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नसबंदी कांड में असली दोषियों को बचाया जा रहा, दवा नहीं संक्रमण की वजह से हुई मौतें- पटेल

फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के राष्ट्रीय संयोजक प्रवीण पटेल बिलासपुर प्रेस क्लब में।

बिलासपुर। तखतपुर के बहुचर्चित नसबंदी कांड में सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट को तथ्यों से परे बताते हुए फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के राष्ट्रीय संयोजक प्रवीण पटेल ने मांग की है मामले की फिर से जांच की जाये और दोषियों को कड़ी सजा दिलाई जाये।

बिलासपुर जिले के तखतपुर ब्लॉक के पेन्डारी ग्राम स्थित एक निजी चिकित्सालय नेमीचंद जैन हास्पिटल में 8 नवंबर 2014 को लगाये गए नसबंदी शिविर में जिन महिलाओं का ऑपरेशन किया गया था उनमें से 13 लोगों की मौत हो गई थी। राज्य सरकार ने कल विधानसभा में जानकारी दी कि जहरीले दवाईयों का इस्तेमाल करने के कारण इन महिलाओं की मौत हो गई। इस मामले में सेप्रोसिन 500 दवा बनाने वाली कम्पनी महावीर फॉर्मा के संचालक के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई थी कल औषधि प्रशासन विभाग के दो कर्मचारियों को निलम्बित करने की घोषणा भी विधानसभा में की गई।

फोरम फॉर फास्ट जस्टिस ने इस मामले में आयोग व जांच अधिकारियों के समक्ष कई दस्तावेज प्रस्तुत कर आरोप लगाया था कि महिलाओं की मौत दवाओं के कारण नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए किये गए ऑपरेशन के कारण हुई है।

बिलासपुर प्रेस क्लब में इस फोरम के राष्ट्रीय संयोजक प्रवीण पटेल ने कहा कि नसबन्दी शिविर कोटा विकासखंड में लगाया जाना था लेकिन यह तखतपुर ब्लॉक में लगाया गया। सीलन और जाले से भरे बंद पड़े गंदे अस्पताल में महिलाओं की नसबंदी की गई। पांच घंटे के भीतर एक ही लेप्रोस्पिक मशीन से 83 महिलाओं का ऑपरेशन किया गया, जबकि एक लेप्रोस्कोपी का अधिकतम 10 बार इस्तेमाल किया जा सकता है। एक ऑपरेशन के बाद उसे साफ कर कम से कम आधे घंटे बाद इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

पटेल ने कहा कि कोलकाता की भारत सरकार की केन्द्रीय प्रयोगशाला में दवाओं का सैम्पल भेजते हुए अपने पत्र में पूछा था कि क्या सिप्रोसिन 500 में चूहा मारने की दवा जिंक फास्फाइड के अंश पाये गये हैं। लैब ने पाया कि जिन दवाओं की जब्ती बनाने की बात कही गई और जिन दवाओं को लैब में जांच के लिए भेजा गया, उनके बैच नम्बर अलग-अलग थे। केवल दिल्ली की एक निजी प्रयोगशाला ने आई ब्रूफेन और सिप्रोसिन 500 में चूहा मारने की दवा के अंश पाये गये जबकि केन्द्र सरकार की हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला ने भी इसकी कोई पुष्टि नहीं की थी। पटेल ने कहा कि यदि चूहा मारने की जहरीले अंश दवाओं में थे तो इसका असर 6 घंटे बाद ही दिखाई देना चाहिए जबकि ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा 13 महिलाओं की मौत के बावजूद सिर्फ तीन महिलाओं की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जांच अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत की गई। जांच आयोग और सरकार की एजेंसियों ने इन सब बिन्दुओं को नजरअंदाज किया गया है। जिन तीन महिलाओं की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई है उसमें भी महिलाओं की मौत का कारण संक्रमण होना पाया गया है। पटेल का यह भी आरोप है कि जांच आयोग ने कहीं न कहीं सरकार को बचाने का प्रयास किया है। इस मामले में तत्कालीन जिला मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी सूर्यप्रकाश सक्सेना, तखतपुर के मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रमोद तिवारी व कोटा के मेडिकल ऑफिसर की भूमिका को जांच में नहीं लिया गया, जबकि इस घटना के लिए वे जिम्मेदार थे। इन्होंने ही नसबंदी की जगह बदली और बंद पड़े अस्पताल तथा वहां मौजूद उपकरणों की साफ-सफाई पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन नहीं किया। पटेल ने मांग की कि नसबंदी कांड की फिर से जांच की जाये और सही दोषियों का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाये।

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