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कोरोना की आड़ में रेलवे ने 4000 से अधिक स्टॉपेज समाप्त किये, करगीरोड, बिल्हा भी इनमें शामिल

ट्रेनों के न रूकने से वीरान हुआ करगीरोड स्टेशन।

रेल मंत्री से मांग- जनविरोधी फैसला वापस लें, सभी ट्रेनों को पहले की तरह छोटे स्टेशनों पर भी रोकें

बिलासपुर। रेल मंत्रालय ने कोरोना महामारी की आड़ में बहुत सी जन-सुविधाएं या तो कम कर दीं, या फिर उन्हें बंद कर दी। हाल ही में एक बड़ा जनविरोधी फैसला लेते हुए रेल मंत्रालय ने देश के 4000 से अधिक स्टॉपेज समाप्त कर दिए। इसका असर छत्तीसगढ़ में भी पड़ा है। छात्र युवा नागरिक रेल जोन संघर्ष समिति ने मांग की है के दशकों से रुक रही एक्सप्रेस और पैसेंजर गाड़ियों को विभिन्न स्टेशनों पर पूर्ववत रोकी जाए।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और छत्तीसगढ़ से मंत्रिमंडल में शामिल आदिम जाति विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह को लिखे पत्र में संघर्ष समिति की तरफ से सुदीप श्रीवास्तव ने कहा है कि रेलवे पूरे भारत में परिवहन के लिए सबसे सस्ता और सुलभ साधन है। चूंकि रेलवे एक मोनोपॉली ट्रांसपोर्टर है इसलिए वह सामाजिक दायित्व की उपेक्षा नहीं कर सकता। कोरोना काल की आड़ में बहुत सारी जन-सुविधा या तो कम कर दी गई, या फिर उन्हें बंद कर दिया गया। इसके तहत विभिन्न यात्री गाड़ियों के 4000 से अधिक स्टॉपेज बिना किसी को बताए समाप्त कर दिए गए हैं।

100 साल पुरानी नर्मदा एक्सप्रेस के स्टापेज खत्म

इन ट्रेनों में बिलासपुर से इंदौर के बीच चलने वाली नर्मदा एक्सप्रेस भी शामिल है, जो 100 वर्षों से करगी रोड, बेलगहना आदि स्टेशनों पर खड़ी होती थी परंतु अब अचानक इन स्टेशनों पर इनका स्टापेज समाप्त हो गया है।

समिति ने पत्र में कहा है कि रेल के जरिए छोटे कस्बों से शहरों को फल-फूल, सब्जी दूध आदि की आपूर्ति होती है इसके चलते या तो सामान शहरों में पहुंच नहीं पायेगा या फिर सड़क के रास्ते से लागत बढ़ेगी और महंगा बिकेगा। इसके अलावा बीमार व्यक्ति को या आपात स्थिति में किसी को कहीं जाना हो तो इन स्टेशनों को यात्रियों की सुविधा छीन ली गई है। यह संविधान के अनुच्छेद 19 एक (डी) का भी उल्लंघन है क्योंकि यातायात और परिवहन नागरिकों का मूलभूत अधिकार है।

उदाहरण के लिए करगी रोड स्टेशन के अंतर्गत बिलासपुर जिले के कोटा विधानसभा और कोटा तहसील का मुख्यालय है। कोरोना काल से पहले यहां 18 पैसेंजर और एक्सप्रेस गाड़ियां रुका करती थीं, मगर अब 2 लोकल ट्रेन के अलावा कोई भी गाड़ी नहीं रुक रही है। पूरा कोटा शहर कई दिनों से इसके खिलाफ आंदोलन कर रहा है परंतु अब तक रेलवे ने पुरानी स्टॉपेज बहाल नहीं की है। इसी तरह बिल्हा तहसील और विधानसभा मुख्यालय है, जहां कई ट्रेनों के स्टॉपेज खत्म कर दिए गए। चूंकि कोरोना काल अभी समाप्त नहीं हुआ है इसलिए आम जनों को अभी इस फैसले की पूरी जानकारी नहीं है। वे उम्मीद कर रहे है कि शीघ्र ही उनके शहर में ट्रेन फिर से रुकने लगेगी। पर धीरे-धीरे सभी को यह बात पता लग जाने वाला है। इससे एक बड़ा जन विरोध केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ा होगा। रेलवे को इससे जो बचत होगी, वह बहुत कम होगी। गांव और कस्बों में जो रोजगार की कमी और महंगाई की समस्या खड़ी हो रही है, वह बहुत ज्यादा होगी।

पर्यावरण व अर्थव्यवस्था के लिये भी प्रतिकूल

सड़क मार्ग पर निर्भरता के कारण डीजल और पेट्रोल की खपत भी बढ़ती जाएगी और यह किसी भी सूरत में अच्छी नहीं है। जीवाश्म ईंधन का अधिक उपयोग हमारे जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों को प्रभावित करेगा और अत्यधिक पेट्रोलियम पदार्थ की खपत देश पर होने वाले विदेशी मुद्रा के खर्च को अथवा अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा। इसके विपरीत रेलगाड़ियां देश में अधिकतर बिजली से चलाई जा रही है। डीजल से चलने वाली यात्री गाड़ियों में भी सड़क के मुकाबले काफी कम खपत होगी।

समिति ने कहा है कि रेलवे का निर्णय दूरदर्शी और जनविरोधी है। इससे उनकी यात्री गाड़ियों के परिवहन व्यय में खास कमी नहीं आ रही है। न ही रेलगाड़ियों के डिब्बों का कोई अतिरिक्त उपयोग किया जा रहा है। उदाहरण के लिए जगन्नाथ पुरी से ऋषिकेश के बीच चलने वाली उत्कल एक्सप्रेस के स्टॉपेज बंद कर दिए गए हैं परंतु यात्रा समय लगभग उतना ही है। इसी तरह इंदौर बिलासपुर ट्रेन के स्टॉपेज बंद करने के बावजूद ट्रेन के डिब्बे लगभग 20 घंटे बिलासपुर यार्ड में ही खड़े रहते हैं। पहले यह ट्रेन जो समय लेती थी उसमें लगभग 2 घंटे की कमी ही दर्ज की जा रही है। कुल मिलाकर रेलवे का निर्णय वापस लेने योग्य है।

संघर्ष समिति ने मंत्री से अनुरोध किया है कि रेलवे द्वारा लिए गए इस फैसले को अविलंब वापस लिया जाए और कोरोना संकट के पूर्व की तरह सभी एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों का स्टॉपेज यथावत बहाल किया जाए।

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