बिलासपुर। हाईकोर्ट ने स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी रायपुर और बिलासपुर के अधिकारियों से शपथ-पत्र के साथ बताने कहा है कि वे इस पर हो रहे खर्च और निर्माण कार्यों का किस तरह से ऑडिट करा रहे हैं।

रायपुर व बिलासपुर की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में नगर निकायों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भूमिका नहीं होने और अधिकारियों द्वारा अपनी मर्जी से कार्य कराने के विरुद्ध अधिवक्ता विनय दुबे की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। याचिका में कहा गया है कि स्मार्ट सिटी कंपनी वे ही कार्य करा रही है जो जनप्रतिनिधियों और स्थानीय निकायों के अधिकार क्षेत्र में है। जनप्रतिनिधि ही अच्छी तरह बता सकते हैं कि कौन सा कार्य शहर के लिए किया जाना जरूरी है, पर इसमें उनसे राय नहीं ली जा रही है। पूर्व में हाईकोर्ट ने स्मार्ट सिटी के उन कार्यों पर रोक लगा दी थी जिन पर कार्यादेश जारी नहीं हुआ था। बाद में स्मार्ट सिटी के अधिकारियों की ओर से  हवाला दिया गया कि उक्त राशि केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की गई है, स्वीकृत राशि खर्च नहीं होने पर वह लेप्स हो जाएगी। इस आधार पर जनहित में स्मार्ट सिटी के रुके हुए करीब 700 करोड़ रुपये के कार्य करने की मंजूरी दे दी थी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि स्मार्ट सिटी में होने वाले खर्च की महालेखाकार से ऑडिट नहीं कराई जा रही है। कंपनी के अधिकारियों की ओर से हाईकोर्ट में बताया गया कि ऑडिट कराई जा रही है। तब याचिकाकर्ता ने रायपुर व बिलासपुर में कराये जा रहे कार्यों के परफारमेंस ऑडिट की मांग की थी। कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि कंपनी की ओर से केवल बैंक खातों की आडिट की जानकारी वह भी आधी-अधूरी दी गई है। निर्माण कार्यों की ऑडिट किस तरह कराई जा रही है, इसकी जानकारी नहीं दी जा रही है।

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