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चिकित्सा जगत के जटिल नियमों में संशोधन हो, अस्पतालों पर हमले के खिलाफ एक मजबूत कानून बने

IMA की प्रेस कांफ्रेंस।

आईएमए पदाधिकारी लोकसभा के प्रमुख उम्मीदवारों से कर रहे अपनी मांग

बिलासपुर। देशभर के 543 लोकसभा क्षेत्रों में जीतने की संभावना वाले प्रत्याशियों को इंडियन मेडिकल एसोसियेशन अपनी मांगों से अवगत करा रहा है। उन्हें ज्ञापन देकर चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित नियम कानूनों आवश्यक संशोधन की मांग की जा रही है, साथ ही चिकित्सा सेवा को और बेहतर बनाने के लिए विभिन्न सुझाव दिए जा रहे हैं।
आईएमए के प्रदेश अध्यक्ष डॉ विनोद तिवारी, जिला अध्यक्ष डॉ अखिलेश देवरस,डॉक्टर अविजीत रायजादा, डॉक्टर संदीप तिवारी, डॉक्टर नितिन जुनेजा, डॉक्टर श्रीकांत गिरी व डॉक्टर हेमंत चटर्जी ने बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि आईएमए की मांग डाक्टरों और अस्पतालों पर होने वाले हिंसा के खिलाफ एक मजबूत केंद्रीय कानून बनाने और अस्पताल एवं स्वास्थ्य की देखभाल करने वाली संस्थानों को हिंसा से सुरक्षित क्षेत्र घोषित करने की है।
डॉक्टरों ने कहा कि चिकित्सा की सभी विधाओं की अपनी स्वयं की विशेषता है। सभी चिकित्सा पद्धतियों का आपस में घालमेल  करने से मरीजो के साथ खिलवाड़ होगा। इसलिए आईएमए मरीजों के इलाज में मिक्सोपैथी के खिलाफ है। आईएमए की मांग है कि 50 बिस्तर तक के छोटे और मध्यम अस्पतालों और क्लीनिकों को क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट अधिनियम से छूट दी जाए। स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सम्बंधित सेवाओं में जीएसटी लगाया जा रहा है। बीमार पड़ने पर कर लगाना एक नाजायज प्रक्रिया है। जीवन रक्षक उपकरणों जैसे की वेंटिलेटर मोनिटर अनिथिस्या उपकरणों में जो की 12 प्रतिशत का जीएसटी है। सभी जीवन उपकरणों की बैट्री में 28 प्रतिशत लगता है । मशीन अल्ट्रासाउंड मशीन एवं शुगर स्ट्रिप जांच जैसी अति महत्वपूण चीजों पर भी 18 प्रतिशत जीएसटी है। चिकित्सा उपकरणों की देखभाल रखरखाव मरम्मत दवा, आक्सीजन एवं डिस्पोजेबल्स में तथा स्वास्थ्य बीमा में भी 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है। चिकित्सकों द्वारा विभिन्न एसोसिएशन की मेम्बरशिप, निरंतर चिकित्सा शिक्षा की फीस लेने पर भी जीएसटी लगता है जो की अनुचित है।  आईएमए ने स्वास्थ्य सेवाओं पर लगाए जाने वाले जीएसटी में सुधार की मांग की है।
उन्होंने कहा कि कोई भी डॉक्टर क्रिमिनल मानसिकता से चिकित्सा नहीं देता है। इसलिए मेडिकल प्रोफेशन को भारतीय न्याय संहिता में चिकित्सा सेवा प्रदाता को आपराधिक अभियोजन से बाहर रखा जाए। मरीजों को उपभोक्ता कहना और उसी के हिसाब से डॉक्टर मरीज के रिश्तों को परिभाषित निर्धारित करना डॉक्टर मरीज के रिश्ते के विश्वास को खत्म करता है, यह भारतीय मूल्यों के विपरीत है। डॉक्टरों को उपभोक्ता फोरम एक्ट से मुक्त किया जाए। गर्भ में बेटी की सुरक्षा का दायित्व सरकारों पर होना चाहिए। पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत चिकित्सकों का उत्पीड़न बंद करना चाहिए। इसके अलावा मरीजों की पहचान और गोपिनियता के लिए अलग नियम होने के बावजूद पॉक्सो अधिनियम के तहत जानकारी न देने पर डॉक्टरों को अतिरिक्त क्षति एवं अन्याय का सामना करना पड़ता है। आईएमए ने एक्ट में उचित बदलाव की मांग की है।
आईएमए ने मांग की है कि भारतीय एमबीबीएस उत्तीर्ण स्नातकों के लिए नेक्स्ट की परीक्षा लेना बंद किया जाए। स्नातक व स्नातकोत्तर छात्रों की बांड सेवा बंद की जाए। यह छात्रों और उनके परिजनों पर लाखों करोड़ों रुपये का वित्तीय भार डालता है।
आईएमए ने इन समस्याओं की ओर भी ध्यान दिलाया है- जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सा अधिकारियों के पदों की संख्या बढ़ाई जाए, संविदा का चलन बंद कर एनएचएम व केंद्र में स्थायी नियुक्ति की जाए। थर्ड पार्टी भुगतान की व्यवस्था चिकित्सा सेवा को नौकरशाही की ओर ले जा रही है। निजी अस्पतालों को उच्च गुणवत्ता के इलाज के लिए वित्तीय स्वायत्तता मिलनी चाहिए। सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों को समान पैकेज का भुगतान किया जा रहा है यह निजी अस्पतालों की हानि पर सार्वजनिक अस्पतालों को प्रोत्साहित कर रहा है। इस तरह लगभग 40-45 प्रतिशत स्वास्थ्य योजना में किया जा रहा खर्च सरकारें शासकीय अस्पताल से अपने पास वापस खींच ले रही हैं। बजट की कमी, डिलेड पेमेंट्स, हाई रेजेक्सन, अकारण रिकवरी के कारण छोटे एवं मंझोले कद के अस्पतालों में परिचालन में समस्या आ रही है। नए अस्पतालों को सब्सिडी देना, टैक्स में छूट, अनुदान तथा दीर्घकालिक ऋण देने की मांग भी की गई है।

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