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‘तीसरी ताकत की हमने नींव रख दी, कांग्रेस पर वादा पूरा करने के लिए दबाव बनाएंगे’

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के लोरमी से निर्वाचित विधायक धर्मजीत सिंह।

अचानकमार अभयारण्य के आदिवासियों को नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता- विधायक धर्मजीत सिंह

लोरमी विधानसभा से भाजपा को रिकॉर्ड 25 हजार मतों से हराकर चौथी बार विधायक बने धर्मजीत सिंह ठाकुर ने कहा है कि हमने छत्तीसगढ़ में तीसरी ताकत की नींव रख दी है और अब विधानसभा में हम सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। कांग्रेस सरकार पर दबाव डालेंगे कि वह जनता से किए गए अपने वायदों को पूरा करे।

धर्मजीत सिंह ठाकुर लोरमी सीट से 6 बार चुनाव लड़ चुके हैं और यह उनकी चौथी जीत है। लोरमी विधानसभा से उन्होंने अपनी ही जीत का रिकॉर्ड तोड़ा है। इससे पहले वे यहां से 19 हजार से अधिक मतों से जीत चुके हैं। 2013 में उन्हें भाजपा के तोखन साहू ने परास्त कर दिया था। कांग्रेस शासनकाल के दौरान विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे धर्मजीत सिंह ने अजीत जोगी के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी और पहली बार छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के चिन्ह पर वे चुनाव लड़े।

यह पूरी तरह कृषि आधारित इलाका है।  यहां वे चाहेंगे कि शक्कर कारखाना खुल जाए और एग्रीकल्चर कॉलेज की स्थापना हो ताकि नई तकनीक से खेती को समृद्ध किया जा सके।

‘bilaspurlive.com’ ने आज उनसे सवाल किया कि क्या वजह थी कि उनके दल का प्रदर्शन विधानसभा चुनाव में अनुमान के अनुरूप नहीं रहा। सरकार के गठन में भी उनकी कोई भूमिका नहीं रह पाई। ठाकुर ने कहा कि जैसा हमारे बारे में अटकलें लगाई गईं, उसके हिसाब से तो जीरो सीट मिलनी चाहिए थी, एक भी नहीं। लेकिन हम सात सीटों पर जीतकर आए। इससे पहले कभी कोई तीसरी पार्टी विधानसभा में इतनी बड़ी संख्या में नहीं पहुंची। दरअसल कांग्रेस को इस बार जनता ने जिताया नहीं है बल्कि भाजपा को हराया है। वे भाजपा सरकार से छुटकारा पाना चाहते थे। हम कांग्रेस की जीत का स्वागत करते हैं लेकिन हम विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। हम विधानसभा में सत्ता पक्ष की खामियों को उजागर करेंगे और जनता से किये गए चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उस पर दबाव डालेंगे। लोकसभा चुनाव में भी हमारी भूमिका मजबूत रहेगी, इस पर पार्टी के लोग बैठकर विचार करेंगे। छत्तीसगढ़ में हमने तीसरी पार्टी की नींव डाल दी है, जो आगे भी दिखाई देगी।

भाजपा पर 25 हजार मतों के बड़े अंतर से हुई जीत पर धर्मजीत सिंह ने कहा कि पिछले 25-30 वर्षों से लोरमी की जनता से लगातार मेरा आत्मीय व पारिवारिक सम्पर्क रहा है। यह सम्पर्क न मैंने कभी कम किया न उन्होंने। मैंने इस जीत को लोरमी की जनता के चरणों में ही समर्पित किया है।

पिछले पांच वर्षों में भाजपा विधायक का कार्यकाल कैसा था और अब वे वहां क्या प्राथमिकताएं तय कर रहे हैं, पूछने पर विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा कि बीते सालों में कमीशनखोरी खूब हुई। प्राथमिकता से विकास के काम नहीं हुए। विकास में असंतुलन भी रहा। कुछ खास गांवों में विकास हुए, बाकी को छोड़ दिया गया। लोगों में स्वाभाविक रूप से भाजपा के प्रति गुस्सा था। अब सबसे पहले मैं हर गांव जाऊंगा। उनकी जरूरत पूछूंगा। कोशिश करूंगा बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल में जो भी काम अधूरे हों जल्दी पूरे हो। मैंने इन समस्याओं को हल करने का वादा किया है। मुंगेली जिला के अंतर्गत आने वाला लोरमी खनिज संपदा से वंचित है। यह पूरी तरह कृषि आधारित इलाका है।  यहां वे चाहेंगे कि शक्कर कारखाना खुल जाए और एग्रीकल्चर कॉलेज की स्थापना हो ताकि नई तकनीक से खेती को समृद्ध किया जा सके।

विधायक धर्मजीत सिंह के क्षेत्र में अचानकमार अभयारण्य भी है। इस बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में उऩ्होंने कहा कि अचानकमार में लोगों की आवाजाही पर रोक लगाना शुद्ध रूप से प्रशासनिक आतंकवाद का जीता जागता नमूना है। वहां रहने वाले हमारे हजारों लोग हैं। वहां 12 हजार 300 वोट थे। उनमें 9 हजार दो सौ लोगों ने मताधिकार प्रयोग। इतनी बड़ी आबादी को एकाएक तमाम सुविधाओं से कैसे वंचित रख सकते हैं।

अभयारण्य के निवासियों के पास रोजी-रोजगार का कोई अवसर नहीं है। दवा, राशन की व्यवस्था भी नहीं है। सड़क नहीं बन रही है। मकान निर्माण की अनुमति नहीं दी जा रही है। पीने के पानी की समस्या है। सोलर लाइट बिगड़ी है कोई सुधार नहीं हो रहा है। 24 घंटे विस्थापित कर दिये जाने का भय इनको सताता रहता है। विस्थापित करने से हम मना नहीं करते पर ये पहले तय कर लें कि नई जगह पर क्या सुविधा देंगे। उनके लिए गेंहू चावल उगाने लायक उपजाऊ जमीन देंगे या नहीं। आंगनबाड़ी, स्कूल बनाएंगे या नहीं। पेयजल की व्यवस्था करेंगे या नहीं करेंगे। मकान बनाकर देंगे या नहीं। यहां के अधिकारी अचानकमार को लेकर हवा-हवाई बात कर रहे हैं। प्रचार पाने के लिए अचानकमार अभयारण्य के नाम का दुरुपयोग कर रहे हैं। मैं इन सभी बातों को छत्तीसगढ़ की विधानसभा में मजबूती से उठाऊंगा।

कुछ साल पहले जिन 6 गांवों को विस्थापित किया गया था उनकी दशा की बात ही नहीं करनी चाहिए। दुर्दशा है छह गांवों की। न तो एक बोरा धान पैदा कर पाते हैं, न हैंडपम्प चल रहे हैं। जो मकान बनाकर दिये गए हैं वे घटिया हैं। कोई भी उनकी हालत जाकर देख सकता है। जो विस्थापित हैं वे और जो नहीं हैं वे सभी आदिवासी बैगा हैं और नारकीय जीवन जी रहे हैं। ऐसा जीवन जीने के लिए कोई उन्हें मजबूर नहीं कर सकता।

 

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