सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरटीआई लगाई, कांग्रेसियों ने अलग शिकायत की, प्रदेश अध्यक्ष मरकाम ने मंत्री से मांगी जानकारी

बिलासपुर। प्रदेश की जिला स्तरीय बाल संरक्षण समितियों और किशोर न्याय बोर्ड में अनुभवी लोगों की जगह ऐसे लोगों की नियुक्ति की गई है जिनका सामाजिक कार्यों में योगदान नगण्य बताया जा रहा है। वर्षों से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं में इसे लेकर रोष है। उनकी शिकायत है कि पुरानी समिति के ही लोगों की अदला-बदली कर दी गई है। दूसरी ओर कांग्रेस से जुड़े लोग भी इस नियुक्ति से खासे नाराज हैं क्योंकि पहले की समिति में भाजपा नेताओं की सिफारिश पर जिनकी नियुक्ति कर दी गई थी, उन्हें ही दुबारा मौका दिया गया है। नियुक्ति के बाद ज्वाइनिंग में भी इतनी हड़बड़ी की जा रही है कि पुलिस वेरिफिकेशन की औपचारिकता भी नहीं निभाई जा रही है।

महिला बाल विकास विभाग के अंतर्गत हर जिले में किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) और बाल संरक्षण समिति (सीडब्ल्यूसी) का गठन किया जाता है। जेजेबी उन किशोरों के मामले सुनता है जो अपराध में लिप्त हैं। वहीं बाल संरक्षण समिति ऐसे बच्चों की परवरिश और पुनर्वास के लिये काम करती है जिनके देखभाल करने वाला परिवार में कोई नहीं है  या किसी कारण से परिवार के साथ नहीं रह पा रहे हैं। इन समितियों में नियुक्ति के लिये महिला बाल विकास विभाग द्वारा आवेदन मांगे जाते हैं। इसमें 10 साल के सामाजिक कार्य का अनुभव मांगा जाता है। न्यूनतम आयु 35 वर्ष रखी गई है जबकि अधिकतम आयु सीमा कुछ भी नहीं रखी गई है। इनके चयन के लिये हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज, महिला बाल विकास विभाग के संचालक सहित कुछ अन्य सदस्य इनका चुनाव करते हैं। समितियों का कार्यकाल 3 साल का होता है और मानदेय के रूप में सदस्यों को 40 से 50 हजार रुपये हर महीने मिल जाते हैं।

बीते 3 और 6 नवंबर को इन समितियों की सूची जारी की गई तो लम्बे समय तक सक्रिय रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को हैरानी हुई और कांग्रेस से जुड़े लोगों को भी निराशा हुई। सूची में कई नाम ऐसे हैं जिन्हें कभी किसी सामाजिक कार्य में सक्रिय नहीं पाया गया। कुछ लोग तो घरेलू महिलायें हैं लेकिन कुछ पहुंच वालों के परिवार से हैं। 10 साल का अनिवार्य सर्टिफिकेट उन्होंने कैसे हासिल किया और उसे समिति ने मंजूरी कैसे दी यह स्पष्ट नहीं है। इन नियुक्तियों से पहले पुलिस वेरिफिकेशन भी एक जरूरी प्रक्रिया है लेकिन बताया जाता है कि चयन समिति ने इसकी जरूरत भी महसूस नहीं की। कई नाम ऐसे हैं जो सीडब्ल्यूसी में पहले थे उन्हें जेजेबी में ले लिया गया है। इसी तरह जेजेबी के सदस्य सीडब्ल्यूसी में ले लिये गये हैं। नियुक्तियों में अनियमितता के आरोप सन् 2019 में भी लगे थे तब पूरी सूची रद्द कर दी गई थी। इस बार फिर नियुक्तियां विवादों में घिर गई है।

यह भी सही है कि इसमें अधिकारियों और नेताओं तक पहुंच काम आती है। कांग्रेस से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता इस बात को लेकर हैरान है कि दोनों ही समितियों में कई नाम भाजपा के हैं जबकि कांग्रेस से जुड़े लोगों को जगह ही नहीं मिली। बताया जाता है कि एक सदस्य का तो कभी सामाजिक गतिविधियों से कभी कोई नाता नहीं रहा और वह भाजपा महिला मोर्चा की पदाधिकारी हैं। प्रदेश के महासमुंद और दुर्ग जिलों में भी इसी तरह की नियुक्ति होने की जानकारी आई है। कई नियुक्तियां उनकी हुई जो भाजपा के सक्रिय सदस्य हैं।

विगत 40 वर्षों से सामाजिक कार्यों के कारण एक मुकाम हासिल कर चुकीं अम्बिकापुर की वंदना दत्ता ने इन नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इंटरव्यू के स्कोर शीट की जानकारी मांगी है। जो नियुक्तियां हुई हैं उनके बारे में उन्हें कुछ नहीं कहना है लेकिन उनकी खुद के नाम पर विचार क्यों नहीं किया गया स्कोर शीट से मालूम करना चाहती हैं। इसी तरह वसुधा महिला मंच बिलासपुर की सत्यभामा अवस्थी वर्षों तक परिवार न्यायालय और अनेक सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहीं है। हालांकि उन्होंने इस बार आवेदन नहीं किया था। अवस्थी ने सवाल उठाया कि जब चयन समिति ने पहले ही तय कर रखा है कि किसे मौका देना है तो आवेदन और इंटरव्यू की फिजूल कवायद क्यों की जा जाती है?

मालूम हुआ है कि विभिन्न जिलों के कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम से नियुक्तियों को लेकर शिकायत की है। मरकाम ने महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेंडिया से इसके बारे में पूरी जानकारी मांगी है।

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