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“आरक्षण मामले में बहस के दौरान महाधिवक्ता के मौजूद नहीं रहने का नेता प्रतिपक्ष का बयान मिथ्या, भ्रामक”

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में आरक्षण मामले की सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता की मौजूदगी के बारे में दिये गए नेता प्रतिपक्ष के बयान की महाधिवक्ता कार्यालय ने मिथ्या और भ्रामक बताते हुए निंदा की है।

मालूम हो कि आरक्षण मुद्दे पर हाईकोर्ट ने चार अक्टूबर को आदेश जारी किया है। इस बारे में नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक का बयान आया था कि महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा शासन का पक्ष ठीक तरह से रखने के लिए कोर्ट में उपस्थित नहीं थे। हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देकर पिछड़े वर्ग को दिये गए आरक्षण के प्रतिशत के पालन पर रोक लगाई है।

इस बारे में महाधिवक्ता वर्मा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 13 सितम्बर और एक अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की डबल बेंच में हुई। इस पर चार अक्टूबर को आदेश जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 से 27 प्रतिशत करने का आदेश अभी प्रभावी नहीं होगा, परन्तु अनुसूचित जाति एवं सवर्ण वर्ग के लिए दिये गये आरक्षण को सम्मिलित करते हुए 69 प्रतिशत आरक्षण का आदेश जारी रहेगा।

कतिपय समाचार पत्रों में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का बयान छपा है कि महाधिवक्ता वर्मा न्यायालय में शासन का पक्ष रखने के लिए उपस्थित नहीं थे, जबकि बहस की तैयारी उनके निर्देशन में ही की जा रही थी और वे स्वयं प्रत्येक सुनवाई में उपस्थित थे। बहस के लिए उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया को भी बुलाया गया था, जिनके साथ महाधिवक्ता पूरे समय बहस में शामिल थे। अतएव इस बारे में नेता प्रतिपक्ष का आरोप भ्रामक और मिथ्या है। उन्हें न्यायालयीन कार्रवाई के बारे में किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी करने से पहले तथ्यों की पड़ताल कर लेनी चाहिए, उसके बाद किसी प्रकार का बयान देना चाहिए। उन्हें अपने बयान के लिए खेद व्यक्त करना चाहिए।

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