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दावेदारों की बांछे खिली-महापौर सीट सामान्य, कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों से बड़ी संख्या में नये-पुराने चेहरे दावेदार

टाउन हाल, बिलासपुर।

बिलासपुर । परिसीमन के बाद आबादी के लिहाज से लगभग दुगना हो चुके बिलासपुर नगर निगम में इस बार महापौर का पद अनारक्षित रहेगा। यानि हर कोई लड़ सकेगा। पुरानी सीमा से ही दावेदारों की संख्या बीते दस सालों में बहुत रही है, जो आरक्षण के चलते मौका नहीं पा सके। अब आरक्षण से बच जाने के कारण और नये इलाकों के शामिल हो जाने के कारण बड़ी संख्या में दावेदार सामने आएंगे इसकी पूरी संभावना है।

बिलासपुर नगर निगम के परिसीमन की प्रक्रिया हाल ही में पूरी हुई है। इसमें तीन नगर निकाय तिफरा, सिरगिट्टी और सकरी तो शामिल हो ही गये हैं, 15 ग्राम पंचायतों को भी लिया गया है। बिलासपुर नगर-निगम में कुछ बड़ी पंचायतें मंगला, देवरीखुर्द, लिंगियाडीह, मोपका, कोनी आदि भी आ गई हैं। पहले यह अनुमान लगाया जा रहा था कि परिसीमन के चलते बिलासपुर नगर-निगम का चुनाव आगे टल सकता है पर नयी सीमा निर्धारित करने और वार्डों के गठन की प्रक्रिया तेजी से निपटाकर बाकी नगर-निगमों के साथ-साथ बिलासपुर का चुनाव भी कराया जा रहा है।

यह चुनाव दिसम्बर माह के अंत में अथवा जनवरी 2020 के पहले सप्ताह में कराये जाने की घोषणा हो सकती है। बिलासपुर नगर-निगम का चुनाव इस बार बदले माहौल में होने जा रहा है। बीते दस सालों में महापौर पद एक बार महिला प्रत्याशी के लिए तो दूसरी बार पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हो गया था। इस बार यह सामान्य सीट है। बिलासपुर विकास प्राधिकरण के विघटन के बाद, विधायक के बाद बिलासपुर का महापौर ही एक प्रतिष्ठापूर्ण पद है। सरकार बदलने के बाद कयास लगाये जा रहे थे कि इस बार महापौर चुनाव मतदाताओं से प्रत्यक्ष न होकर पार्षदों के जरिये चुना जा सकता है। पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले दिनों साफ कर दिया कि चुनाव की पद्धति नहीं बदलने वाली है, महापौर जनता के वोटों से ही चुने जायेंगे।

परिसीमन के बाद होने वाले चुनाव में महापौर का शक्तिशाली होना तय है। उनका कार्यक्षेत्र बिलासपुर शहर तो होगा ही, तीन नगर निकाय और 15 पंचायतें भी होंगीं। नगर-निगम को शासन से फंड भी ज्यादा मिलेगा और विकास और समस्याओं को हल करने के लिए उनके पास इन नये क्षेत्रों की भीड़ भी उमड़ेगी।

कुछ मायनों में कहा जा सकता है कि उनके अधिकार विधायक से भी अधिक हो जायेंगे। वे अपनी पसंद से मेयर इन कौंसिल बनाएंगे और बजट पास करायेंगे। बिलासपुर का बजट पिछले वित्त वर्ष में 766 करोड़ का था। परिसीमन के बाद इसमें बहुत अधिक वृद्धि हो जायेगी। नये शामिल क्षेत्रों में कई बड़ी परियोजनाएं भी लाई जायेंगी, जो सीमा विस्तार के कारण नहीं लाई जा सकीं।

नगर निगम की पुरानी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि बिलासपुर शहर के नेताओं का ही दबदबा हुआ करता था। अब नई सीमा में बेलतरा, बिल्हा, तखतपुर और मस्तूरी विधानसभा के कुछ हिस्से शामिल हो गये हैं। शहर से महापौर चुनाव लड़ने का मन बना रहे लोगों को इन नये शामिल कस्बों और गांवों से उभरने वाले दावेदार चुनौती दे सकते हैं। इनमें से कई नगरीय निकायों के अध्यक्ष, सभापति और बड़ी पंचायत के सरपंच की भूमिका में, अपने इलाकों में ताकतवर भूमिका निभा चुके हैं। दोनों ही दलों कांग्रेस-भाजपा द्वारा प्रत्याशियों के चयन में इन क्षेत्रों के विधायकों व प्रमुख नेताओं की सलाह को दरकिनार नहीं किया जा सकेगा। यानि बिलासपुर के महापौर की टिकट पुराने बिलासपुर शहर के नेताओं के हाथ ही लगे यह नहीं कहा जा सकता।

इस समय बिलासपुर तथा तखतपुर में कांग्रेस के विधायक तथा मस्तूरी और बिल्हा में भाजपा के विधायक हैं। दोनों ही दलों से विधानसभा चुनाव के समय टिकट की मांग करने वालों की हर एक में संख्या दर्जन भर से ज्यादा थी। मस्तूरी छोड़ बाकी सीटें सामान्य हैं। ऐसे में इन स्थानों से अब महापौर की टिकट के लिए दावेदारों की लम्बी कतार लग सकती है।

परिसीमन के बाद तीन लाख की जगह बिलासपुर नगर निगम बढ़कर पांच लाख की जनसंख्या वाला क्षेत्र हो गया है। इसका दायरा भी पहले से लगभग चार गुना हो गया है। ऐसे में पिछले महापौर चुनाव के मुकाबले यह चुनाव काफी खर्चीला भी होने का अनुमान है।

दावेदारों को आरक्षण की प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार था। अब स्थिति साफ होने के बाद संभावित प्रत्याशियों के नाम आने शुरू हो जायेंगे।

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