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स्मार्ट सिटी परियोजना की सारी शक्तियां अधिकारियों के हाथ में सौंपने को हाईकोर्ट में चुनौती

स्मार्ट सिटी लोगो, बिलासपुर।

बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा क्या सरकारी कम्पनी के गठन को रद्द किया जा सकेगा, अगले सप्ताह फिर सुनवाई

बिलासपुर। रायपुर एवं बिलासपुर की स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनियों द्वारा निर्वाचित नगर निगम के अधिकार व कर्तव्यों का अधिग्रहण करने को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई है। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से सवाल किया है कि क्या एक एक सरकारी कम्पनी के गठन को रद्द किया जा सकता है? प्रकरण पर अगले सप्ताह फिर सुनवाई होगी।

गौरतलब है कि बिलासपुर और रायपुर नगर निगम में 2016 से सरकारी कम्पनी स्मार्ट सिटी लिमिटेड कार्यरत है। कम्पनी ने नगर-निगम क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में सभी प्रकार के प्रशासनिक और आर्थिक अधिकारों को अपने हाथ में ले लिया और विकास कार्यों संबंधित कोई भी फाइल किसी भी निर्वाचित संस्था या व्यक्ति तक नहीं जाती। नगर पालिक निगम में 1956 अधिनियम अनुसार महापौर, मेयर इन कौन्सिल, सामान्य सभा और सभापति को अलग-अलग शक्तियां प्राप्त है परन्तु इन सभी को बाइपास कर स्मार्ट सिटी लिमिटेंड कम्पनियां अपने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के निर्णय अनुसार कार्य कर रही है बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में कोई भी निर्वाचित व्यक्ति नहीं है, वरन् अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गई है। विनय दुबे अधिवक्ता के द्वारा दायर इस जनहित याचिका में बहस करते हुए अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने चीफ जस्टिस पी.वी रामचन्द्र मेनन और जस्टिस पी.पी साहू की खण्डपीठ से कहा कि भारतीय संविधान के अनुसार लोकतंत्र बुनियादी ढांचा है और संविधान के 74वें संशोधन के पश्चात् निर्वाचित नगर निगम एक संवैधानिक संस्था है। इसके लिए छत्तीसगढ़ में 1956 का अधिनियम भी प्रभावशील है। इन सभी प्रावधानों के उल्लंघन करते हुए बिलासपुर और रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनियां कार्य कर रही हैं।

सुनवाई के प्रारंभ में ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या कम्पनी अधिनियम 2013 के तहत् गठित शासकीय कम्पनी को जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है? इस प्राथमिक सवाल पर जवाब देने के लिए याचिकाकर्ता को एक सप्ताह का समय दिया गया है।

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