-मनोज भंडारी, बिलासपुर (समाज सेवी व राम मंदिर आंदोलन के कार्यकर्ता)
देश का वातावरण पूरी तरह राममय है। चारों ओर सिर्फ मंदिर निर्माण की चर्चा है। चर्चा भी इस हद तक कि संपूर्ण विश्व को संकट में डालने वाला कोरोना भी हाशिये पर चला गया है। ऐसी स्थिति में मैं स्वयं भी भगवा रंग में रंगा स्मृतियों को खंगालने लगा। अतीत के झरोखों से झांकती घटनाएं किसी चलचित्र के दृश्यों की तरह आंखों के सामने आ जाती हैं। दरअसल मुझे उन दिनों राजनीति का बुखार चढ़ा हुआ था। अतः स्वाभाविक रूप से न केवल मैंने इस आंदोलन को समीप से देखा वरन् आंदोलन की स्थानीय गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी भी रही।

उस वक्त देश की अस्मिता, स्वाभिमान, सनातन संस्कृति एवं मर्यादा के प्रतीक भगवान राम के मंदिर के निर्माण का जुनून लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था। पुरानी कहावत है ‘‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी’’ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अयोध्या प्रसंग पर सटीक बैठती है। शंखनाद के साथ एक आह्वान ‘‘रामलला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे’’ वह भी विपरीत एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में, जब देश में गैर भाजपाई सरकारों का युग था तब राम मदिर के प्रति दीवानगी, पागलपन की हदों को पार कर किसी उफनती नदी की धार, समुद्र में आये सैलाब, या प्रचण्ड वेग से चलती आंधी जो सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने को बेताब हो का परिणाम है राम मंदिर का पुर्ननिर्माण।

5 अगस्त को प्रातः नवप्रभात की किरणों के साथ नवयुग की गाथा लिखी गई, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का भूमिपूजन किया। इसके साथ ही रामलला के मंदिर निर्माण का संकल्प जिसे वर्षों पूर्व देश की कोटि-कोटि जनता हजारों साधु संतों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, सहित हिन्दूवादी संगठनों एवं भारतीय जनता पार्टी ने लिया था पूरा हुआ। मोदी ने संकल्प करीब 29 वर्ष पूर्व लिया था। रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण अडवानी के सारथी के रूप में पहुंचे नरेन्द्र मोदी ने कहा था, अब अयोध्या तभी आऊंगा जब रामलला के मंदिर का निर्माण होगा। देश के सम्पूर्ण जनमानस के लिये अत्यधिक प्रसन्नता का विषय है कि मंदिर निर्माण का मार्ग न केवल प्रशस्त हो गया वरन् आज भूमि पूजन भी गया है। किन्तु क्या यह कार्य इतना ही आसान था?  इसका जवाब है संभवतः नहीं। वर्षों का संघर्ष लगभग डेढ़ लाख प्राणों की आहुति अटूट संकल्प, दृढ़ विश्वास एवं इच्छा शक्ति के फलस्वरूप लाखों करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक श्रीराम मंदिर के निर्माण का स्वप्न अब मूर्त रूप ले सका है।

इतिहास

लगभग 492 वर्षों पूर्व सन् 1528 में मुगलों के राज में रामलला के मंदिर का ध्वंस करके बाबर के सूबेदार मीर बांकि द्वारा बनाये गये ढ़ांचे को बाबरी मस्जिद का नाम दिया गया। समय के साथ राम मंदिर के निर्माण की मांग जोर पकड़ने लगी। आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार के समय से न्यायालय में लंबित 134 साल पुराने अयोध्या मंदिर मस्जिद विवाद पर देश की सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के साथ करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतीक रामलला के मंदिर का विवाद यद्यपि समाप्त हो गया है तथापि इसके पीछे पांच शतकों के संघर्ष की लंबी दास्तान है।

आजादी के बाद मंदिर निर्माण आंदोलन की कमान संभाल रहे संघ परिवार के संगठन विश्व हिन्दू परिषद् का आत्म विश्वास एवं जोश पूरे उफान पर था। एक ओर जहां संघ और उसके आनुषांगिक संगठन जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे थे वहीं दूसरी ओर योजनाबद्ध तरीके से लालकृष्ण आडवानी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने जनसमर्थन जुटाने के लिये सोमनाथ से अयोध्या तक लगभग 3000 किलोमीटर की देशव्यापी रथयात्रा शुरू की। 25 सितंबर से 30 अक्टूबर 1990 तक की इस रथयात्रा को 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचकर कार सेवा का प्रारंभ करना था लेकिन इसके पूर्व ही 23 अक्टूबर को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के अगुवाई वाली सरकार ने लाल कृष्ण आडवानी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी इसलिये की गई ताकि अयोध्या में कार सेवा न हो सके। लेकिन उनके मंसूबों पर पानी फेरते हुए 30 अक्टूबर को आचार्य वामदेव, महंत नृत्य गोपाल दास, अशोक सिंघल, उमा भारती ने कार सेवकों के साथ विवादित स्थल की ओर कूच किया। इन्हें रोकने के लिये उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था। साथ ही बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बेरिकेडिंग की गई थी। सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी थी कि मार्ग के दोनों ओर स्थित घरों की छतों पर बन्दूकधारी पुलिसकर्मी तैनात थे। मुलायम सिंह का कथन कि बाबरी मस्जिद की ओर आंख उठाना तो दूर ‘‘परिन्दा भी पर नहीं मार सकता’’ देश में चर्चित हुआ। बावजूद तमाम अवरोधों के जुनून से भरे लाखों कार सेवकों ने विवादित स्थल की ओर कूच किया जिन पर हनुमान गढ़ी के निकट गोलियां चलवाई गईं एवं बेरहमी से लाठी चार्ज किया गया। इस हृदय विदारक घटना में कलकत्ता के कोठारी बंधुओं सहित डेढ़ दर्जन लोगों को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी। एक गोली कटघोरा के गेसराम चौहान को भी पेट में लगी। इस दौरान निमर्मता पूर्वक किये गये लाठी चार्ज में बिलासपुर के  दत्ता त्रिपुरवार को हाथ में चोट लगी एवं तेजनाथ यादव के पैर में फेक्चर हो गया। ये सभी लोग मूर्छित होकर वहीं गिर पड़े। इनमें से गेसराम एवं दत्ता त्रिपुरवार को पत्रकारों की एक गाड़ी ने मूर्छित अवस्था में ले जाकर फैजाबाद के अस्पताल में दाखिल कराया।

छत्तीसगढ़ की भूमिका

राम मंदिर आंदोलन की संघर्ष गाथा में छत्तीसगढ़ की अहम भूमिका है। लालकृष्ण आडवानी की रथयात्रा ने महाराष्ट्र से राजनांदगांव के रास्ते छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया एवं यहां से ओड़िसा के संबलपुर के लिये प्रस्थान किया। राजनांदगांव से संबलपुर तक की रथयात्रा के प्रभारी अविभाजित मध्यप्रदेश की पटवा सरकार के तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल थे। उन दिनों को याद करते हुए बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि अयोध्या के आंदोलन का जन-जन में उत्साह नजर आ रहा था। हजारों की संख्या में लोग छत्तीसगढ़ से अयोध्या पहुंचकर कार सेवा में भाग लेने गये।

कार सेवा में बिलासपुर से विश्व हिन्दू परिषद् के बजरंग रजक, नर्मदा रजक, दीपक रजक, ठाकुर बोधन सिंह, दत्ता त्रिपुरवार (वाहिनी प्रमुख), प्रेमशंकर पाटनवार, भाजपा से स्व. डी. पी. अग्रवाल, मन्नू मिश्रा, स्व. अशोक पिंगले, स्व. जगत सारथी, अर्जुन तीर्थानी, खत्री जी, अमोलचंद गुप्ता, स्व. छोटेलाल चौधरी, राजकुमार शुक्ला, नैनसिंह परिहार, तेजनाथ यादव, गुलाबसिंह पवार, मथुरा रजक, नवल गोयल, हरनारायण शर्मा, चन्दू मिश्रा, शेखर पाल, केशव दिनकर भाखरे, भास्कर वर्तक, डॉ. सोमनाथ यादव, गजानंद दिघ्रस्कर, गज्जू भुरंगी, अरविन्द शर्मा, अंचल बाजपेयी आदि शामिल थे।

कार सेवा में नगर की महिलायें भी पीछे नहीं थीं। नगर से कार सेवा में भाग लेने वाली प्रमुख महिलाओं में जानकी गुलाबानी, शैलजा तामस्कर, कौशल्या तीर्थानी, स्व. रेखा दीक्षित, सरिता कछवाहा, लक्ष्मी सारथी, शुलभा एवं मंगला देशपाण्डे, चित्रलेखा खनकर आदि प्रमुख थीं।

1990 की कार सेवा को याद करते हुए दत्ता त्रिपुरवार बताते हैं कि कार सेवक स्व. जगत सारथी भारी सुरक्षा व्यवस्था को भेदते हुए आयोध्या की दीवारों को ‘‘सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर यहीं बनायेंगे’’ के नारों से पाट दिया था। ये नारे कोयले से लिखे गये थे। कार सेवा के लिये जाना भी आसान नहीं था। इलाहाबाद से आगे अयोध्या मार्ग में तरह-तरह की रुकावटें एवं सुरक्षा प्रबंध से बचकर गांवों के रास्ते पैदल अयोध्या जाना पड़ता था। गांवों के बीच पगडंडियों के रास्ते गुजरते रामभक्तों की भरपूर सेवा की जाती थी। इनके रहने खाने का प्रबंध भी ग्रामवासी निःशुल्क करते थे।

राष्ट्रीय राजनीति में मोदी का उदय

राष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी के उदय का श्रेय भी अयोध्या को ही जाता है। लालकृष्ण आडवानी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा के संयोजक वैसे तो स्व. प्रमोद महाजन थे, पर गुजरात राज्य बीजेपी के संगठन महामंत्री के रूप में इस यात्रा के मुख्य शिल्पी एवं रणनीतिकार नरेन्द्र मोदी ही थे। फलतः इस सफल यात्रा के संयोजन ने जहां मोदी को प्रथम पंक्ति में ला खड़ा किया, वहीं अयोध्या यात्रा उनके राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव रही। इस रथ यात्रा की अपूर्व सफलता से संगठन में उनका कद एकाएक बड़ा हो गया। परिणामस्वरूप उन्हें मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की एकता यात्रा का सारथी घोषित कर दिया गया। इस यात्रा ने पूरे देश में राम लहर का उन्माद पैदा कर दिया जिसका सीधा सीधा राजनैतिक लाभ भविष्य में भारतीय जनता पार्टी को भी मिला। फलस्वरूप उत्तर प्रदेश सहित मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में बीजेपी की सरकारें बन गई। रथ यात्रा के लगभग दो वर्ष पश्चात् 6 दिसम्बर 1992 को विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा अयोध्या में पुनः कार सेवा का आव्हान किया गया। उस समय देश के प्रधानमंत्री स्व. नरसिम्हा राव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे। देश भर से लाखों की संख्या में रामभक्तों ने कार सेवा में भाग लिया। हजारों की संख्या में साधु संतों की उपस्थिति में कार सेवा का नेतृत्व लालकृष्ण आडवानी,  अशोक सिंघल, महंत नृत्य गोपालदास, आचार्य वामदेव, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा एवं शेषाद्री जी आदि कर रहे थे। इस अवसर पर सभी कार सेवकों से राम मंदिर के निर्माण के लिये सरयू नदी से एक एक मुट्ठी बालू (रेत) लाने का आव्हान किया गया लेकिन इस आव्हान से असंतुष्ट, सदियों से राममंदिर का स्वप्न देख रहे कोटि-कोटि व्याकुल हृदयों में सुलग रही चिंगारी शोला बनकर भड़क उठी जिसके परिणामस्वरूप बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के तीन गुम्बदों को भारी सुरक्षा के बाद भी कार सेवकों ने धराशायी कर दिया।

कार सेवक वहां की ईंटे एवं बालू तक निशानी के बतौर साथ ले गये। बिलासपुर से घटना के प्रत्यक्षदर्शी बजरंग रजक एवं नैनसिंह परिहार बताते हैं कि कार सेवकों में उत्साह एवं उन्माद का ऐसा संगम काम कर रहा था जो सबकी बातें अनसुनी कर स्वस्फूर्त ढ़ांचे का विध्वंस कर रहे थे। ढ़ांचे के विध्वंस से अचंभित किंकर्तव्यविमूढ़ केन्द्र की कांग्रेसी सरकार ने ढ़ांचे के विध्वंस का ठीकरा भाजपा सरकारों पर फोड़ा, परिणिति स्वरूप उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान की निर्वाचित सरकारों को गिरा दिया गया। उस समय मध्यप्रदेश की पटवा मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ से मूलचंद खंडेलवाल, बृजमोहन अग्रवाल एवं प्रेमप्रकाश पाण्डे प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

शिला पूजन

विवादित ढांचे के ढहाए जाने के साथ ही मंदिर निर्माण का मार्ग अवश्य प्रशस्त हुआ लेकिन कानूनी अड़चनें अभी बाकी थी। इधर उत्साह से लबरेज विश्व हिन्दू परिषद् ने मंदिर निर्माण की तैयारियां प्रारंभ कर दी थी। एक ओर जहां अयोध्या में शिलाओं को तराशने का काम शुरू किया गया वहीं दूसरी ओर देश भर से करीब पांच लाख शिलाओं (ईंट) का संग्रहण भी किया गया। छत्तीसगढ़ में इस कार्य की जिम्मेदारी बिलासपुर के बजरंग रजक को सौंपी गई। उन्हें शिलापूजन हेतु प्रान्त प्रमुख (छत्तीसगढ़ प्रान्त) का दायित्व दिया गया। इस दौरान प्रत्येक मोहल्ले के घर-घर से ईंटों का संग्रहण किया गया जिन्हें हाथ ठेलों पर रखकर नगर में शिला पूजन यात्रायें निकाली गयीं। तब भी आज के ही तरह चारों ओर राममय वातावरण एवं राम गूंज सुनाई पड़ती थी। समस्त राम भक्तों ने उत्साह पूर्वक बढ़-चढ़कर इस कार्य में भाग लिया।

मुझे याद है उन दिनों मैं भी पार्टी कार्यो में सक्रिय रहा करता था बीजेपी के नगर उपाध्यक्ष के रूप में इन तमाम कार्यक्रमों में मेरी भी सक्रिय भागीदारी रहती थी। सारी शिलाओं के सग्रहण के पश्चात् नगर के वाजपेयी मैदान से बजरंग रजक के नेतृत्व में शिलाओं को ट्रक द्वारा अयोध्या ले जाया गया। मुझे स्मरण है राम मंदिर आंदोलन के दौरान मुख्य मार्गों को भगवाध्वजों एवं तोरण-पताकों से सजाया जाता था। साथ ही ढ़ोल-नंगाड़ों के साथ उत्साहित रामभक्त रामधुन के साथ यात्रा के स्वागत में शामिल होते थे।

इन घटनाओं को स्मरण करते हुए नगर के ख्याति प्राप्त कलाकार एवं सांई भक्त दिलीप दिवाकर पात्रीकर बताते हैं कि रथ यात्रा के स्वागत में उनके द्वारा थर्मोकोल का विशाल बोर्ड बनाया गया था जिसमें आडवानी जी को जेल की सींखचों के पीछे दिखाया गया था। साथ ही बोर्ड में रामायण की पंक्तियां उद्धृत की गई थी ‘‘राम काज कीन्हें बिना मोहे कहां विश्राम।’’ यह बोर्ड देवकीनंदन  स्कूल चौक में प्रमुखता के साथ लगाया गया था।

भगवान राम के प्रति सम्पूर्ण हिन्दू जनमानस भक्तिभाव से ओत-प्रोत है लेकिन छत्तीसगढ़ में यह भावना ज्यादा ही प्रबल है क्योंकि आज का छत्तीसगढ़ कभी दक्षिण कौशल का राज था एवं माता कौशल्या की जन्मभूमि है। भगवान राम छत्तीसगढ़ के भांजे हैं। वनवास के समय राम का वनगमन छत्तीसगढ़ से हुआ इसलिये छत्तीसगढ़ के लोगों का भगवान राम से स्वाभाविक जुड़ाव एवं आत्मीयता है। यही कारण है कि मंदिर निर्माण के आंदोलन में कार सेवा से लेकर शिला पूजन, अयोध्या से आई राम ज्योति पूजन, पादुका पूजन आदि सभी कार्यक्रमों में छत्तीसगढ़ की अग्रणी भूमिका रही। आंदोलन से जुड़े सभी कार्यक्रमों को संबल, सहयोग एवं मार्गदर्शन देने में नगर के संघ प्रमुख काशीनाथ गोरे, बद्रीधन दीवान, मूलचंद खंडेलवाल, स्व. डॉ. डी.पी. अग्रवाल, नारायण तिवारी, नारायण वर्तक, भास्कर वर्तक, स्व. अशोक पिंगले, मन्नू मिश्रा, हरि बुधिया, राधे श्याम देवांगन, नारायण तावड़कर, बेनी गुप्ता आदि का अतुलनीय योगदान रहा।

इस पीढ़ी का सौभाग्य है कि 500 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद हम रामलला के भव्य मंदिर के भूमि पूजन के साक्षी बनेंगे। धन्य है 92 वर्षीय लालकृष्ण आडवानी, कल्याण सिंह, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा जिनके जीवन काल में ही उनका बड़ा सपना मूर्त रूप लेने जा रहा है। इस अवसर पर सम्पूर्ण अयोध्या को दुल्हन के सदृश्य सजाया गया है जैसे हजारों वर्षों पूर्व भगवान राम की वनवास से वापसी पर सजाया गया था। सम्पूर्ण देश भगवामय हो गया है। गली मोहल्लों को भगवाध्वजों एवं तोरण पताकों से सजाया जा रहा है चारों ओर दीप प्रज्जवलन की दीवाली की तरह तैयारियां हैं। भूमिपूजन को लेकर प्रत्येक देशवासी हर्ष और उल्लास से सराबोर है। देश भर में 5 अगस्त को दीपावली की तरह दीप प्रज्जवलन किया गया है। विश्व के अन्य देशों अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, मारिशस, श्रीलंका एवं बाली में भी दीप प्रज्जवलित किया गया है। चारों ओर हर्ष और उल्लास का वातावरण है। अयोध्या में भूमि पूजन के अवसर पर चुनिंदा 175 अतिथियों में साधु-संतों के साथ छत्तीसगढ़ के शदाणी दरबार के संत युधिष्ठिर एवं दैवी संपद मण्डल के महामण्डलेश्वर स्वामी हरिहरानंद सहित कलकत्ता के शहादत देने वाले कोठारी बन्धुओं की बहन को भी इस अवसर पर आमंत्रित किया गया है।

प्रख्यात कवि पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे के शब्दों में – 5 अगस्त का सूरज राघव को लाने वाला है, 5 शतक का धुंध कुहासा छटंने वाला है।

(प्रस्तुत विचार लेखक के अपने हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here