सेंट्रल जोन कुलपति सम्मेलन के समापन समारोह में पहुंचीं राज्यपाल

बिलासपुर । सेन्ट्रल जोन के कुलपतियों के सम्मेलन के समापन समारोह में पहुंची राज्यपाल और कुलाधिपति अऩुसूइया उइके ने कहा कि इस सम्मेलन के निष्कर्षों और प्रस्तावों को छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में लागू किया जायेगा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच उच्च शिक्षा में सकल नामांकन काफी कम है। इसे बढ़ाने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए।

अटलबिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर में दो दिवसीय कुलपति सम्मेलन के समापन अवसर पर उइके ने कहा कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए हर वर्ष होने वाले इस सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के अलावा  मध्यप्रदेश, झारखंड aऔर बिहार के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का शामिल होना एक सराहनीय प्रयास है। इस वर्ष की थीम ‘उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ाने और प्रशासन में सुधार’ महत्वपूर्ण विषय है। आप लोग समाज के सबसे ज्यादा विद्वान लोगों में से हैं। आप सभी पर ऐसी पीढ़ी को बुनने की जिम्मेदारी होती है जो समाज का नेतृत्व करेंगे। बौद्धिक रूप से सबसे प्रखर जागरूक लोगों का चुनाव आप लोग करते हैं। उन्हें शिक्षित करते हैं और वे ही राजनीति, विज्ञान, साहित्य,समाज-सेवा अदि में देश का नेतृत्व करते हैं इसलिये उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए मंथन जरूरी है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि आक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसे विश्वविद्यालयों की तुलना में हमारे यहां विश्वविद्यालयों का इतिहास कहीं पुराना है और समाज तथा राजनीति पर उनकी पकड़ भी इसी तरह गहरी रही है। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए इतने चर्चित रहे कि हुएनसांग जैसे छात्र भी चीन से यहां पढ़ाई करने पहुंचे।  हमें अपनी यूनिवर्सिटी उसी स्तर की बनानी है कि वहां से निकले स्कॉलर चाणक्य की तरह देश की राजनीति को गरिमा प्रदान करें, पाणिनी की तरह भाषा विज्ञान को ऐसा स्वरूप दें जो उनके जाने के बाद भी युगों तक उन्हें याद किया जाता रहे।

उइके ने कहा कि हमारे देश में उच्च शिक्षा का विस्तार हो रहा है पर आवश्यकता है कि वे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप गुणवत्तायुक्त हो। यह प्रयास करें कि सभी वर्गों तक उच्च शिक्षा की पहुंच हो। हम सकल नामांकन अनुपात की तुलना करें तो विकसित देशों की तुलना में भारत काफी पीछे है। इसे किस प्रकार बढ़ाया जाए इस पर विचार किया जाना चाहिए। यह लक्ष्य होना चाहिए कि उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक ले जाया जाएं।

हमारे समक्ष शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। इस मुद्दे को हल करने के लिए सभी विश्वविद्यालयों में यूनिफॉर्म सिस्टम बनाए जाने की आवश्यकता है, जिससे त्वरित नियुक्तियां सुनिश्चित हो सकें। इसके लिए राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से एक केन्द्रीयकृत प्रणाली पर विचार किया जा सकता है।

मेरा मानना है कि प्रत्येक विभागों एवं पाठ्यक्रमों में छात्रों की संख्या के आधार पर रिक्तियों की विभागवार समीक्षा हेतु एक राष्ट्रीय मानदंड निर्धारित किया जाना चाहिए एवं तद्नुसार शिक्षकों के पद सृजित होने चाहिए। प्रयास करें कि पाठ्यक्रम वर्तमान समय के अनुसार हो, उसमें रचनात्मकता हो। मेरा आग्रह है कि प्रत्येक 3-4 वर्षों में पाठ्यक्रम अपडेट किया जाना चाहिए। शोध भी विश्वविद्यालयों का एक प्रमुख कार्य है, परन्तु इसमें ऐसे विषय शामिल किया जाए जो परम्परागत न होकर सामयिक हो, शोध का स्तर भी ऐसा होना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय महत्व का हो तथा इन शोधों की ‘आउटपुट’ की समीक्षा की जानी चाहिए।

आज विश्वविद्यालय को रोजगारोन्मुख होना भी आवश्यक है। इसके लिए विश्वविद्यालय में एक पूर्णकालिक अधिकारी के साथ ‘रोजगार मार्गदर्शन सह केन्द्रीय प्लेसमेंट सेल’ होनी चाहिए जो रोजगार संबंधी समस्त सूचना उपलब्ध कराए। साथ ही प्रत्येक विश्वविद्यालय में ‘उद्यमिता विकास प्रकोष्ठ’ होना चाहिए। विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। विश्वविद्यालयों को सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सजग रहना  चाहिए और प्रत्येक कॉलेज को कुछ गांव को गोद लेना चाहिए और वहां पर वृक्षारोपण, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण जैसे अभियान में सहभागी होना चाहिए। विश्वविद्यालयों में ‘फिट इण्डिया’, ‘खेलो इण्डिया’ जैसे कार्यक्रम को सम्मिलित करना चाहिए, प्लास्टिक बैन अभियान चलाया जाना चाहिए। इसके तहत ‘एनुअल ग्रीन ऑडिट रिपोर्ट’ भी तैयार किया जा सकता है।

 

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