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हसदेव अरण्य बचाने के लिए बेमियादी धरना आंदोलन 44वें दिन भी चला, विशेषज्ञों ने नष्ट होने के खतरे गिनाए

हसदेव अरण्य बचाने के लिए लगातार धरना।

बिलासपुर। हसदेव बचाओ आंदोलन के तहत किए जा रहे धरने को स्थानीय कोन्हेर गार्डन में रविवार को 44 दिन पूरे हो गए। धरना स्थल पर प्रतिदिन की तरह अनेक नागरिक उपस्थित थे।

गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के प्रो. डॉक्टर प्रसून सोनी ने अपने वक्तव्य में इस आंदोलन की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि शासन को हम विशेषज्ञों की और आम जनता की बातें सुनकर उन पर विचार करना चाहिए। छत्तीसगढ़ के लिए इन जंगलों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि हाल ही में हमने यह शोध किया है कि हाथी जो इस धरती के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण प्राणी हैं, उनके रहने और उनके आवागमन के लिए उत्तरी छत्तीसगढ़ में सात हजार ऐसे स्पॉट हैं, जहां उनकी बार बार उपस्थिति दर्ज की गई है। वन-विभाग को इन स्थानों पर बीस पर्यावरणीय और तापीय अनुकूल मापदंड मिले हैं जो हाथियों के वास के लिए पूरा होते हैं। यदि हसदेव के जंगल नष्ट होते हैं तो ये हाथी भी मर जाएंगे क्योंकि उनके वास के लिए जो कारक हैं वे पूरे नहीं होंगे।

डॉक्टर मनीष बुधिया ने हसदेव के जंगलों की जरूरत बिलासपुर में भविष्य के पेयजल के लिए कितनी है, इस पर बात रखी। आज उपस्थित नागरिकों में प्रेमदास मानिकपुरी, पवन पांडेय, डॉ रश्मि बुधिया, डॉ मनीष बुधिया, श्रेयांश बुधिया, चंद्रप्रदीप बाजपेयी, ऋतीश श्रीवास्तव,  साकेत तिवारी, अनीश गुप्ता, प्रदीप नारंग, राकेश खरे, नीतू मिश्रा, अनिलेश मिश्रा इत्यादि शामिल थे।

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