कहा-छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही सरकार

बिलासपुर। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने 1972 से संचालित ई राघवेंद्र राव स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय को स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम कॉलेज में बदलने की घोषणा के खिलाफ चल रहे छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया है।

एक बयान में अग्रवाल ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गुणवत्तापूर्ण और रोजगारपरक शिक्षा स्थानीय भाषा में देने का निर्देश दिया गया है। इसके विपरीत बेतरतीब ढंग से गुणवत्ताहीन स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोले गए हैं। अब बिना कोई योजना बनाए शिक्षा क्रांति का ढोल पीटकर कॉलेज के छात्रों के भविष्य का कबाड़ा किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को 10 दिन के भीतर कार्ययोजना प्रस्तुत करने कहा है जबकि कॉलेजों में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस योजना के लिए अलग बजट नहीं है। डीएमएफ फंड को 172 संस्थानों में कलेक्टर के पॉकिट मनी का जरिया बना दिया गया है। शिक्षकों की भर्ती, प्रतिनियुक्ति और स्कूलों के संचालन में राशि का दुरुपयोग किया जा रहा है। चयनित कॉलेजों के हिंदी माध्यम हजारों युवाओं के बारे में सरकार ने कोई ठोस योजना प्रस्तुत नहीं की है। विद्यार्थियों को चिंता है कि अंग्रेजी माध्यम कॉलेज बना देने से सालों से चल रहे पुराने कॉलेजों का क्या होगा?  उच्च शिक्षा विभाग  को पृथक से कॉलेज बिल्डिंग, खेल परिसर,लैब, लाइब्रेरी एवं छात्रावास की व्यवस्था करनी थी किंतु आपाधापी में पुराने संचालित महाविद्यालयों में ही बिना नई व्यवस्था शुरू की जा रही है, जो अप्रासंगिक और दिखावेबाजी है। विज्ञान महाविद्यालय बिलासपुर में 775 विद्यार्थियों के प्रवेश की प्रक्रिया  हो चुकी है जिसमें सात सौ हिंदी माध्यम के विद्यार्थी हैं। जो विद्यार्थी फर्स्ट ईयर में प्रवेश ले चुके हैं, उनसे सहमति लेकर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने में इच्छा जाहिर नहीं करेंगे, तो उनको हिंदी माध्यम वाले दूसरे कॉलेज में बिना किसी तकनीकी दिक्कत के प्रवेश का दिलाया जाएगा। शासन का आदेश जारी होने के बाद इन छात्रों में संशय की स्थिति बन गई है। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने कहा हिंदी मीडियम वालों को अन्य कॉलेजों में स्थानांतरित करने का हवाला देकर आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम महाविद्यालय का नया शिगूफा लागू किया जा रहा है। इससे न सिर्फ युवा छात्र छात्राएं अध्ययनरत छात्र-छात्राएं और उनके पालक गढ़ हतप्रभ हैं, बल्कि अकादमिक स्टाफ को भी दोहरे काम का बोझ झेलने मजबूर होना पड़ रहा है। उच्च शिक्षा विभाग को इस संबंध में युवा हितों में आवश्यक निर्णय लेना चाहिए ताकि उद्घाटन में ही ऐसे संस्थान न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझ कर ना रह जाएं।

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