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परसा कोल ब्लॉक अधिग्रहण पर रोक लगाने के मामले में बहस पूरी-आदेश सुरक्षित

परसा कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई की एक तस्वीर।

याचिकाकर्ताओं ने कोल बेयरिंग एक्ट से अधिग्रहित जमीन पर निजी कंपनी अडानी के खनन अधिकार को गलत बताया- कहा, दावा-आपत्तियों का सही निराकरण नहीं

राजस्थान, अडानी कंपनी और सरकारों ने कहा- सब नियम से हुआ

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दो दिन से चल रही परसा कोल प्रभावितों की याचिकाओं में स्थगन की मांग पर सुनवाई आज पूरी हो गई। चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी और जस्टिस राजेन्द्र चन्द्र सिंह सामंत की खण्डपीठ ने स्टे आवेदन पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। इसके पहले दो दिनों में लगभग 7 घंटे चली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ताओं राजीव श्रीवास्तव, नमन नागरथ, निर्मल शुक्ला के साथ-साथ अन्य अधिवक्ताओं ने पैरवी की।

सन् 2020 में लगी प्रथम याचिका जो मंगल साय एवं अन्य ने दाखिल की है पर बहस करते हुये अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने खण्डपीठ को बताया कि कोल बेयरिंग एक्ट के तहत अधिग्रहित की गई भूमि पर निजी कंपनी खनन नहीं कर सकती। इस मामले में राजस्थान राज्य विद्युत निगम ने खनन के सारे अधिकार अडानी समूह की स्वामित्व वाली कंपनी राजस्थान कोयलरी को पूरी खदान आयु के लिये सौंपा है। राजस्थान की कंपनी स्वयं अपने कोल ब्लॉक का कोयला बाजार दर पर अडानी कंपनी से खरीदेगी साथ ही 29 प्रतिशत तक कोयला उत्पादन रिजेक्ट के नाम पर निजी कंपनी ले जा रही है। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में दावा आपत्ति और निराकरण जैसे विषयों पर एकतरफा कार्रवाई की गई है। कोल बेयरिंग एक्ट और नियमों के प्रावधानों के विपरीत भूमि अधिग्रहण कर दिया गया है।

प्रभावित व्यक्तियों की चार अन्य याचिकाओं पर बहस करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव ने खण्डपीठ को बताया कि वन अधिकार कानून, पेसा कानून और भू राजस्व संहिता के प्रावधान कोल बेयरिंग एक्ट के बाद आए हैं और इस कारण वर्तमान स्थिति में कोल बेयरिंग एक्ट को मूल रूप में लागू किए जाने पर असंवैधानिक माना जायेगा। साथ ही परसा ब्लॉक का पूरा वन क्षेत्र सामुदायिक वनाधिकार के तहत सभी प्रभावित व्यक्तियों के लिये समान रूप से सम्पत्ति मानी जाएगी, जिसका अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। ग्राम सभाओं ने अधिग्रहण का विरोध किया है और कंपनी के द्वारा ग्राम सभा के फर्जी प्रस्ताव तैयार कराए।

प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. निर्मल शुक्ला ने कहा कि कोल बेयरिंग एक्ट की संवैधानिकता पर पहले ही फैसला हो चुका है और भूमि अधिग्रहण 2018 में किया गया है। अतः इतनी देरी से उसको चुनौती नहीं दी जा सकती।

राजस्थान कोयलारी (अडानी) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने कहा कि इन कॉल ब्लॉक से संबंधित दो मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं जिसके कारण यहां सुनवाई नहीं की जा सकती। साथ ही कोल ब्लॉक पर रोक लगने पर राजस्थान में कोयले का संकट खड़ा होगा। केन्द्र और राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने अधिग्रहण और प्रक्रिया को सही ठहराया। प्रतिवादियों की बहस के सभी बिंदुओं का याचिकाकर्ताओं की ओर से यथोचित उत्तर दिया गया। इस सबके बाद खण्डपीठ ने मामले को आदेश के लिये सुरक्षित रखते हुए स्टे आवेदन पर सुनवाई समाप्त की।

 

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