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हसदेव अरण्य को कोयला खदानों से बचाने सैकड़ों आदिवासियों का पैदल राजधानी कूच

हसदेव अरण्य के ग्रामीणों का राजधानी रायपुर के लिये पैदल मार्च।

यात्रा उसी मदनपुर से शुरू हुई, जहां राहुल गांधी ने आकर मांगों का किया था समर्थन

कोरबा। हसदेव अरण्य के सघन वन, नदियों, जैव विविधता और वन्य प्राणियों को कोयला उत्खनन से बचाने के लिये आदिवासियों की 330 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू हो गई है। यह यात्रा उसी मदनपुर ग्राम से निकली है जहां छह साल पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चौपाल लगाकर इन ग्रामीणों को आश्वस्त किया था कि किसी भी हाल में यहां खनन परियोजनाओं को शुरू नहीं होने दिया जायेगा।

यह पदयात्रा सरगुजा जिले के फतेहपुर (मदनपुर) गांव से 4 अक्टूबर को शुरू हुई। पहले दिन उन्होंने 22 किलोमीटर की यात्रा तय कर केंदई में रात्रि विश्राम किया। केंदई से आज सुबह 8 बजे निकली पदयात्रा नवापारा परला होते हुए दोपहर में चोटिया ग्राम पहुंची। इसके बाद लमना, बंजारी डांड, मड़ई होते हुए गुरसिया पहुंच रही है। रात्रि विश्राम गुरसिया में होगा। 6 अक्टूबर को कोनकोना, पोंडी-उपरोड़ा होते हुए रात में आंदोलनकारी कटघोरा में रात्रि विश्राम होगा।7 अकटूबर को कटघोरा से सुतर्रा, कापुबहरा, पोतपानी होते हुए पाली पहुंचेगी। 8 अक्टूबर को यात्रा पाली से शुरू होकर बुदबुद, पोड़ी परसदा होते हुए रतनपुर पहुंचेगी। 9 अक्टूबर को रतनपुर से गतौरी होते हुए यात्रा बिलासपुर पहुंचेगी। बिलासपुर में रात्रि विश्राम के बाद 10 अक्टूबर को बोदरी और बिल्हा मोड़ होते हुए सरगांव में रात्रि विश्राम होगा। 11 अक्टूबर को चंद्रखुरी, पथरिया, टेमरी, सजरी-नवागढ़ होते हुए यात्रा शाम को दामाखेड़ा पहुंचेगी। 13 अकटूबर को दामाखेड़ा से सुबह 8 बजे पदयात्रा शुरू होगी जो चंदेरी, बनसांका, सिमगा, भूमिया, तरपोंगी, देवरी होते हुए धरसीवा पहुंचेगी। धरसीवां से सिलतरा होते हुए आंदोलनकारी 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेंगे। 14 अक्टूबर को रायपुर में सम्मेलन होगा और मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात कर आंदोलनकारी अपनी मांगें रखेंगे।

यात्रा के दौरान जगह-जगह नुक्कड़ सभायें लेकर जनसमर्थन जुटाया जा रहा है। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह मार्को व अन्य इन सभाओं में बता रहे हैं कि हसदेव नदी का पूरा कैचमेंट एरिया प्रस्तावित कोयला खदानों के कारण संकट में है। हसदेव नदी छत्तीसगढ़ के फेफड़े के रूप में जाना जाता है। यह मध्यभारत के करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है। यहां 450 से अधिक प्रजातियों की वन्य जीव हैं जिनमें तेंदुआ, भालू, हाथी आदि शामिल हैं। यह इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों का ही नहीं, हसदेव पर बने बांधों के कारण 3 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा भी है। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के लिये इसका अस्तित्व बचाना जरूरी है। इसे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय पूर्व में नो गो एरिया घोषित कर चुकी है इसके बावजूद बिना ग्राम सभाओं की सहमति के नये कोयला खदानों की मंजूरी दी जा रही है।

आंदोलनकारियों का कहना है कि सन् 2015 में जब प्रदेश में कांग्रेस विपक्ष में थी, राहुल गांधी ने मदनपुर में प्रभावितों के साथ चौपाल लगाई थी और आश्वस्त किया था कि किसी भी कीमत पर यहां खनन परियोजनाओं को शुरू होने नहीं दिया जायेगा। पर आज राज्य में जब कांग्रेस सरकार आ चुकी है, केन्द्र को इन खदानों को खोलने के लिये सहमति दी जा रही है। यह पूरा क्षेत्र संविधान की अनुसूची 5 के तहत आता है, जिसमें ग्राम सभा की मंजूरी के बिना कोई खदान शुरू नहीं की जा सकती पर नियमों के खिलाफ जाकर, फर्जी प्रस्ताव बनाकर खदानों को मंजूर किया जाना बताया जा रहा है।

पदयात्रा कर रहे आंदोलनकारियों की मांग है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजनाओं को दी गई मंजूरी निरस्त की जाये।बिना ग्रामसभा की सहमति से बेयरिंग एक्ट के तहत किया गया भूमि अधिग्रहण रद्द किया जाये। ग्रामसभा की अनिवार्य सहमति का प्रावधान किसी भी परियोजना के लिये अनिवार्य रूप से लागू किया जाये। परसा कोल ब्लॉक के लिये फर्जी प्रस्ताव बनाकर मंजूरी ली गई, इसके लिये जवाबदार अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जाये। निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल कर सभी गांवों में सामुदायिक व व्यक्तिगत वन अधिकार मान्यता दी जाये। अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून का पालन कराया जाये।

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