अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज डे पर सिस्टर शीला खटकर ने अपना अनुभव बांटा

बिलासपुर। नर्सिंग सिस्टर के रूप में 25 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुकीं शीला खटकर शुरुआत के दिनों के बीच में हुई एक प्रसव की घटना को याद कर अभी भी भाव-विह्ल हो उठती हैं  जब बच्चे के पिता ने उनके पैर छूकर कहा था- आप गॉड मदर हो।

राज्य के सबसे बड़े मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेंदरी में प्रभारी मेट्रेन के पद पर पदस्थ नर्सिंग सिस्टर शीला खटकर बताती हैं कि वर्ष 1995 में उन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बैकुंठपुर से नौकरी की शुरुआत की थी ।  25 वर्ष पूर्व आदिवासी अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहतर नहीं थीं । उस समय एक जोखिम वाला डिलिवरी केस आया। वरिष्ठ चिकित्सकों द्वारा सिजेरियन किया गया लेकिन बच्चे को नियमित सांस नहीं आ रही थी। “मैंने तुरंत उसको माउथ टू माउथ ऑक्सीजन दिया और बच्चे की जान बच गई। जब यह बात बच्चे के पिता को पता चली तो उन्होंने मेरे पैर छूकर कहा आप गॉड मदर हो । आपने मेरे बच्चे की जान बचाई है, पत्नी की जान बचाई है ।‘’
सिस्टर शीला कहती है वैसे तो नर्स का रोल दिखने में बहुत साधारण होता है लेकिन यह रोल डॉक्टर से कम नहीं है। इस समय विश्व भर के डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी अपने परिवार को भुलाकर  मानवजाति को बचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। ऐसे में नर्सों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। विशेष तौर पर जो नर्सें आईसीयू में काम करती हैं और जो कोविड-19 के मोर्चे पर तैनात हैं। इन्हें आराम के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिलता। नर्सों व मिडवाइफ को अक्सर समाज और मेडिकल पेशे में अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता जबकि उनकी सेवाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं।
सिस्टर शीला खटकर का कहना है कि कोविड -19 के संक्रमण को खत्म करने के मोर्चे पर तैनात नर्सिंग स्टाफ भी अपने आप में डॉक्टर से कम नहीं है। राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय सेंदरी में भी नियमित रूप से मानसिक रोगियों के आने का क्रम नहीं रुका है । ऐसे समय में भी मानसिक रोगी राज्य के अलग-अलग जिलों से आते हैं वह हमारे लिए एक चुनौती है। हम उनको अपने परिवार के सदस्य के रूप में सेवा देते हैं । कभी-कभी तो उनको देखकर बहुत दया आती है। मानसिक रोगों की अपनी एक अलग दुनिया हो जाती है। उन्हें अपने घर का पता भी मालूम नहीं होता है। राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय में पिछले 6 वर्षों से मैं इनकी जीवनचर्या को समझने की कोशिश कर रही हूं।

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