सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का जज रहने के दौरान वर्षा डोंगरे का केस उनके करियर का सबसे बेहतरीन फैसला और हाईकोर्ट का टर्निंग प्वाइंट था। इस मामले ने बता दिया कि पावर ऑफ हाईकोर्ट क्या होता है। कोर्ट को किसी बनी-बनाई परिपाटी पर नहीं चलना चाहिए बल्कि लीक से हटकर भी काम करना चाहिए।

जस्टिस गुप्ता ने यह बात छत्तीसगढ़ स्टेट बार कौंसिल के नए भवन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर शनिवार को हाईकोर्ट आडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और चीफ जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी भी उपस्थित थे।

वर्षा डोंगरे ने पीएससी 2013 के मूल्यांकन में हुई गड़बड़ी को लेकर याचिका दायर की थी और तत्कालीन चीफ-जस्टिस गुप्ता की अदालत ने उन्हें अपने मामले की खुद पैरवी की अनुमति दी थी। डोंगरे ने अपनी पूरी दलील हिन्दी में रखी थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में चयन सूची को फिर से तैयार कर नई सूची के अनुसार पात्र लोगों को नियुक्ति देने का निर्देश दिया था। अभी इस कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट से स्थगन मिला हुआ है।  जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उनके सामने यह प्रकरण आने पर हैरानी हुई कि पीएससी की सूची में गड़बड़ी की बात सरकार भी मान रही है, जांच एजेंसियों का भी यही निष्कर्ष रहा है और अदालत में याचिका भी इसी बात को लेकर दायर की गई है, फिर  प्रकरण में अब तक फैसला क्यों नहीं आ सका?

उन्होंने कहा कि इस मामले दिया गया फैसला बताता है कि ‘पावर ऑफ हाईकोर्ट’ क्या होता है।

जस्टिस गुप्ता ने सभा को संबोधित करते न्यायिक व्यवसाय में पारदर्शिता और पवित्रता पर कई बातें कहीं। उन्होंने कहा लोगों का भरोसा न्यायिक व्यवस्था से उठना नहीं चाहिए। जिस दिन ऐसा होगा लोग कानून अपने हाथ में लेने लगेंगे और तब सिर्फ पुलिस की जरूरत रह जाएगी अदालतों की नहीं।

उन्होंने कहा कि झूठी दलीलों और दस्तावेजों के जरिये मुकदमों की जीत में कोई वाह-वाही नहीं है। तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर किसी मुकदमे की पैरवी अधिवक्ताओं को करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिस तरह कोई जज एक मुकदमा यह कहकर सुनने से इंकार कर सकते हैं कि उनका इस प्रकरण से जुड़े लोगों से पूर्व में सम्बन्ध रहा है। उसी तरह का साहस वकीलों को भी दिखाना चाहिए और कहना चाहिए क पूर्व के व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण वे किसी जज विशेष की कोर्ट में पैरवी नहीं करेंगे।

सभा में वकालत शुरू करने वाले युवाओं के लिए वजीफा देने की मांग कौंसिल की ओर से की गई थी। उन्होंने कहा कि ज्यादा आमदनी वाले अधिवक्ताओं को नए वकीलों की सहायता के लिए कोष बनाना चाहिए ताकि शुरूआती तीन-चार साल वे ठीक तरह से काम कर इस पेशे में अपने पैरों पर खड़ा हो सके। उन्होंने जूनियर वकीलों को सीनियर्स द्वारा प्रोत्साहित करने, उनका मार्गदर्शन करने की अपेक्षा भी की।

उन्होंने कई राज्यों का नाम लेकर अपना अनुभव बताते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में उनका कार्यकाल अविस्मणीय रहा है, जो साथी जजों और अन्य सहयोगियों की वजह से संभव हो सका। छत्तीसगढ़ वालों का मुझ पर हक है और वे जब मुझे यहां बुलाएंगे मैं हमेशा यहां आऊंगा।

उल्लेखनीय है कि बार कौंसिल ने सर्वसम्मति से उनको इस कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया था। जस्टिस गुप्ता ने चीफ जस्टिस रहने के दौरान कौंसिल भवन के निर्माण के लिए हाईकोर्ट परिसर में ही जमीन उपलब्ध कराई। कौंसिल को शासन की ओर से दी गई जमीन हाईकोर्ट से दूर है।

 

 

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