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वरदान बना रेलवे का पेसमेकर कैंप, 17वें शिविर में 133 मरीजों की जांच, लाखों की बचत  

एसईसीआर केन्द्रीय चिकित्सालय में ह्रदयरोगियों की जांच।

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे मंडल, एसईसीआर ने  शुक्रवार को केन्द्रीय रेलवे चिकित्सालय में निःशुल्क पेस मेकर जांच शिविर रखा। रेलवे का यह 17वां शिविर था। इसका लाभ रेलवे कर्मचारी ही नहीं अन्य नागरिक भी उठाते हैं। इस बार शिविर में आए 133 मरीजों की जांच की गई जिनमें से 45 रेलवे  से बाहर के थे।  

 

हदय रोगियों के लिए पेस मेकर लगाने के बाद इसका नियमित जांच जरुरी है, जो छः माह अथवा एक वर्ष में एक बार होना ही चाहिए। बिलासपुर एसईसीआर इस तरह का जांच शिविर पिछले आठ सालों से लगातार लगा रहा है, जो देश में पहली बार है। रेलवे के ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सीके दास का कहना है कि शिविर आवश्यक तो है साथ ही कठिन भी है। इसमें पेसमेकर कंपनियों के सहयोग की जरूरत पड़ती है। इस बार सेंटजुड मेडिकल, मेडट्रानिक, बोस्टन  और बायोट्रानिक पेस मेकर कम्पनियों ने इस शिविर में अपने दक्ष सर्विस इ्रजिनियरों को पेस मेकर प्रोग्रामर के साथ भेजा।

डॉ. दास ने कंपनियों के सहयोग की सराहना की। इस शिविर की वजह से दिल से जुडे रोगियों को अब चेन्नई या दूसरे बडे शहर जाकर लाखों खर्च करने से मुक्ति मिली है। उन्होंने कहा कि पेस मेकर कंपनियां अलग-अलग जगहों पर जाकर मरीजों को अपनी नियमित सेवाएं नहीं दे सकते, इस तरह के शिविर से अनेक मरीज अकाल मृत्यु से बचते हैं। शिविर में 88 रेलवे के तथा 45 गैर रेलवे के हृदयरोगियों का पेस मेकर का जाँच की गई। शिविर में सबसे छोटी उम्र के आठ वर्षीय मरीज मास्टर आयुष जो रेलवे से बाहर के थे और सबसे वरिष्ठ मरीज 91 वर्ष के  एच. एन. शर्मा आए थे। इसमें बिलासपुर के अलावा खरसिया, मुंगेली, रायपुर, भिलाई, नागपुर, नैनपुर, शहडोल, उमरिया, पेण्ड्रा के मरीज थे। इस शिविर में चार मरीज ऐसे भी थे जिनकी पेसमेकर की बैटरी लाइफ समाप्त हो चुकी थी। पांच ऐसे मरीज थे जिनके हृदय की धड़कन बहुत तेज थी। इस मरीजों को उपयुक्त सलाह दी गई और उनके पेसमेकर की रि-प्रोग्रामिंग की गई।अपोलो हॉस्पिटल के ह्रदयरोग विशेषज्ञ डॉ.राजीव लोचन भांजा ने पेसमेकर के साथ बरती जाने वाली सावधानियों तथा व्यायाम की जानकारी दी।

रेलवे हास्पिटल के पेस मेकर कैंप में आए ह्रदयरोगियों के साथ चिकित्सक।

कैम्प में केन्द्रीय चिकित्सालय के निदेशक डॉ. जी. के. चक्रवर्ती, डॉ. एम.एस. त्रिपाठी, डॉ. के. लक्ष्मीकांत, डॉ. डी. देवांगन का सक्रिय योगदान रहा।

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