बिलासपुर। एक मार्च से बिलासपुर से शुरू हो रही हवाई सेवा के लिये पीठ थपथपाने की कांग्रेस संगठन और विधायक समर्थकों के बीच होड़ मच गई है, जबकि भाजपा ने इसे अपनी पार्टी की उपलब्धि बताने की जिम्मेदारी सांसद पर छोड़ दी है। इन सबसे परे वास्तविकता यह है कि नागरिकों के आंदोलन और हाईकोर्ट में दायर की गई जनहित याचिकाओं की इस मांग के पूरी होने में बड़ी भूमिका है।

अब से 27 साल पहले बिलासपुर के चकरभाठा स्थित हवाईअड्डे से वायुदूत सेवा शुरू हुई जो एक पखवाड़े बाद बंद भी हो गई थी। उसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य बना, तब से लगातार बिलासपुर के विकास को गति देने के लिये हवाई सेवा शुरू करने की मांग की जाती रही। छत्तीसगढ में भाजपा सरकार ने न तो यूपीए सरकार के दौरान न ही एनडीए के पहले कार्यकाल के दौरान कोई पुरजोर कोशिश की। तत्कालीन मंत्री अमर अग्रवाल की प्राथमिकता में भी विफल अरपा व सीवरेज परियोजना ही थी। कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने पहले प्रवास में ही बिलासपुर से हवाई सेवा शुरू करने को प्राथमिकता देने की घोषणा की। चुनाव जीतने के बाद भाजपा सांसद अरुण साव ने भी इसे अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताई।

इन सबके पहले ही सन् 2017 में हाईकोर्ट में हवाई सेवा शुरू करने की मांग पर याचिका दायर की जा चुकी थी, जिसे 2सी लाइसेंस मिलने के बाद कोर्ट ने निराकृत कर दिया। कोर्ट का मानना यह था कि लाइसेंस तो मिल गया अब हवाई सेवा शुरू कराने के लिये सम्बन्धित पक्षों को प्रयास करना चाहिये। लेकिन हवाई सेवा संघर्ष समिति ने 26 अक्टूबर 2019 से अखंड धरना आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन में अब तक 250 से अधिक संगठन भाग ले चुके हैं। आंदोलन का कारण यह था कि 2सी कैटेगरी हवाईअड्डे में 40 सीटर विमान ही उतर सकते थे, जिनकी संख्या और रूट सीमित हैं। ये विमान सफलता से संचालित भी नहीं हो पा रही हैं।  इसके बाद जवनरी 2020 में  हाईकोर्ट प्रैक्टिसनर बार एसोसियेशन की ओर से सुदीप श्रीवास्तव और संदीप दुबे तथा पत्रकार कमल दुबे की ओर से हाईकोर्ट में आवेदन देकर याचिका पुनर्जीवित कराई गई और कम से कम 3सी कैटेगरी विमान सेवा शुरू करने की मांग की गई। कोर्ट ने सुदीप श्रीवास्तव को तकनीकी विवरण के साथ पुनः आवेदन दाखिल करने कहा, जिस पर चल रही सुनवाई के बीच हवाई सेवा चालू की जा रही है।

संघर्ष समिति में ज्यादातर लोग कांग्रेस के थे लेकिन भाजपा नेताओं ने भी इसमें भागीदारी निभाई। हालांकि सांसद अरुण साव व विधायक शैलेष पांडेय ने इस आंदोलन से ज्यादा नजदीकी नहीं बढ़ाई। संभवतः वे अखंड धरना आंदोलन के प्रतिनिधि सुदीप श्रीवास्तव को कांग्रेस नेता अटल श्रीवास्तव का करीबी मानकर चल रहे थे। लेकिन हाईकोर्ट में हुई लगातार सुनवाई और राघवेन्द्र राव सभाभवन परिसर में जारी आंदोलन का ही असर था कि न सिर्फ जनप्रतिनिधियों बल्कि स्थानीय प्रशासन और केन्द्र में उड्डयन मंत्रालय पर इस मांग को पूरा करने का दबाव बना।

एक ओर मुख्यमंत्री ने थ्री सी कैटेगरी हवाईअड्डे के अधूरे कामों के लिये जरूरत के मुताबिक 27 करोड़ रुपये आबंटित कराये वहीं सांसद दिल्ली में लगातार केन्द्रीय उड्डयन मंत्री से मुलाकात कर इस मांग को उठाते रहे। स्थानीय विधायक शैलेष पांडेय ने भी पत्राचार किये और मंत्री पुरी से मुलाकात की। यह सब सक्रियता हाईकोर्ट में जारी सुनवाई और अखंड धरने के चलते दिखी।

हवाई सेवा आंदोलन की अगुवाई करने वाले सुदीप श्रीवास्तव एक तरफ कोर्ट में तथ्यों के साथ जिरह करते रहे तो दूसरी तरफ अखंड धरने के लिये संगठनों और युवाओं को प्रेरित करते रहे। इसका नतीजा यह निकला कि एक मार्च से हवाई सेवा शुरू होने जा रही है।

अब जब उड़ानें शुरू होने में कोई देरी नहीं रह गई है, ट्रायल लैंडिंग, टेकऑफ हो चुका है, कांग्रेस और भाजपा में इसका श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। भाजपा में कम से कम यह दिखाई तो दे रहा है कि सांसद अरुण साव का कोई विरोध नहीं है। साव स्वयं इसका श्रेय लेने की जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी का आभार व्यक्त कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस में श्रेय लेने के लिये स्थानीय स्तर पर होड़ सी मची है। कांग्रेस में संगठन से जुड़े लोगों ने शहर के कुछ स्थानों पर पोस्टर लगाकर प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव, महापौर रामशरण यादव और उनके साथ के कार्यकर्ताओं का आभार माना है। पर इनमें से स्थानीय विधायक की तस्वीर गायब है। पता चला है कि इसके जवाब में अब विधायक शैलेष पांडे के समर्थक भी पोस्टर तैयार करा रहे हैं जिसमें सिर्फ वे और उनके समर्थकों की तस्वीरें होंगीं। एक बात कांग्रेस के दोनों धड़ों में समान है कि उन्होंने हवाई सेवा की उपलब्धि के लिये मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आभार माना है।

इन सबके बीच शहर के लोगों का मानना है कि हवाई सेवा शीघ्र शुरू करने की लड़ाई शुरू करने वाले नागरिकों को ही इसका श्रेय मिलना चाहिये। उन्होंने ही जन-प्रतिनिधियों और प्रशासन को विवश किया कि इस मांग को पूरा करने में और देरी नहीं की जाये।

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