बिलासपुर। भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे प्राचीन व शुद्ध गायन शैली ध्रुपद पर सागर मोनारकर की तान ने आज शाम संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने करीब दो घंटे तक श्रोताओं को बांधकर रखा। पखावज पर कृष्ण साकुंले ने लोहा मनवाया और उभरते हुए वादक रितिक पॉल ने तानपुरे पर संगत देकर कार्यक्रम में समां बांध दिया।

भारतीय गीत संगीत की रुचि से शहर को जोड़ने के लिए समर्पित संस्था बावरा मन की ओर से सीएमडी कॉलेज स्थित स्पोर्ट्स ऑडिटोरियम में रविवार की शाम कोलकाता से पहुंचे सागर मोनारकर ने ध्रुपद गायन की प्रस्तुति दी। संगीत प्रेमियों से खचाखच भरे हाल में सागर ने सबसे पहले राग पटदीप सुनाया, जिसमें बंदिश दी ए री सखी सावन आयो…। चौ ताल में निबद्ध इस गायन ने सभा का वातावरण संगीतमय कर दिया। सागर मोनारकर की दूसरी प्रस्तुति शूल ताल में थी, जिसमें उन्होंने बंदिश- तुम बिन कौन मेरो, तू जो सहाय गाया। उन्होंने इसके बाद दुर्गा राग भी शूल ताल में प्रस्तुत किया, बोल थे- दुर्गे भवानी माता काली…। उन्होंने शिव की स्तुति में भी गीत प्रस्तुत किया।

प्रारंभ में सागर मोनारकर ने बताया कि ध्रुपद अत्यन्त प्राचीन शैली है। इसकी उत्तपत्ति 12वीं, 13वीं शताब्दी में मानी जाती है। सामवेद से इसका सम्बन्ध रहा है। संस्कृत के श्लोक इस शैली में गाये जाते रहे हैं। जब हारमोनियम तबले नहीं होते थे तब से इसे गाया जाता है। सागर ने बताया कि इसीलिये वे भी आज बिना हारमोनियम व तबले के सिर्फ पखावज पर अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं।

पखावज पर पुणे के कृष्ण साकुंले ने अद्भुत प्रस्तुति दी। उनके वादन से अभिभूत श्रोताओं ने कार्यक्रम के अंतिम चरण में उनसे अलग से पखावज वादन की प्रस्तुति देने का आग्रह किया। साकुंले की प्रस्तुति ने लोगों को गद्गगद् कर दिया।

ध्रुपद गायन में सागर मोरानकर का नाम देश – विदेश में अग्रणी गायकों में से एक है।  महाराष्ट्र के चालीस गांव मे जन्मे सागर की प्रारंभिक शिक्षा होम फॉर द ब्लाइंड,  पुणे से पूरी हुई और उन्होंने संगीत को केरियर के रूप मे अपनाने का निर्णय लिया।  सागर ने उस्ताद जिया फ़रिउद्दीन डागर के शागिर्द पण्डित उदय भवालकर से गुरु – शिष्य परंपरा के तहत ध्रुपद गायन की शिक्षा – दीक्षा प्राप्त की।  वर्तमान में सागर कोलकाता के आईटीसी की संगीत रिसर्च अकादमी में रेसिडेंट म्युजिशियन स्कालर हैं। आपको रोटरी इंटरनेशनल द्वारा प्रोमिसिंग हिंदुस्तानी म्युजिशियन अवार्ड से नवाज़ा जा चुका है।

युवा पखावज वादक कृष्ण सालुंके मुख्यतः महाराष्ट्र के बीड जिले के रहवासी हैं।  आपने पखावज पर प्राथमिक शिक्षा गुरु भरत महाराज एवं गुरु विष्णुपंत से प्राप्त की।  बाद मे तालयोगी गुरु पंडित सुरेश जी तलवलकर के शिष्यत्व मे उच्च शिक्षा हासिल की।  आप पखावज मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त वादक हैं। तानपुरा पर संगत स्थानीय उभरते कलाकार रितिक पॉल ने दी।

कार्यक्रम के प्रारंभ में बावरा मन के संयोजक पी. रामाराव व अन्य ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन राजेश दुआ ने तथा आभार प्रदर्शन बावरा मन के संरक्षक संजय सिंह ने किया।

 

 

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