Home अपडेट मरवाही में जोगी की खाली सीट को संभालने का मौका किसे मिलेगा?

मरवाही में जोगी की खाली सीट को संभालने का मौका किसे मिलेगा?

मरवाही मैप/Marvahi map

अमित ने सबसे ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी, चुनाव लड़ने को लेकर अभी मौन

बिलासपुर। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद मरवाही विधानसभा सीट रिक्त हो गई है और अब यहां उप-चुनाव होगा। हाईपावर कमेटी द्वारा अजीत जोगी का आदिवासी जाति प्रमाण-पत्र निरस्त होने के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पूर्व विधायक अमित जोगी इस सीट को फिर से संभालने की पात्रता रखते हैं? जोगी की जाति को लेकर लड़ने वालों ने अपने कानूनी औजारों को फिर से मांजना शुरू कर दिया है वहीं अमित जोगी का कहना है कि वे इस समय राजनीतिक चर्चा नहीं करना चाहते उनका पूरा ध्यान जोगी जी की आत्मकथा को प्रकाशित करने पर है।

मरवाही सीट पर जोगी परिवार की एकतरफा पकड़ रही है। प्रदेश में कोई भी हवा चली हो इस सीट पर उनके दबदबे को कोई छीन नहीं सका। अजीत जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी ने रिकॉर्ड मतों से हर बार यहां से जीत हासिल की। उनकी जाति पर उठे सवाल और जांच समितियों के आदेश के बावजूद मरवाही के मतदाताओं ने उन्हें सदैव भरपूर समर्थन दिया। मरवाही में पहले मिश्रित नतीजे आते रहे। 1977 और 1980 के चुनाव में डॉ. भंवर सिंह पोर्ते ने कांग्रेस से चुनाव जीता। 1985 में दीनदयाल पोर्ते ने कांग्रेस से जीत हासिल की। 1990 में भंवर सिंह पोर्ते ने भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते। 1993 में कांग्रेस को फिर यह सीट मिली, तब पहलवान सिंह विधायक निर्वाचित हुए। 1998 में भाजपा से रामदयाल उइके ने जीत हासिल की, जिन्होंने जोगी के लिये इस्तीफा दे दिया।

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पूरी तस्वीर ही बदल गई। 2001 से लेकर अब तक मरवाही से अजीत जोगी, अमित जोगी चुनाव जीतते आये हैं। 2003, 2008 और 2018 के चुनाव में अजीत जोगी ने जीत का परचम भारी मतों के अंतर से लहराया। 2013 में उन्होंने अपने पुत्र अमित जोगी को लड़ाया। अमित जोगी के पास यह सीट 46 हजार 250 वोटों से जीतने का रिकॉर्ड है। पर, अब वे यहां से अगला चुनाव लड़ पाते हैं या नहीं इस पर संशय बना हुआ है।

जानकारों का कहना है कि चूंकि अजीत जोगी का जाति प्रमाण-पत्र हाईपावर कमेटी ने रद्द कर दिया है इसलिये अमित जोगी का भी जाति प्रमाण-पत्र निरस्त हो जाता है। जोगी की जाति को लेकर याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकदमा लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव इस बात की पुष्टि करते हैं। वहीं अदालतों व जांच समितियों के सामने 19 साल लड़ाई लड़ने वाले इंजी. संतकुमार नेताम कहते हैं कि हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट पर कोर्ट ने आगे कोई एक्शन नहीं लेने की बात कही है पर प्रमाण-पत्र को निरस्त तो कर ही दिया है इसलिये अमित जोगी चुनाव लड़ेंगे तो चुनौती दी जायेगी। वे प्रशासन से मांग करेंगे कि अमित जोगी का अनुसूचित जन-जाति प्रमाण पत्र जब्त करें ताकि वे चुनाव लड़ने की स्थिति में इसका इस्तेमाल न करें।

अमित जोगी से इस बारे में चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में समय है। वहां ‘अजीत जोगी’ (के नाम पर) ही चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा वे अभी किसी तरह की राजनीतिक चर्चा नहीं करेंगे। पार्टी की कमान विधायक धर्मजीत सिंह इस समय संभाल रहे हैं। उनका पूरा ध्यान इस समय पिता की आत्मकथा को आकार देने में लगा है। इसमें कई अनछुए पहलू सामने आयेंगे। सितम्बर तक इसके प्रकाशन की संभावना है।

कांग्रेस-भाजपा तस्वीर बदलने की जुगत में

पिछले चुनाव में अजीत जोगी की एकतरफा जीत हुई थी। उन्हें 74,041 वोट मिले, भाजपा की अर्चना पोर्ते को 27,579  और कांग्रेस के गुलाब सिंह राज को 20,040 वोट हासिल हुए। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की रितु पेन्ड्राम को 9,978 वोट मिले। इस तरह कांग्रेस पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रही। प्रदेश में कांग्रेस का जबरदस्त माहौल होने के बावजूद। यह जोगी का ही असर था। माना जा रहा था कि नये चुनाव चिन्ह के कारण जोगी को नुकसान हो सकता है पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।

जोगी के जाने के बाद दूसरे और तीसरे क्रम की पार्टियों की स्थिति क्या होगी इसके कुछ संकेत दिखाई देने लगे हैं। भाजपा की अर्चना पोर्ते ने गांवों में सघन दौरा शुरू कर दिया है। गांवों में सैनेटाइजर व मास्क भी बांट रही हैं। वह स्व. भंवर सिंह पोर्ते की बेटी हैं जिनकी अपने समय में जोगी जैसी ही पकड़ थी। अर्चना पोर्ते के पति शंकर कंवर की भी इलाके में पकड़ है। सांसद अरूण साव, बिलासपुर जिले के संगठन के पदाधिकारियों के साथ क्षेत्र का दौरा कर यहां के पार्टी कार्यकर्ताओं को रिचार्ज कर चुके हैं।

उप-चुनाव में मतदाताओं का झुकाव सत्तारूढ़ दल की तरफ प्रायः दिखाई देता है। प्रदेश में हाल ही में हुए उप-चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई। दूसरी ओर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रूचि लेकर वर्षों से लम्बित अलग जिले की मांग को भी पूरा कर दिया है। भाजपा सरकार ने अपने 15 साल के कार्यकाल में कई नये जिले बनाये पर हर बार गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही को छोड़ दिया। लम्बे अरसे की रुकी मांग पूरी होने का असर अगले चुनाव में दिखाई दे सकता है। इधर जोगी परिवार के सबसे करीबियों में एक ज्ञानेन्द्र उपाध्याय ने उनके दशगात्र के ठीक एक दिन बाद रायपुर जाकर कांग्रेस का दामन पकड़ लिया। उपाध्याय की जमीनी पकड़ धनौली और आसपास के दर्जन भर गांवों में है। जोगी परिवार के बीते सभी चुनावों में वे प्रमुख संचालक हुआ करते थे। मरवाही सीट कोरबा संसदीय सीट का हिस्सा है जहां से कांग्रेस की ज्योत्सना महन्त सांसद हैं। यह पक्ष भी कांग्रेस के लिये वातावरण बनायेगा।

इतना निश्चित है कि कांग्रेस की स्थिति बीते चुनाव के मुकाबले मजबूत रहेगी लेकिन यह आंकड़ा जीत तक पहुंचेगा, या जोगी ने नाम पर अगला नतीजा भी आयेगा, भाजपा को उसकी सक्रियता और स्व. पोर्ते के नाम का लाभ मिलेगा- आने वाले समय में तस्वीर साफ होगी।

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