बिलासपुर. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से संबंधित चिकित्सक आगामी 18 जून को नेशनल प्रोटेस्ट डे मनाएंगे। इसके तहत चिकित्सक काली पट्टी, काले झंडे ,काला मास्क, काला फीता, काली शर्ट धारण कर अपना विरोध दर्ज कराएंगे, तो वही पोस्टर और स्लोगन के माध्यम से सेव द सेवियर्स , स्टॉप वायलेंस ऑन प्रोफेशन एंड प्रोफेशनलस का प्रचार किया जाएगा। इस दिन आईएमए भवन में शहर के प्रमुख चिकित्सक इकट्ठा होंगे। सामाजिक, शैक्षिक और अन्य संस्थाओं के साथ बैठक की जाएगी और उन्हें अपनी बात समझाई जाएगी। मेडिकल कॉलेज के छात्रों को भी प्रदर्शन में शामिल करने की
योजना है।

कोरोना संक्रमण काल के दौरान हर तरफ चिकित्सकों की प्रशंसा हो रही थी। लोग उन्हें वॉरियर्स और भगवान का दर्जा दे रहे थे। इसी दौरान स्वामी रामदेव के एक बयान को आधार बनाकर आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आयुर्वेद और स्वामी रामदेव के खिलाफ मोर्चा क्या खोल दिया। रातों रात चिकित्सक भगवान से शैतान बना दिए गए। भारतीय प्राचीन पद्धति आयुर्वेद और हिंदुत्व को निशाने लेने से एक बहुत बड़ा वर्ग आईएमए से नाराज हो गया। जब परते उतारी जाने लगी तो पता चला कि आईएमए के अध्यक्ष ईसाई धर्म का खुलेआम प्रचार करते रहे हैं और उनके निशाने पर स्वामी रामदेव नहीं बल्कि हिंदुत्व और आयुर्वेद है। इसी कारण लोगों का गुस्सा उन पर टूट पड़ा। टीवी पर डिबेट हुए। सोशल मीडिया में चिकित्सकों की कारगुजारी उजागर होने लगी। जिन चिकित्सकों की 2 दिन पहले खूब वाहवाही हो रही थी उनकी छीछालेदर होने से चिकित्सकों में भी आक्रोश देखा गया। अब तक लोग आइएमए को सरकारी संगठन मान रहे थे, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट हुआ कि यह एक स्वशासी संस्था है, जिसका गठन आजादी से पहले किया गया था और इस पर ईसाई समूह का आधिपत्य है, जिससे पूरा मामला बिगड़ता चला गया। स्वामी रामदेव द्वारा इस मामले में माफी मांग लिए जाने के बाद भी जिस तरह से आईएमए अध्यक्ष ने मामले को तूल दिया उसके बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और निशाने पर चिकित्सक आ गए। हालांकि बाद में कई चिकित्सक स्वामी रामदेव के साथ भी खड़े नजर आए। फिलहाल यह मुद्दा शांत होता नजर आ रहा था कि आई एम ए ठीक होते जख्मों को एक बार फिर से कुरेदता नजर आ रहा है और इसे हरा करने की कोशिश में आगामी 18 जून को फिर से विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। आईएमए के चिकित्सकों ने कहा कि कोरोना के अवसर पर चिकित्सकों ने मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाओं का सामना किया है । एक तरफ चिकित्सक कह रहे हैं कि लोगों के समर्थन के कारण ही स्वामी रामदेव ने बयान वापस लिया और आईएमए की जीत हुई लेकिन इस जीत के बावजूद भी ऐसी हठधर्मिता और अब इस प्रदर्शन का क्या औचित्य है यह बताने में वे नाकाम रहे। इधर दावा किया जा रहा है कि कोरोना संकट काल में कार्य करने के दौरान चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों पर कई राज्यों में हमले हुए, जिसमें कई चिकित्सक घायल भी हुए हैं। लेकिन ऐसा तो कोरोना की पहली लहर के दौरान भी हुआ था, लेकिन उस वक्त तो चिकित्सकों ने इस तरह का कोई प्रदर्शन नहीं किया था क्योंकि तब अधिकांश आरोप एक विशेष वर्ग पर लग रहे थे इसलिए आइएमए ने भी तुष्टीकरण की नीति के तहत चुप्पी साध ली थी। जाहिर है मौजूदा प्रदर्शन आयुर्वेद और स्वामी रामदेव के खिलाफ है जिसे स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों पर हुए हमले के साथ जोड़ा जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि देश भर के सारे चिकित्सक आईएमए के ही सदस्य हैं। पिछले दिनों आई एम ए ने आयुर्वेद पर कई सवाल खड़े किए, लेकिन वे स्वयं आयुर्वेद और स्वामी रामदेव द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने में नाकाम रहे। असल मे सारा गुस्सा कोरोनील को लेकर रहा है, दावा किया जा रहा है कि यह कोरोना की दवा नहीं है लेकिन सच तो यह है कि कोरोना की कोई दवा एलोपैथी के पास भी नहीं है। स्वामी रामदेव द्वारा पूछे गए जिन सवालों से आईएमए तिलमिला उठा, वही सवाल बरसों पहले सत्यमेव जयते में आमिर खान भी पूछ चुके हैं, लेकिन तब इस तरह का विरोध नहीं किया गया। वर्तमान में यह लड़ाई एलोपैथी वर्सेस आयुर्वेद की बनाई जा रही है जबकि एक बहुत बड़े वर्ग का मानना है कि यह लड़ाई मेडिकल माफिया, ईसाई धर्म प्रचारक बनाम हिंदुत्व एवं भारतीय संस्कृति से है।

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