, पर कांग्रेस के दूसरे दावेदारों में उनका नाम आने पर सिर फुटौव्वल की नौबत आ गई थी। इसके बावजूद दो हफ्ते के भीतर कांग्रेस का इतना व्यवस्थित प्रचार पहले कभी नहीं देखा गया। 18 नवंबर को सभी दावेदारों की मौजूदगी के साथ निकली बड़ी रैली ने भी माहौल को कड़ी टक्कर में बदल  दिया। कैसे जीतोगे, देखता हूं… कहने वाले प्रतिद्वन्दी भी साथ आ गए। यहां छजकां प्रत्याशी ब्रजेश साहू और आम आदमी पार्टी के डॉ. शैलेष आहूजा भी मैदान पर उतरे हैं। इनको मिले वोट कांग्रेस-भाजपा से टूटे हुए वोट ही होंगे, जो हो सकता है नतीजे पर असर डाले।

मरवाही से अजीत जोगी का जो नाता है उसके चलते कोई भी यह मानने के लिए तैयार नहीं कि यहां नतीजा उनके खिलाफ जाएगा। बाकी उम्मीदवारों की मौजूदगी रस्म अदायगी कही जाती रही है। पर इस बार रास्ता आसान नहीं है। सबसे बड़ा संकट चुनाव चिन्ह का है। जोगी ने जब-जब चुनाव लड़ा,  कांग्रेस का पंजा चुनाव चिन्ह उनके साथ चिपका रहा। इस आदिवासी बाहुल्य-बहुत और दूर तक फैली सीट पर पंजा निशान लोगों के दिल-दिमाग पर बैठा हुआ है। इस बार हल चलाते किसान का निशान मतदाताओं तक पहुंचाने की चुनौती का जोगी समर्थक सामना कर रहे हैं। कांग्रेस के गुलाब राज और भाजपा की अर्चना पोर्ते ने इसी वजह से उम्मीद लगा रखी है। जानकार कहते हैं कि जोगी के हाथ अगर यह सीट आई तो मतों का फासला पिछले चुनावों से कम तो जरूर होगा।

आखिरी क्षण तक कांग्रेस की टिकट पाने के लिए कांग्रेस से अपमानित होने के बावजूद जुड़ी रहीं डॉ. रेणु जोगी भी आखिर भारी मन से पार्टी छोड़कर, छजकां की टिकट पर कोटा सीट से मैदान पर उतर गईं। बदले चुनाव चिन्ह का संकट उनका भी पीछा नहीं छोड़ रहा है। तीन बार से चुनाव उन्होंने पंजा के चिन्ह से जीता। पिछला चुनाव भाजपा के काशीराम साहू 5500 वोटों से पीछे रहकर हार गए थे। इस बार डॉ. जोगी और कांग्रेस प्रत्याशी विभोर सिंह के बीच कांग्रेस समर्पित वोट बंटने वाले हैं। इस परिस्थिति का सहारा लेकर साहू आशान्वित दिखाई दे रहे हैं। साहू जीते तो उनकी कामयाबी ब्रेकिंग न्यूज़ बनेगी क्योंकि आजादी के बाद से अब तक कांग्रेस वहां से जीतती आई है।

बिल्हा में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमं लाल कौशिक भी इसी गणित के भरोसे जीत की उम्मीद पाल कर चल रहे हैं। पिछले कई चुनावों में मतदाता उलट-पलट कर फैसला देते आए हैं। बातचीत में मुझ से उन्होंने कहा कि कांग्रेस में भाई-बंटवारा हो चुका है।  उनकी जायजाद आधी-आधी हो गई है। भाजपा विरोधी मतदाताओं के वोट कांग्रेस और छजकां के बीच बंट चुके हैं, इसलिए इस बार भाजपा की सिर्फ जीत ही नहीं होगी, बल्कि रिकॉर्ड मतों से होगी। यहां से जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र शुक्ला कांग्रेस की टिकट पर हैं, तो सबसे पहले अजीत जोगी के साथ जाने वाले विधायक सियाराम कौशिक छजकां से मैदान पर हैं।

मस्तूरी, बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र की इकलौती सीट है जहां छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से समझौते के तहत बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी लड़ रहा है। यहां से पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी मैदान में हैं, जिन्हें पिछले चुनाव में जोगी के करीबी रह चुके कांग्रेस प्रत्याशी दिलीप लहरिया ने 23 हजार 900 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। इलाके के दौरे से मालूम हुआ कि लहरिया का मतदाताओं में भारी विरोध है। दूसरी ओर, बसपा उम्मीदवार जयेन्द्र पाटले भी जाना-पहचाना चेहरा नहीं है। हालांकि जोगी ने उनके लिए कुछ सभाएं की हैं। लहरिया आश्वस्त हैं कि चूंकि यहां तीसरी शक्ति अधिक वोट नहीं तोड़ रही है इसलिए वे फिर जीत जाएंगे। वहीं डॉ. बांधी का आक्रामक प्रचार लहरिया के खिलाफ आक्रोश को भुनाने में लगा है। डॉ. बांधी ने कहा कि उनकी जीत पक्की है, पिछली बार के वोटों का फासला मायने नहीं रखता।

तखतपुर उन सीटों में शामिल हैं जहां मुकाबला साफ-साफ त्रिकोणीय हो गया। राज्य महिला आयोग अध्यक्ष हर्षिता पांडेय अपने पिता स्व. मनहरण लाल पांडेय की विरासत को संभालने के लिए मैदान पर हैं। वे यहां से पांच बार विधायक और दो बार राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। यहां से विधायक राजू सिंह क्षत्री की टिकट भाजपा ने काट दी। कांग्रेस में एकजुटता तथा क्षत्री के समर्थकों में नाराजगी है। कांग्रेस प्रत्याशी रश्मि सिंह ठाकुर के पिता रोहणी कुमार बाजपेयी और ससुर ठाकुर बलराम सिंह भी यहां से विधायक थे। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस प्रत्याशी संतोष कौशिक की मौजूदगी दोनों उम्मीदवारों के चेहरे पर शिकन ला चुकी है। पिछली बार संतोष कौशिक ने बसपा, जाने-पहचाने हाथी चुनाव चिन्ह से 29 हजार वोट बटोर  लिए थे। इस बार हल चलाते किसान के निशान पर मैदान में हैं। उन्हें चिन्ह की जगह चेहरे की बदौलत यदि वोट मिल गए तो परिणाम चौंकाने वाला होगा।

बेलतरा में भी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस प्रत्याशी अनिल टाह ने यही स्थिति बना रखी है। यहां सीधा फार्मूला यही है कि यदि कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र साहू, डब्बू कमजोर पड़े तो टाह की जीत तय है, डब्बू मजबूत हुए तो फायदा भाजपा को। भाजपा जिला अध्यक्ष रजनीश सिंह इसी भरोसे में हैं कि कांग्रेस समर्थित वोट इन दोनों के बीच बहुत ज्यादा बंट जाए और वे भाजपा के पारम्परिक वोटों से सीट निकाल लें। यहां के 60 फीसदी मतदाता शहर बिलासपुर के हैं, इसलिए चुनाव चिन्ह की पहचान का संकट ग्रामीण सीटों के मुकाबले कम है, टाह इसमें अपना फायदा देखते हैं।

लोरमी में भी छजकां प्रत्याशी पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह ठाकुर की लोकप्रियता के बावजूद चुनाव चिन्ह का संकट है। वे पिछला चुनाव पांच हजार वोट से ही हारे थे। आदिवासी बाहुल्य इस इलाके के वन-ग्रामों में उनकी खासी दखल है पर नया चुनाव चिन्ह उनके वोटर जान पाए हैं या नहीं यह सवाल सामने है। यहां से भाजपा ने फिर से विधायक तोखन साहू को टिकट दी है जबकि कांग्रेस ने नए उम्मीदवार शत्रुध्न सिंह चंद्राकर को उतारा है। तोखन साहू मतदाताओं में असंतोष के बावजूद  छजकां और कांग्रेस के बीच वोटों के बंटवारे को अपनी कामयाबी लेकर चल रहे हैं।

मुंगेली में खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले का सीधा मुकाबला कांग्रेस के राकेश पात्रे से है। कांग्रेस की टिकट पर लड़ने वाले चंद्रभान बारमते ने उन्हें अच्छी टक्कर दी थी और वे सिर्फ 2400 मतों से पीछे रह गए थे। इस बार वे छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से लड़ रहे हैं। जीत की संभावना बहुत कम है। बिल्हा के सियाराम कौशिक और वे कुछ हजार मतों में सिमट सकते हैं। फिर भी, एक अंदाजा लगा लें कि कांग्रेस के वोटों का अधिक विभाजन हुआ तो मतदाताओं की नाराजगी के बावजूद लगातार जीत का रिकॉर्ड बनाने वाले मोहले की विजय यात्रा जारी रहेगी।

कुल मिलाकर, ये है कि बिलासपुर लोकसभा और इस जिले की सीटें फिर प्रदेश की सरकार बनने में खास भूमिका निभाने वाली है।

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