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“संविधान करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है, इसे बचाने की जरूरत”

मुखममंत्री भूपेश बघेल, महाधिवक्ता कनक तिवारी व पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी।

‘लोकतंत्र का पुनर्निर्माण’ विषय पर महाधिवक्ता कनक तिवारी का व्याख्यान

बिलासपुर। गांधीवादी विचारक, साहित्यकार व छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता कनक तिवारी का कहना है कि भारत का संविधान ही एक ऐसी किताब है, जिसे उस समय देश के 35 करोड़ लोगों के प्रतिनिधियों ने मिलकर तैयार किया था, आज इसे बचाने की जरूरत है।

महाधिवक्ता तिवारी रविवार को ‘लोकतंत्र का पुनर्निर्माण’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से यह बात कही। कार्यक्रम रोटरी क्लब ऑफ रायपुर हेरिटेज व छत्तीसगढ़ यू. एन. एसोसियेशन की ओर से वृंदावन हाल, रायपुर में आयोजित किया गया था। वेब पोर्टल द वायर की सम्पादक आरफ़ा ख़ानम शेरवानी इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता थीं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

तिवारी ने कहा कि जब संविधान तैयार किया जा रहा था तब उसमें डेमोक्रेसी शब्द पहले नहीं आया। पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसमें सिर्फ रिपब्लिक शब्द का समावेश किया था। महात्मा गांधी, सरदार पटेल के सुझाव पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इसमें डेमोक्रेसी शब्द लिये जाने को लेकर पं. नेहरू से बात की। संयुक्त संविधान सभा में समाजवादी विचारक नहीं थे, पर इसकी व्याख्या सबसे पहले राममनोहर लोहिया ने की। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में डेमोक्रेसी तीन तरह से समझा जाता है। डेमोक्रेसी का मतलब प्रजातंत्र उनके लिए है, जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करते हैं। इनका संस्कृति या कल्चर से कोई लेना देना नहीं है। ये नागरिकों को प्रजा समझा करते हैं और उसी तरह उनसे व्यवहार करना चाहते हैं। इसका अर्थ जनतंत्र उन कम्युनिस्टों के लिए है, जो यूरोपीय देशों से आयातित समझ के प्रवर्तक हैं और भारतीय समाज को आधुनिक होते देखना चाहते हैं। शेष लोगों के लिये यह लोकतंत्र है। आज इस आयोजन में डेमोक्रेसी का अनुवाद लोकतंत्र देखकर उन्हें खुशी हुई है।

तिवारी ने कार्यक्रम में उपस्थित मुख्यमंत्री बघेल का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा लोकतंत्र तो अब चार शब्दों, नरवा,गरूवा, घुरूवा बारी में समाहित है। हम इस तरह के गावों वाले राज्य छत्तीसगढ़ में रहते हैं, जिसने बीते पांच साल तक नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

तिवारी ने कहा कि राम और कृष्ण भारतीय जनमानस में गहराई तक उतरे हैं तो उसके पीछे चार छह कवियों का योगदान है। इनमें सूरदास, तुलसीदास, रसखान, रहीम, कबीर और जायसी को शामिल किया जा सकता है। यह अनोखी बात है कि राम और कृष्ण को जनमानस में व्याप्त कराने वाले इन छह कवियों में चार मुस्लिम हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि वेदांत का उस दिन हिन्दुस्तान में उदय होगा, जिस दिन इस्लामी शरीर का मन भी वेदांतक हो जायेगा।  संविधान को बचाने के लिए तलवार से भी तेज धार वाले कलम रखने वाले मीडिया के लोगों का होना जरूरी है।

 

 

 

 

 

 

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