बिलासपुर। नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ आज जागरूक नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संयुक्त संगठन ‘हम भारत के लोग’ ने युवाओं की बढ़-चढ़कर हुई भागीदारी में रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। इसके पहले एक सेमिनार रखा गया जिसमें बताया गया कि किस तरह से देश को असल मुद्दों से भटकाया जा रहा है।

रैली मिशन अस्पताल रोड से होकर, राघवेंद्र राव सभा भवन, देवकीनंदन चौक पहुंची। यहां से बृहस्पति बाज़ार फिर जेल रोड होकर अम्बेडकर चौक पहुंची। इस दौरान रास्ते भर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाजी की गई और लोगों के बीच पर्चे बांटे गए। अम्बेडकर चौक में रैली आमसभा में तब्दील हो गई। इस दौरान एक बार फिर सीएए व एनपीआर के दुष्परिणाम की जानकारी लोगों को दी गई। जनगीत गाए गए और आखिर में शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म “हम देखेंगे” को सभी ने गाकर सभा समाप्त की।

किसी ने नहीं सोचा था कि जिस देश को आज़ाद कराने में लोगों ने कुर्बानियां दीं, उन्हीं के वंशजों से नागरिकता साबित करने कहा जाएगा। ये कठिन दौर है।

इसके पहले हम भारत के लोग- बैनर तले रविवार की सुबह ईदगाह के पास प्रेस क्लब भवन में सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के पक्षों पर विमर्श किया गया।

सेमिनार की शुरुआत संविधान की प्रस्तावना के सामूहिक पाठ के साथ की गई। वरिष्ठ अधिवक्ता शौकत अली ने असम में की गई एनपीआर से बात शुरू की। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया से वहां के लोगों को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा। केंद्र की मोदी सरकार की सोच के उलट घुसपैठियों का जो 19 लाख का आंकड़ा सामने आया, उसमें सिर्फ़ पांच लाख ही मुस्लिम निकले। अब वे अपने एजेंडे के तहत पूरे देश पर इसे थोप रहे है, जो कि दरअसल लोगों को देश के असल मुद्दों से भटकाने का प्रयास है।

छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष पीआर यादव ने कहा कि एनआरसी का मक़सद आगामी 2024 के चुनावों के लिए एजेंडा फिक्स करना है। 1955 में नागरिकता कानून बना है, जिसमें सभी को नागरिकता दी जा सकती है। इसके तहत ही अब तक देश व प्रदेश में लाखों लोगों को बसाया गया है। इस कानून के होते हुए सीएए को लागू करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। ये धर्म आधारित है, जो कि संविधान का उल्लंघन है। देश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, उस पर सरकार कुछ नहीं कर रही। सिर्फ वोट की राजनीति के लिए लोगों के बीच नफ़रत फैलाई जा रही है।

रंगकर्मी सुनील चिपड़े ने कहा कि सभी लोग टीवी, सोशल मीडिया में इस बारे में सुन रहे हैं और भ्रमित हो रहे हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए छोटे छोटे समूह के जरिए लोगों से बात करनी चाहिए। सरकार लोगों से उनके नागरिक होने का सबूत मांग रही है, जबकि ये व्यवस्था सरकार की होनी चाहिए। नागरिकों का रिकॉर्ड सरकार के पास होना चाहिए। कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाया, तो क्या प्रधानमंत्री में इतना दम है कि वो पाकिस्तान या बांग्लादेश को ये कह सके कि उस व्यक्ति को उसे लेना होगा। ऐसे समय में बेहतर तो ये होगा कि हम रिश्तों की बात करें, धर्म की नहीं।

कॉमरेड पवन शर्मा ने कहा कि किसी ने नहीं सोचा था कि जिस देश को आज़ाद कराने में लोगों ने कुर्बानियां दीं, उन्हीं के वंशजों से नागरिकता साबित करने कहा जाएगा। ये कठिन दौर है। आगे और लड़ाई लड़नी होगी। देश को उलझाकर राजनीतिक पार्टियां अपना हित साध रही हैं।

किसान नेता आंनद मिश्रा ने कहा कि समाज में भय पैदा करने की कोशिश की जा रही है।  इससे डरने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि अपनी ताकत बताने की ज़रूरत है।

सामाजिक कार्यकर्ता जेआर पाटले ने कहा कि भारत के लोगों पर ही संदेह किया जा रहा है। सरकार भाई-भाई के बीच दीवार खड़ी कर रही है। संविधान में दर्ज़ धर्मनिरपेक्ष की बात लोगों को समझाने की ज़रूरत है।

अधिवक्ता व एक्टिविस्ट प्रियंका शुक्ला ने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। उन्होंने शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रही महिलाओं को सच्चे भारत की तस्वीर बताया। प्रियंका ने कहा की सरकारों का काम ही बांटना है और हमें एकजुट होना होगा।

अधिवक्ता लखन सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। जो विचारधारा कभी अंग्रेजों की चाटुकारिता कर रही थी, अब वे अंग्रेजों के फूट डालो राज करो के एजेंडे को आजमा रही है।

कार्यक्रम के संयोजक अधिवक्ता सलीम काज़ी ने कहा कि सत्ताधारियों का समाज को बांटने का प्रयास विफल हो गया है। इस एक्ट के सामने आने के बाद सभी धर्म के लोग संघर्ष में साथ आ गए हैं। उनमें भाईचारा बढ़ गया है।

सेमिनार का संचालन संयोजक डॉ. अशोक शिरोडे व सुरेश दिवाकर ने किया। आभार प्रदर्शन सामाजिक कार्यकर्ता सत्यभामा अवस्थी ने किया। इस मौके पर नंद कश्यप, कपूर वासनिक, मो आसिफ, मुश्ताक खान, असीम तिवारी, नीलोत्पल शुक्ला, अनुज श्रीवास्तव, रोशनी बंजारे, धीरज शर्मा, प्रतीक वासनिक, राधेश्याम टंडन, चंद्रशेखर नवरत्न, रवि बनर्जी, एस चटोपाध्याय, शिव सारथी, जहांगीर भाभा, दुष्यंत भास्कर, मो शकील, प्रमोद नवरत्न आदि शामिल थे।

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